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उत्कर्षण
द्रव्य दीया सो यहू उत्कृष्ट निक्षेप जानना । -- (इसी बात को नीचे यत्रो द्वारा स्पष्ट किया गया है ) -
१- अन्य अतिस्थापना जघन्य निक्षेप
8+
विवेक सं
art अतिस्वा
आबाधा
ऊपर ऊपर का निषेक
निक्षेप मे मिलाते जाना
३ उत्कृष्ट अतिस्थापना मध्यम निक्षेप
५.
अति स्थापना नीचे सरकती गई और निक्षेप क्रमश 4. ऊपर चढ़ता गया
स्थापन में अत वह
नवीन समयप्रबद
निषेक स
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सत्ता
निक्षिप्तद्रव्य
चरमनिषेक उत्कर्षित द्रव्य
उदयावली वर्तमान उदय निषेक
उदयमजली के समान उद
श्थत रहती है।
६२
+3 7 --***---
he Rige
आबाधा
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उत्कृष्ट निक्षेप विधान, 'मे उत्कर्षण विभाग
द्रव्य
२- उत्कृष्ट अतिस्थापना जघन्य निक्षेप
नवीन समयक्र
निषेकस]
६९
६७
६५
द्वितीयावली ४०० नवप्रबाधा
+ ५० निषेक
६३
६१
धन्यनिक्षेप000 अवस्थित,
निषेक स पदानु
उत्कर्षित द्रव्य
उत्कर्षित व्रज्य
आबाधा
8 - नवीन समय प्रबद्ध
प्रमाण १६ निषेक हो जाये
Yox
३९
: उदयावली आबाधा
पूर्व सत्ता
निक्षिप्त
बिषेकन
★ पश्चादानुपूर्वी
१ अतिमनिषेक
₹
उदयादी
४निषेविण में अपकर्षण विभाग
वर्तमान समय प्रबद्ध
0000000
उत्कर्षित
द्रव्य
पूर्व सत्ता
पूर्वसत्ता
पूर्व सत्ता
नवीन समय. मबद्ध अतिद्ध पनावली ९७ निषेक
10
निषेकनं ५०० उत्कर्षणनिषेक मे ३४8 गत द्रव्य निषेन १९
उदयावली
अतिस्थापना
कर्षित द्रव्य,
द्वितीया वली
६- अन्य प्रकार उत्कृष्ट निक्षेप
नवीन समय प्रबद अतिस्था•
१७ निषेक
स्थिति १००० निषेक 088888888888880*****
उत्कर्षित द्रव्य
उनक
असाधा
२. दृष्टि नं. २
लसा / भाषा / ६६-६७ अथवा कोई आचार्य निके मतकरि निक्षेपण विषै ऐमे निरूपण है- उत्कृष्ट स्थिति बन्ध बान्धा था, ताकी बन्धावलीको गमाय पीछे ताका प्रथम निषेकका उत्कर्षणकरि ताके द्रव्यकौ
उत्तमवर्ण
तिस उत्कर्षण करने के समयविषे बान्ध्या जो उत्कृष्ट स्थिति लिये समय प्रबद्ध ताका द्वितीय निषेकका आदि देकरि अन्त विषे अतिस्थापना मात्र निषेक छोडि सर्व निषेकनिविये निक्षेपण किया तहाँ एक समय अर एक आवली अर बन्धी स्थितिका आबाधाकाल इनिकरि हीन उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण उत्कृष्ट निक्षेप हो है । इहाँ बन्धी जो उत्कृष्ट स्थिति ताविषै आबाधाकालविषै तौ निषेक रचना नाहीं, अर प्रथम निषेकविषे द्रव्य दीया नाही, अर अन्तविषै अतिस्थापनावली विषै द्रव्य न दीया ताते पूर्वोक्त प्रमाण उत्कृष्ट निक्षेप जानना । इहाँ पूर्वोक्त प्रकार अक संदृष्टिकरि कथन जानना | ६५ | उत्कृष्ट स्थिति लीए जो उत्कर्षण करने के समय विषय बन्ध्या समयबद्ध ताकी अबाधाकालका जो अग्र कहिए अन्त समय तीहि सेती लगाय एक समय अधिक आवली मात्र समय पहिले उदय आवने योग्य ऐसा जो पूर्व सत्ताका निषेक ताका उत्वर्षण करते आवलीमात्र जघन्य अतिस्थापना हो है जातै तिस द्रव्यको आबाधा विष जो एक आवलीमात्र काल रह्या, 'ताको उल्लघ करि तिस बन्ध्या समय के प्रथमादि निषेकनिविषै, अन्तविषै अतिस्थापनावली छाडि निक्षेपण करिए है ।
