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एकान्त
अलेपक है: अभाता है : अकर्ता है; निर्गुण है: व्यापक है; अद्वैत है; जीव नहीं है; जीव (पृथिवी आदि चार भूतों के) समुदाय से उत्पन्न होता है; सब नहीं है अर्थात शुन्य है नाह्य पदार्थ नहीं है, सम मिरात्मक है, सम क्षणिक है; सम अक्षणिक अर्थाय निश्प है अथवा ददर्शनमेदका भी इसमें निरूपण किया जाता है। यह त्रयोगत मिथ्यात्वके भेदोंका प्रतिपादक है । गो.क. ८७७८८७-८३८६४ / १०६३ -१०७३: १. कालबाद, २ ईश्वरवाद; ३. आत्मवादः ४ नियतिवादः ५. स्वभाववाद ८७७-६ अज्ञानवाद ७. विनयवाद ८ पौरुषबाद १०; ६. देववाद ॥ १०० सयोगवाद ॥ ६२ ॥ ११. लोकवाद ॥८३॥
गो.क./८६४/२००३ जावदिया गया
होत
वादा | जावदिया णयवादा तावदिया चैव होति परसमया ॥८६४ - जितने वचनके मार्ग हैं तितने ही नयवाद हैं। जितने नयवाद हैं तितने ही परसमय है ।
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दर्शन समुचय २३ दर्शनानि पात्र समेम्यपेक्षया देवता भेदेन ज्ञातव्यानि मनीषिधि मैयासिक सास्य जैन
नं.
काय व नामानि दर्शनानामयो ३ मुल मेदोंकी अपेक्षा दर्शन वह है-मी नैयायिक, सांप, जैन, षिक तथा जैमिनीय ।
* नाभासी संघ इतिहास नीतिसार/सोमदेवरि गोलक श्वेतवासो द्राविडो याचनीय. । ह नि पिच्छिकश्चेति पञ्चैते जैनाभासा प्रकीर्तिता'। गोपुच्छक, श्वेताम्बर, द्रविड, यापनीय, निष्पिच्छ, ये पाँच जैनाभास कहे गये है (बोपाटी ६/७५ पाटी. १९/११ में उधृत (द.सा./ १२४ पर उद्धृत), विशेष दे. इतिहास (1 दसा / पृ ४१ पर उद्धृत “कष्ठास घो भुवि ख्यातो जानन्ति नृसुरासुरा' । चारो राजन् वितासिती ॥११ श्री नन्द
संज्ञश्च माथुरो बागडाभिध' । लाडवागड इत्येते विख्याता क्षिति(सुरेद्रीति) पृथिवीवर हा विख्यात है। उसे नर, सुर व असुर सब जानते है। उस संघमें चार गच्छ पृथिवी पर स्थित है - १, श्रीनन्दितट, २ माथुरगच्छ, ३. बागड-गच्छ, ४. लाड बागड़ गच्छ ।
५. एकान्त मत सूची
इनका स्वरूप दे, वह वह नाम ।
-
नाम
१| अक्रियावाद
२ अज्ञानवाद
१३ अद्वैतवाद
४ अनित्यवाद
५ अभाववाद
६ अवक्तव्यवाद
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अश्वलायन
८ अस्थूण 2 आजोवक
१० आत्मवाद ११ ईश्वरवाद ११ उदा
१३ उल्लूकमत
३०
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मत नं. नाम
| एकस्वतंत्रवाद १४ | एतिकायन
१५ ऐन्द्रदत्त
les strang
११७ कणाद
१८ कण्व
55
25
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39
"
१६
कपिल
क्रियावादी २० काणोविद्ध विनयवादी २१ कालबाद त्रैराशिवाद १२२ काष्ठासंघ प्रदर्शन २३ कुमि २४ कौरिकल २५ कोशिक वैशेषिक दर्शन २८ गार्ग्य अक्रियावाद २७ । गौतम
29
=
मत
अज्ञानवादी विनयवादी
"
असत्वादी अज्ञानवादी सल्विदर्शन
किवावादी
नं.
