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आहार
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विषय-सूची २ साधुके योग्य आहार शुद्धि १ छियालीस दोषोसे रहित लेते है २ अध.कर्मादि दोषोसे रहित लेते है ३ अधःकर्मादि दोषोका नियम केवल प्रथम व अन्तिम
तीर्थमे ही है * परिस्थिति वश नौकोटि शद्धकी बजाय पांच कोटि शुद्धका भी ग्रहण
-दे अपवाद ३ * दातार योग्य आहार शुद्धि
-दे. शुद्धि ४ योग मात्रा व प्रमाणमे लेते है ५ यथालब्ध व रस निरपेक्ष लेते है ६ पौष्टिक भोजन नही लेते है * भक्ष्याभक्ष्य सम्बन्धी विचार -वे. भक्ष्याभक्ष्य ७ गृद्धता या स्वछन्दता सहित नही लेते ८ दातार पर भार न पड़े इस प्रकार लेते हैं ९ भाव सहित दिया व लिया गया आहार ही वास्तवमें
I आहार सामान्य १ भेद व लक्षण
१ आहार सामान्यका लक्षण २ आहार के भेद-प्रभेद ३ नोकर्माहार व कवलाहारके लक्षण * खाद्यस्वाद्यादि आहार
-दे, वह वह नाम * पानक व काजी आदिके लक्षण -दे. वह वह नाम * निर्विकृति आहार का लक्षण --दे. निर्विकृति २ भोजन शुद्धि १ भोजन शुद्धि सामान्य * भक्ष्याभक्ष्य विचार, जलगालन, रात्रि भोजन त्याग अन्तराय
-दे. वह वह नाम २ अन्न शोधन विधि ३ आहार शुद्धिका लक्षण * चौकेके बाहरसे लाये गये आहारकी ग्राह्यता
-दे.आहार 1/१ * मन, बचन, काय आदि शुद्धियाँ -दे. शुद्धि ३ आहार व आहार कालका प्रमाण १ कर्म भूमिया स्त्री, पुरुषका उत्कृष्ट आहार २ आहारके प्रमाण सम्बन्धी सामान्य नियम * भोग भूमियाके आहारका प्रमाण
३ भोजन मौनपूर्वक करना चाहिए II आहार (साधुचर्या) १ साधुको भोजन ग्रहण विधि * भिक्षा विधि
-वे. भिक्षा १ दिनमे एकबार खडे होकर भिक्षावृत्तिसे व पाणि
पात्रमे लेते है २ भोजन करते समय खडे होने की विधि व विवेक ३ खडे होकर भोजन करनेका तात्पर्य ४ नवधा भक्ति पूर्वक लेते हैं। * नवधा भक्ति * योग्यायोग्य घर व कुलादि
-दे भिक्षा ३ ५ एक चौकेमे एक साथ अनेक साधु भोजन कर
सकते है ६ चौकेसे बाहरका लाया आहार भी कर लेते हैं ७ पंक्तिबद्ध सात घरोंसे लाया आहार ले लेते है पर
अन्यत्रका नही * क्षपकको भाँगकर लाया गया आहार ग्राह्य है
-दे. सरलेखना
३ आहार व आहार कालका प्रमाण १ स्वस्थ साधुके आहारका प्रमाण २ साधुके आहार ग्रहण करनेके कालकी मर्यादा * साधुके आहार ग्रहणका काल
-दे. भिक्षाव रात्रि भोजन १ ४ आहारके ४६ दोष १ छियालीस दोषोंका नाम निर्देश २ चौदह मल दोष ३ सात विशेष दोष * उद्देशिक व अध.कर्म दोष -दे,वह वह नाम ४ छियालीस दोषों के लक्षण । * आहारके अतिचार
-वे. अतिचार * आहार सम्बन्धी अन्तराय
-दे. अन्तराय २ * आहार छोड़ने योग्य व अन्यत्र उठ कर चले जाने योग्य अवसर
-दे. अन्तराय २ ५ वातार सम्बन्धी विचार १ दातारके गुण व दोष
२ दान देने योग्य अवस्थाएँ विशेष ६ भोजन ग्रहण करनेके कारण व प्रयोजन १ संयम रक्षार्थ करते है शरीर रक्षार्थ नही २ शरीरके रक्षाणार्थ भी कथंचित् ग्रहण ३ शरीरके रक्षणार्थ औषध आदिको भी इच्छा नहीं ४ शरीर व संयमार्थ ग्रहणका समन्वय * केवलीको कवलाहारका निषेध -दे. केवली४
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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