Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 1
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 485
________________ ओलिक ४. तीन लोकके अर्धमे अ - अधोलोक, उ = ऊर्ध्वलोक और म=मध्यलोक | इस प्रकारकी व्याख्या के द्वारा वैदिक साहित्य में इसे तीन लोकका प्रतीक माना गया है । 7) जेनाम्नायके अनुसार भी ॐकार त्रिलोकाकार घटित होता है । आगममें तीन लोकका आकार चित्र जैसा है, अर्थाद तीन वातव लयोसे वेष्टित पुरुषाकार, जिसके ललाटपर अर्द्धचन्द्राकारमें मिन्दुरूप सिद्धीक शोभित होता है मोमो हाथी के सूंड जसनाली है। यदि उसी आकारको जल्दी से लिखनेमे आबे तो ऐसा लिखा जाता है । इसीको कलापूर्ण बना दिया जाये तो 'ॐ' ऐसा ओकार त्रिलोकका प्रतिनिधि स्वयं सिद्ध हो जाता है। यही कारण है कि भेदभाव से रहित भारत. के सर्व ही धर्म इसको समान रूपसे उपास्य मानते है । 125 ५ प्रदेशापचयके अर्थमे घ. १०/४.२ ४.३ /२३/६ सिया ओमा, कवाई पदेसानमवचयदंसणा - (ज्ञानावरणकर्मका) स्पाय'ओम्' है. क्योकि क्वचिद प्रदेशोका अपचय देख जाता है। | ६. नो ओम् नो विशिष्ट ध १०/४.२,४,३ / २३/७ सिया णोमणोवि सिट्टापादेवकं पदावयवे णिरुद्ध हाणीणमभावादो। (ज्ञानावरणका द्रव्य) स्यात् नो ओम् नविशिष्ट है क्योंकि प्रत्येक पदभेदकी विवक्षा होनेपर वृद्धि हानि नहीं देखी जाती है। ७ ओकार मुद्रा अनामिका, कनिष्ठा और अगूठेसे नाक पकडना । (क्रियामंत्र पृ ८७ नोट) – दे बृ जै शब्द द्वि खंड । - ओलिक - मध्य- आर्य-खण्डका एक देश -दे मनुष्य ४ । [ औ ] औंड्र भरक्षेत्र आर्य खण्डका एकदेशमनुष् औदयिक भाव औदारिक-तियंच व मनुष्यो के इस इन्द्रिय गोचर स्थूल शरीरको बारिक शरीर कहते हैं और इसके निमित्त होनेवाला आत्मप्रदेश का परिस्पन्दन औदारिक- काययाग कहलाता है । शरीर धारण के प्रथम तीन समय मे जब तक इस शरीर की पर्याप्त पूर्ण नही हो जाती तब तक इसके साथ कार्माणशरीरको प्रधानता रहनेके कारण शरीर व योगदानो मिश्र कहलाते है । १ औदारिक शरीर निर्देश १ औदारिक शरीरका लक्षण २ औदा क शरीरके भेद * पांचों शरीरोकी उत्तरोतर सूक्ष्मता शरीर * औदारिक शरीरोकी अवगाहना दे अवगाहना ★ महामत्स्यका विशाल शरीर मून Jain Education International ४७० ★ प्रत्येक व साधारण शरीर ३ औदारिक शरीरका स्वामित्व * पाँचो शरीरोके स्वामित्वकी ओष आदेश प्ररूपणा - दे शरीर २ औदारिक * संमूर्च्छन जन्म व शरीर देन ★ गर्भज जन्म व शरीरोत्पत्तिका क्रम ४ ओदारिक शरीर के प्रदेशानका स्वामित्व ५ षट्कायिक जीवोके शरीरका आकार * औदारिक शरीरोकी स्थिति - स्थिति * औदारिक शरीरमे कुछ चिह्नविशेषोंका निर्देश ( व्यंजन व लक्षण निमित्त ज्ञान) दे. निमित्त २ ६ औवारिक शरीरमे धातुओ- उपधातुओका उत्पत्ति क्रम ★ योनिस्थानमे शरीरोत्पत्तिका क्रम - दे. पर्याप्ति २ ७ औदारिक शरीरमे हड्डियो आदिका प्रमाण * पटकालोमे हड्डियो आदिके प्रमाणमे हानि-वृद्धि -- दे. काल ४ * औदारिक शरीरके अंगोपाग * तीर्थकरो व शलाकापुरुष के दे वनस्पति - दे. अगो पांग शरीरोकी विशेषताएँ - दे तीर्थकर व शखा का * औदारिक शरीर नामकर्मके बन्ध-उदय सत्व आदि की प्ररूपणाएँ * मुक्त जीवोफा चरम शरीर * द्विचरम शरीर | — दे जन्म २ नाम * औदारिक शरीरकी संघातन परिशातन कृति - २/४.९०१/३५२-४५१ ★ ओदा रिक शरीरका धर्म साधनत्व * - दे शरीर ३ * साधुओके मृत शरीरकी क्षेपण विधि - दे जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only सल्लेखना ११ - दे मोक्ष ५ -- दे चरम २ औदारिक काययोग निर्देश १ औदारिक काययोगका लक्षण २ औहारिक मिश्र काययोगका लक्षण ३ औदारिक व मिश्र काययोग का स्वामित्व ★ पर्याप्त व अपर्यान अवस्थाओमे कार्मण काययोगके सद्भावमे भी मिश्र काययोग क्यो नही कहते ? - दे काय ३ ★ सभी मार्गणाओमे भावमार्गणा इष्ट है। - मार्गमा * सभी मार्गणा व गुणस्थानोमे आपके व्यय होनेका नियम अनुसार ही - दे. मार्गणा * औवारिक व मित्र काय-योग सम्बन्धी गुणस्थान, मार्गणास्थान व जीवसमास आदि २० प्ररूपणाएँ - दे सव www.jainelibrary.org

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