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व्याख्यान १: घात होता है।" इस पर कईयोंकी सम्मति हैं कि वे पुष्प देवताओं द्वारा रचे हुए होने से सचित्त ही नहीं होते है परन्तु यह जवाब युक्त प्रतीत नहीं होता क्यों कि ये पुष्प केवल रचे हुए ही नहीं होते है अपितु जल एवं स्थल से उत्पन्न पुष्पों की भी देवतागण वृष्टि करते हैं । इस विषय में आगम का भी कहना है कि:"बिटछाइं वि सुरभि जलथलयं दिवसुमनोहरिं। पकिरंति समंतेण दसवणं कुसुमवासंति ॥
भावार्थ:-नीचे बीटवाले, सुगंधित और जल स्थल में उत्पन्न हुए पंचरंगी दिव्य पुष्पों की वृष्टि देवतागण चारों ओर करते हैं।
इस प्रकार सिद्धान्त का पाठ पढ़कर कितने ही अल्पज्ञ पंडित स्वमतिकल्पना से कहते हैं कि जिस स्थान पर मुनिगण बैठते हैं वहाँ पर देवतालोग पुष्पवृष्टि नहीं करते । यह उत्तर भी सत्यप्रतीत नहीं होता क्योंकि जिस स्थान पर मुनिगण बैठते हैं उसी स्थान पर वह काष्ठवत् स्थिर होकर बिना हिलेडुले बैठे रहे ऐसा कोई नियम नहीं है परन्तु कारणवश उनका आनाजाना भी संभव है अथ इस सब का यथोचित यही उत्तर प्रतीत होता है कि जैसे एक योजन समवसरण की भूमि में अपरिमित सुर, असुर, नर और तियंचों का परस्पर मर्दन होने पर भी उनको किसी प्रकार