२८ | चारिवाद
२६ | पाक मत २०
३१ म
३२ तापस ३३गवाद २४ | त्रैराशिकलाद २५ दर्शना
२६ बाद
एकस्वतत्रवाद
जैनाभास
अज्ञानवादी किपाबादी
४६५
क्रियावादी असत्कार्यवाद
मत
३७ | द्रविड संघ
३८ द्रव्यवाद
३६ नारायण
४० नास्तिक ४१ नित्यवाद
४२ निमित्तवाद
४३ नियतिवाद
४४ नैयायिक
४५ पाराशर
४६ ४७
पुरुषबाद पुरुषार्थबाद
४८ पूरण
४६ पैप्पलाद
५० प्रकृतिवाद
५१ प्रधानवाद
५२ बादरायण २२ मोहम ५४ ब्रह्मवाद ५५ भट्टप्रभाकर
५६ भिल्लक
५७ मरीचि ५८ मस्करी
५६ माठर
६० माण्डलीक
६९ माथुर
६२ मध्यदिन ६३ | मीमांसा
नाम
एकस्व तत्रवाद परत त्रबाद एक्स्वतंत्रवाद एकदर्शन
मादी
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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सांख्यमत
एकवाद
मस्करीमत
ज्ञानवादी
६४ मुण्ड
क्रियाबाद एक दर्शन ६५ मोद विनयवादी ८८ मोगलायन
मीमांसक ६० याज्ञिक विनयवादी ६० यापनोस एकस्वतत्रवाद ६६ योगमत
७० रोमश
श्रद्धानवाद ७१ रोमहर्षिणी एकस्वतंत्रबाद ७२ लोकवाद जैनाभास
७३ वल्कल सम्पदर्शन कवित अज्ञानवादी We
७४
७५ बसु ७६ वाल्मीकि ानगा विनयवाद विपरीतवाद
७७ 195
१७६
सांख्य द
नं.
10
अज्ञानवाद एकदर्शन
अद्वैतवाद
एकाचितानिरोग
नाम
Co बेदान्त
८१ वैयाकरणीय
८२
वैशेषिक
८३
८४
मत
८७ शून्यवाद
<< श्रद्धानवाद
संयोगबाद
- मीमांसक जैनाभासी संघ ६० सत्यदत्त ११ सदाशिववाद किवादी अज्ञानवादी ६२ सम्यक्त्ववाद अक्रियावादी ६३ सांख्य क्रियाबादी १४ स्वतंत्रवाद जैनाभासीस घ ६५ स्वभावबाद अज्ञानवादी १८ हरिम एकदर्शन ६७ हारित
क्रियाबादी
प्रक्रियामाजी
एकमत
जैनाभासी संघ
सांख्य दर्शन
क्रियाबादी
विनयबी
एकबाद
अज्ञानवादी
विनयवादी
अज्ञानवादी विनयादी साद
एकवाद मिथ्यात्वका
एक भेद
एक दर्शन
एक दर्शन अक्रियावादी व्यास एलापुत्र | विनयवादी
व्यावभूति
शब्दात अद्वैतवाद शिरमत
वैशेषिक बौद्ध
एकवाद
विनयवादी
सांख्य श्रद्धानवाद एक दर्शन
एक बाद
क्रियाबादी
एकान्तानुवृद्धि - १. एकान्तानुवृद्धि
योग-स्थान- दे. योग ५: २. एकान्तानुवृधि संयम व संयमासंयम लब्धि स्थान- दे लब्धि ५ 1
एकांतिक
- सा./ता वृ. ५६/७७ एकांतिकम् नियमेनेति । एका तिक अर्थात् नियमसे ।
एकाग्रचितानिरोध ससि ६/२७/४४४/६ अयं मुखम्। एकमग्र
मस्येत्येकाग्र । नानार्थावलम्बनेन चिन्ता परिस्पन्दवतो, तस्या अन्यायी व्याव एकस्मिन नियम एकाग्र चिन्ता निरोध इत्युच्यते । 'अग्र' पदका अर्थ मुख है। जिसका एक अग्र होता है वह एकाग्र कहलाता है। नाना पदार्थोंका अवलम्बन लेनेसे चिन्ता पर स्पिन्दवती होती है। उसे अन्य अशेष मुखोंसे लौटाकर एक अग्र अर्थात् एक विषयमें नियमित करना एकाग्रचिन्तानिरोध कहलाता है। (चा. सा. १६६ / ६); ( प्र सा / त, प्र १११ ) : (स. अनु. ६७) ।
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