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उदय
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६ कर्म प्रकृतियों की उदय व उदयस्थान प्ररूपणाएँ
७. नाम कर्मको उदय स्थान प्ररूपणाएँ
क्रम सकेत | अर्थ विवरण १. युगपत् उदय आने योग्य विकल्प तथा सकेत
1६ अंग/२ अगोपाग तीन अगोपांग तथा छह संहननमेंक्रम सकेत - अर्थ
विवरण
आदि २ से अन्यतम अगोपाग तथा अन्यतम
एक संहनन इस प्रकार इन प्रकृ१५/१२ बोदयी १२ । तेजस, कार्माण, वर्ण, गन्ध, रस,
तियोमे-से युगपत् २ का ही उदय स्पर्श, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ
होता है अगुरुलघु, निर्माण -१२
आतप/२ आतपादि २ २ | यु/ युगल ८ चारगति, पाँच जाति, त्रस-स्थावर
आतप-उद्योत, प्रशस्त-अप्रशस्त बादर सूक्ष्म, पर्याप्त-अपर्याप्त,सु भग
विहायो., इन दो युगलोकी चार दुर्भग, आदेय-अनादेय, यश अयश
प्रकृतियोमें-से प्रत्येक युगल की (इन ८ युगलोकी २१ प्रकृतियो में
अन्यतम एक-एक करके युगपत् २ से प्रत्येक युगलकी अन्यतम एक
ही का उदय होय |८ उच्छ/२ उच्छवासादि एक करके युगपत ८ही उदय मे
उच्छवास, सुस्वर, दु'स्वर, इनतीन आती है)
प्रकृतियोमें-से एक उच्छवास तथा
-२१ ३ आनु/१ आनुपूर्वी १ | विग्रह गतिमें चारो आनुपूर्वियोमें
अगली दोमें अन्यतम एक करके से अन्यतम एक ही उदयमें आती
युगपत् २ ही का उदय होय -३ तीर्थ।१ तीर्थ कर/१ तीर्थर प्रकृति किसीको उदय
आये किसी को नहीं ४ | श/३ शरीर आदि- औदा., वक्रि. आहा, यह तीन
शरीर ६ संस्थान, प्रत्येक-साधाको तीन
६७ रण इन ३ समूहोकी ११ प्रकृतियोंमें-से प्रत्येक समूहकी अन्यतम एक
नोट-वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श इनके २० भेदोका ग्रहण न करके केवल मूल एक करके युगपत ३ का ही उदय
४ का ही ग्रहण है, अत १६ तो ये कम हुई। बन्धन ५ व संघात ५ ये होता है
१० स्व-स्व शरीरोमे गर्भित हो गयौं, अत: १० ये कम हुई। नाम कर्म| उपधातादि १ उपघात व परघात इन दोनोमे-से
की कुल ६३ प्रकृतियों मे-से ये २६ कम कर देनेपर कुल उदय योग्य अन्यतम एकका ही उदय आवे-२ । ५
६७ रहती है, जिनके उदयके उपरोक्त विकल्प है।
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२. नाम कर्मके कुछ स्थान व भंग प्रमाण-(प सं /मा ५/१७-१८०), (ध. १५/८६-८७); (गो.क ५६३-५६७/७६५-८०२), (गो क./मू व टी ६०३-६०५/८०६-८११);
(पं स/सं १९१२ १६८) सकेत-दे. उदय ६/७/१, कार्मण काल आदि-दे उदय ६/७/६ कुल स्थान--१२ विकल्प प्रति । प्रति
विवरण स्थान | स्थान
भगोंका विवरण प्रकृति भंग स्वामित्व
प्रकृतियोका विवरण सामान्य समुद्घात केवलीके प्रतर २०११ ध्र व/१२+ यू./८ (मनु गति, पंचें जाति- त्रस, व लोकपूर्ण का कार्माण काल
बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय. यश) =२० चारों गतियों सम्बन्धी वक्र विग्रह- २१|४| धब/१२+यु/+ आनुपूर्वी/१(अन्यतम आनु) | ४ानपूर्व में अन्यतम गतिका कार्माण काल
= २१ तीर्थकर केवलीका कार्माण काल २१ १, ध्रुव/१२+ यु+तीर्थ/१ एकेन्द्रिय अपर्याप्तके मिश्र शरीर-२४ ११ धव/१२+यु/+श/३ + उ०/१
का काल एकेन्द्रियका शरीर पर्याप्ति काल २५ उपरोक्त २४+ परघात
-२५ आहारक शरीरका मिश्र काल
ध व/१२+ यु/८+श/३+उपघात+अग/१
(आहा.)=२५ देव नारकके शरीरोका मिश्र काल २५|| ध्र व/१२ + य /+श/३ + उपघात
अंग/१ (वै कि )-२५ ८ | २६ | | एकेन्द्रियका शरीर पर्याप्ति काल २६|२ ध्र व/१२+यु./+श/३+ उपघात+ परघात आतप उद्योतमें
+आतप या उद्योत
अन्यतम एकेन्द्रियका उच्छ्वासपर्याप्ति काल २६/११ धब/१२+यु.//+श/३+उपघात+
परघात+उच्छवास
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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