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अनत
अनत
ध ३/१,२,२/414 त दव्याणं त तं दुविह आगमदो णोआगमदो य। १२/३.-त जोआगमदो दवाण त त तिविह, जाणुगसरीरदब्वाण तं भवियदबाण त तब्बतिरिक्तदवाण त चेदि । १३/३, - तं दव्यादिरिक्तदवाण त तं दुविह, कम्माणं त णोकम्माणतमिदि। १५/१,त भावाणंत त दुविहं आगमदो णोआगमदो य । १५/६.तं गणणाणत त पि तिविह, परिक्ताणत जुत्ताणतं अण ताणतमिदि । १८/३,-तं अण ताणत त पि तिविह, जहण्णमुक्कसं मज्झिममिदि । १६/२ । द्रव्यानन्त आगम व नोआगमके भेदसे दो प्रकारका है। नोआगम द्रव्यानन्त तीन प्रकारका है-ज्ञायक शरीर नोआगम द्रव्यानन्त, भव्य नोआगम द्रव्यानन्त, तद्वयतिरिक्त नोआगम द्रव्यानन्त। तद्वयतिरिक्त नोआगम द्रव्यानन्त दो प्रकारका है-बर्म तद्वयतिरिक्त नोआगम द्रव्यानन्त और नोकर्म तद्वयतिरिक्त नोबागम द्रव्यानन्त । आगम और नोआगमकी अपेक्षा भावानन्त दो प्रकारका है। गणनानन्त तीन प्रकारका है-परीतानन्त, युक्तानन्त, और अनन्तानन्त । और उपलक्षणसे परीतानन्त व युक्तानन्त भी तीन प्रकारका है -जधन्य अनन्तानन्त, उत्कृष्ट अनन्तानन्त और मध्यम अनन्तानन्त । (ति प /४/३११) (रा.बा./३/३८/ १२/२०६-२०७),
अनन्त
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२ स्थापना
१ नाम
८ उभयादेश - ७ एका ६. विस्तार
४ शाश्वत
३ द्रव्य
१० सर्व
६. अप्रदेशिक - -युक्तानन्त -- ५ गणना -अनन्तानन्त-
नोआगम-११ भाव
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-परीतानन्त--
अपदेसियाण तं तं परमाणू।. एकप्रदेशे परमाणौ तद्व्यतिरिक्तापरो द्वितीय प्रदेशोऽन्तव्यपदेशभाक नास्तीति परमाणुरप्रदेशानन्त । जंतं एयाण तं लोगमज्झादो एगसेढि पेपरवमाणे अंताभावादो एयाणतं.. जहा अपारो सागरो, अथाह जल मिदि । जं तं उभयापंतं तं तधा चेव उभय दिसाए पेक्खमाणे अंताभावादो उभयादेसणत । जंतं वित्धाराणततं पदरागारेण आगास पेक्खमाणे अंताभावादो भवदि । जंत सव्वाणतत घणागारेण आगास पेवखमाणे अंताभावादो सवाणं तं भवदि । आगमदो भावाणत अणंतपाहुडजाणगो उबजुत्तो। जं तं णोआगमदो भावाण'त त तिकालजाई अणं तपज्जयपरिणदजीवादिदव्यं । -१. नामानन्त-कारणके बिना ही जीव अजीब और मिश्र द्रव्यकी 'अनन्त' ऐसी संज्ञा करना नाम अनन्त है (१९४३) । २. स्थापनानन्त-काष्ठ कर्म, चित्रकर्म, पुस्त ( वस्त्र ) कर्म, लेप्यकर्म, लेनकम, शैलम, भित्तिर्म, गृहकर्म, भेडकर्म अथवा दन्तकर्म में अथवा अक्ष ( पासा ) हो या कौडी हो, अथवा कोई दूसरी वस्तु हो उसमें 'यह अनन्त है' इस प्रकार की स्थापना करना स्थापनानन्त है ( ११/१) । ३. द्रव्यानन्तद्रव्यानन्त आगम नोआगमके भेदसे दो प्रकारका है। आगम, ग्रन्थ, अतज्ञान, सिद्धान्त और प्रवचन ये एकार्थवाची शब्द है (१२/३)। १. आगम द्रव्यानन्त-अनन्त विषयक शास्त्रको जाननेवाले परन्तु वर्तमान में उसके उपयोगसे रहित जीवको आगमद्रव्यानन्त कहते है। (१२/११) । २ नोआगम द्रव्यानन्त-[बह नोआगम द्रव्यानन्त तीन प्रकारका है- ज्ञायक शरीर, भव्य और तद्व्यतिरिक्त ] उनमें से अनन्त विषयक शास्त्रको जाननेवाले (जीव ) के तीनों कालों में होनेवाले शरीरको ज्ञायक शरीर नोआगम द्रव्यानन्त कहते है (१३/३) । जो जीव भविष्यकाल में अनन्त विषयक शास्त्रको जानेगा उसे भाबि नो आगम द्रव्यानन्त कहते है। तद्वयतिरिक्त नोआगम द्रव्यानन्त दो प्रकारका है- कर्म तद्वयतिरिक्त और नोर्म तद्वयतिरिक्त । ज्ञानाबरणादिक आठ मौके प्रदेशोको कर्म तवचतिरिक्त नोआगमद्रव्यानन्त कहते है। कटक (ककण) रुचक ( ताबीज ) द्वीप और समुद्रादिक अथवा एकप्रदेशादिक पुद्गल द्रव्य ये सब नोर्म तद्वर्यातरिक्त नोआगमद्रव्यानन्त है (१४/१)। ४. शाश्वतासन्त-शाश्वतानन्त धर्मादि द्रव्योमें रहता है, क्योकि धर्मादि द्रव्य शाश्वतिक होनेसे उनका कभी भी विनाश नहीं होता। __ अन्त विनाशको कहते है । जिसका अन्त अर्थात् विनाश नहीं होता उसको अनन्त कहते है (१५/४) । ५. गणनानन्त-गणनानन्त बहुवर्णनीय है तथा सुगम है ( दे आगे पृथक् लक्षण) 1६. अप्रदेशानन्त-एक परमाणुको अप्रदेशानन्त कहते है। क्योकि, एकप्रदेशी परमाणु में उस एक प्रदेशको छोडकर 'अन्त इस सज्ञाको प्राप्त होनेवाला दूसरा प्रदेश नही पाया जाता है, इसलिए परमाणु अप्रदेशानन्त है ( १)। ७. एकानन्त-लोकके मध्यसे आकाशके प्रदेशाकी एक श्रेणीको ( एक दिशामें ) देखने पर उसका अन्त नहीं पाया जाता, इसलिए उसका एकानन्त कहते है-जसे अथाह समुद्र, अथाह जलादि। Lnidinectional infinite (ज.प/9.१०१)। ८. उभयानन्त-लोक्के मध्यसे आकाश प्रदेश पक्तिको दो दिशाओमें देखनेपर उनका अन्त नहीं पाया जाता है, इसलिए उसे उभयानन्त कहते हैं। विस्तारानन्त--आकाशको प्रतर रूपसे देखनेपर उसका अन्त नहीं पाया जाता इसलिए उसे विस्तारानन्त कहते हैं (१६/७ ) । १० सर्वानन्त -- आकाशको घन रूपसे देखनेपर उसका अन्त नहीं पाया जाता इसलिए उसे सनिन्त कहते हैं (१)। ११. भावानन्त-आगम और नोआगमकी अपेक्षा भावानन्त दो प्रकारका है। १ आगम भावानन्त - अनन्त विषयक शास्त्रको जानने वाले और वर्तमानमें उसके उपयोगसे उपयुक्त जीवको आगम भावामन्त कहते है। २.नोआगम भावानन्त-त्रिकाल जात अनन्त पर्यायोसे परिणत जीवादि द्रव्यको नोआगम भावानन्त कहते है।
आगम
उत्तम मध्यम जघन्य
आगम
नोआंगम
ज्ञायक शरीर
भव्य तद्व्यतिरिक्त
कर्म
• नोकर्म ३. गामादि ११ भेदोंके लक्षण ध, ३/१,२,२/११-१६/४ णामार्ण तं जीवाजीव मिस्सद व्वस्स कारणणिरवेस्खा सण्णा अणता इदि । जं तंवणाणतं णाम कक्म्मेसु वा चित्तकम्मेसु वा पोत्सकम्मेसु वा लेप्पकम्मेसु वा लेणकम्मेसु वा सेलकम्मेनु वा भित्तिकम्मेसु वा गिहकम्मेसु वा भेंडकम्मेसु वा दप्तकम्मेसु वा अवरवो वा वराडयो वाजेच अण्णे वणाए विदा अण तमिदि तं सब ठवणाणतं णाम । . आगमो गंथो सुदणाणं सिद्ध'तो पबयणमिदि एगट्ठो तत्थ आगमदो दव्वाणं तं अर्ण तपाहुड जाणओ अणुवजुत्तो । आगमादण्णो णोआगमो। तत्थ जाणुगसरीरदब्याण त अणंतपाहुडजाणुगसरोरं तिकालजादं ।...भवियाण तं अणं तप्पाइडजाणुगभावी जोवो. तं कम्माणं तं तं कम्मस्स पदेसा। तं णोकम्माणं तं तं कंडय-रूजगदीव समुदादि एयपदेसादि पोग्गलदब
बात सस्सदातं तं धम्मादिदव्वगयं । कुदो। सासयत्तेण दव्याणं विणासाभावादो। जं तं गणणाणत त बहुवण्णणीयं सुगम च। जंत
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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