Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 1
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 400
________________ उदय मार्गणा व्युषि प्रकृतियों १२. सम्यक्त्व मार्गणा (गो. क / जी प्र ३२८-३३१ / ४७५-४८१) क्षायिक सम्य वेदक सम्य, प्रथमोपदाम सम्यक्त्व द्वितीयोपशम सम्यक्त्व मिथ्यात्व सासादन सम्यग्मिध्याल संज्ञी बक्षी २५ गुण स्थान Jain Education International ४ ५ ६ ८-१४ - ४ ५.७ — ४ ५ ६ ७ - ४ ५ ७ ८-११ १ २ ३ ३-१२ - - प्रत्या. चतु, नीच गोत्र आ द्वि., स्त्यान त्रिक तीन अशुभ संहनन तिर्य गति व आयु, प्रत्या. चतु अप्रत्या चतु, देव त्रिक, वैक्रि. द्वि दुर्भग, अनादेय, अयश स्त्यान त्रिक तीनो अशुभ संहनन १३. संज्ञी मार्गणा (गो. क / जी प्र. ३३१/४८२/१) उदय योग्य १२२, अनुदय उदयोग्य १९९ अनुश्य १ उदय योग्य १०२. अनुदय ३, - उदय योग्यमध्यात्व सूक्ष्म, आप, अपर्याप्त, साधारण, अनन्तानुगन्धी चतु. १४ यि स्वायर मिश्र, सम्य; इन १६ के बिना सर्व -- १२२ - १६ १०६ अप्रत्या चतु वैद्वि, नारक त्रिक, आ. द्वि तीर्थ देव त्रिक, मनु, तिर्य अनु. तिर्थ गति व आयू, दुभंग, अनादय, अयश, उद्योत १०६ • .. - २० C == - १२ " ३८५ 5 - ३ अनुदय मूलोक्त उदय योग्यमध्याल. सूक्ष्म अर्थात आतप माधारण, अनन्तानुबन्धी चतु १४ इन्द्रिय, स्थावर, मिश्र, सीकर इन १६ के बिना सर्ग - १२२ - १६ - १०६ अत्र चतु वै हि नरक त्रिक, देव आ.द्वि. -२ त्रिक, मनु. व तिर्य. अनादेय, अयश १०६ " • , आनु दुर्भग, -- १७ पति व्युच्छित्ति १ । स्थान त्रिक ७८ अशुभ संहनन उदय योग्य -- नरक तिर्य. गति व आयु, नीच गोत्र, उद्योत इन ६ के बिना प्रथमोपशम कौ सर्ग - ६४ ७५ १४ ← ६. कर्म प्रकृतियोंकी उदय व उदयस्थान प्ररूपणाएँ मूलोषमय उदय योग्य -- मिथ्यात्व, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, आतप, अनन्तानुबन्धी चतु, १-४ इन्द्रिय, स्थावर, मिश्र, तीर्थंकर, आहा द्विक, नारक- तिर्य. मनु आनु, सम्य; इन २२ के बिना सर्व १०० अप्रत्या चतु देव त्रिक, नरक गति व आयु. कि द्वि, दुभंग, अनादेय, १०० 1 अयश =१४ 1 प्रत्या चतु नीच गोत्र, उद्योत पुन उदय अनन्तानुबन्धी चतु. उदय यौग्यमनुत्रिक व कमर कि कि हि १३ आ द्वि -४ ४ नरकापूर्वी १ आ. द्वि. २ विशेष लो विशेष दे, लोष | विशेष दे. मूलोष | जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश योग्य मूलोघवत ८३ | ७८ ७५ मूलोघवत् For Private & Personal Use Only ८६ उदय योग्य - आतप, साधारण, स्थावर सूक्ष्म, १-४ इन्द्रिय, तीर्थंकर, इन 8 के बिना सर्व १२२-६-११३ मिथ्यात्व अपर्याप्त =२ सम्य.. मिश्र, ३ ८२ ७८ ७५ उदय २ | हृदय ६१ ११३ ४ 1231:1 १०७ १ कुल १०३ ८३ ८० ७५ १०४ १०० ८६ १०६ मूलोघवत् पाटिका रहित ५ संहनन, प्रशस्त निहा, उच्च गोत्र, सुभग, सुस्वर, आदेय, तीर्थ, मिश्र, सम्य, आहा. द्वि, हुँडक रहित ५ संस्थान, इन ११ के बिना सर्व १२२ - ३१ ६१ १ मिथ्या आतप सूक्ष्म, साधारण, अपर्याप्त स्त्यान त्रिक, परघात, उद्योत, उच्छ्वास, दु स्वर, अप्रशस्त विहा. ( पर्याप्त के उदय योग्य) ७८ ७५ ६४ ठ - च्विति ८२ ७८ ७५ १०६ ६१ २० ५ ५ १७ १४ ३ ३ १२ ३ ४ १३ www.jainelibrary.org

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