३५५
अक सदृष्टिकरि-जैसे १००० समयकी स्थिति लोए समय प्रबद्ध बान्ध्या ताका ५० समय आबाधाकाल ताके अन्त समग्रतै लगाइ १७ समय पहिलै उदय आवने योग्य ऐसा वर्तमान समयतै ३४वा समय विषै उदय आवने योग्य पूर्व सत्ताका निषेक ताका उत्कर्षण करि तत्काल बन्ध्या समय प्रबद्धका आबाधा काल व्यतीत भये पीछे प्रथमादि समय विषै उदय आत्रने योग्य १५० निषेक तिनिविषै अन्तर्क १७ निषेक छोडि प्रथमादि १३३ नियेक विषै निक्षेपण करिए है । इहाँ उत्कर्षण कीया निपेकनिके और दीये गये प्रथमादि निषेकनिके बीच अन्तराल १६ समग्रका भया, सोई जघन्य अतिस्थापना जानना । ६६ । तहाँते उतरि तिसतै पहिले उदय आवने योग्य ऐसा अन्य कोई सत्तास्वरूप समय प्रबद्ध सम्बन्धी द्वितीयावलीका प्रथम निषेक जा वर्तमान समयतै आवन्तीकाल भए पीछे उदय आवने योग्य है, ताका उत्कर्षण होते, नीचे एक समय अधिक आवलीकरि हीन आबाधा काल प्रमाण उत्कृष्ट अतिस्थापना हो है । समय-अधिक आवलोकरि होन जो आवाधा ताको उल्लघ ऊपरिके जे निषेक तिनिविषे अन्तके अतिस्थापनावली मात्र निषैक छोडि अन्य नियैकनिवि तिस को दीजिए है कहाँ पूर्वोक्त प्रकार अक सदृष्टि आदिकवि कथन जानि लेना ।
उत्कर्ष समास्थाय ५/५-१/४ मापातदर्धर्म विकल्पा दुभयसाध्यत्वाच्चीमा 1
न्या. सू / भाष्य ५- १/४ दृष्टान्तधर्म साध्ये समाज्जन् उत्कर्षसम । यदि क्रियाहेतुगुणयोगाला ष्टवत् क्रियावानात्मा लोष्टवदेव स्पर्शवानपि प्राप्नोति । अथ न स्पर्शवान् लोष्टवत् क्रियावानपि न प्राप्नोति विपर्यये वा विषय इति । धर्मको साध्य के साथ मिलानेवालेको 'उत्कर्षसमा' कहते हैं। जैसे--आत्मा यदि डेलके समान क्रियावान है तो डेलके समान ही स्पर्शवान भी हो जाओ। अब वादी यदि आत्मा डेलके समान स्पर्शवाद नहीं मानना चाहेगा तब तो वह आत्मा उसी प्रकार कियावान् भी नहीं हो सकेगा । ( श्लो वा ४ / न्या ३४० / ४७४-४७५ / १)
उत्कल (म. पु / प्र ४६ / प. पन्नालाल ) उड़ीसादेश ।
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उत्कलिका - ( ध १ / ५ ५२ / H L Jain) भीमरथ और कृष्ण मेख (कृष्णा) नदीके बोचका प्रदेश जो अब बेलगाँव व धारवाड कहलाता है ।
उत्कीरण काल दे. काल / १ ॥
उत्तमवर्ण - भरतक्षेत्र में विन्ध्याचल पर स्थित एक देश - दे. मनुष्य ४ ।
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