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एकान्त
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१. सम्यक् मिथ्या एकान्त निर्देश
एकसे एककी संगति-(ध ५/५ २७) -One to one corres
pondence. एकात-वस्तुके जटिल स्वरूपको न समझनेके कारण, व्यक्ति उसके किसी एक या दो आदि अल्पमात्र अंगोका जान लेने पर यह समझ बैठता है कि इतना मात्र ही उसका स्वरूप है, इससे अधिक कुछ नहीं। अत उसमें अपने उस निश्चयका पक्ष उदित हो जाता है, जिसके कारण वह उसी वस्तुके अन्य सद्भूत अंगोंको समझनेका प्रयत्न करनेकी बजाय उनका निषेध करने लगता है। उनके पोषक अन्य वादियोके साथ विवाद करता है। यह बात इन्द्रिय प्रत्यक्ष विषयोमें तो इतनी अधिक नहीं होती, परन्तु आत्मा, ईश्वर,परमाणु आदि परोक्ष विषयोंमें प्राय. करके होती है। दृष्टिको संकुचित कर देने वाला यह एकान्त-पक्षपात राग-द्वेषकी पुष्टता करनेके कारण तथा व्यक्तिके व्यापक स्वभावको कुण्ठित कर देनेके कारण मोक्षमार्गमें अत्यन्त अनिष्टकारी है । स्योद्वाद-सिद्धान्त इसके विषको दूर करनेको एकमात्र औषधि है। क्यो कि उसमें किसी अपेक्षासे ही वस्तुको उस रूप माना जाता है, सर्व अपेक्षाओसे नही। तहाँ पूर्व कथित एकान्त मिथ्या है और किसी एक अपेक्षामे एक धर्मात्मक वस्तुको मानना सम्यक् एकान्त है।
१ सम्यक् मिथ्या एकान्त निर्देश १ एकान्तके सम्यक् व मिथ्या भेद निर्देश २ सम्यक् व मिथ्या एकान्तके लक्षण * नय सम्यक् एकान्त होती है -दे नय I/२ ३ एकान्त शब्दका सम्यक् प्रयोग ★ एकान्त शब्दका मिथ्या प्रयोग
- एकान्त ४/५ ४ सर्वथा शब्दका सम्यक् प्रयोग * सर्वथा शब्दका मिथ्या प्रयोग
--दे. एकान्त ४/५ २ एवकारको प्रयोग विधि * एवकारके अयोग व्यवच्छेद आदि निर्देश -दे. 'एव' १ एवकारका सम्यक् प्रयोग २ एवकारका मिथ्या प्रयोग ३ एक्कार व चकार आदि निपातोंकी सम्यक् प्रयोग
विधि ४ विवक्षा स्पष्ट कह देनेपर एवकारकी आवश्यकता
अवश्य पडती है ५ बिना प्रयोगके भी एवकारका ग्रहण स्वत हो ही
जाता है ६ एवकारका प्रयोजन इष्टार्थावधारण ७ एवकारका प्रयोजन अन्ययोगव्यवच्छेद * स्यात्कार प्रयोग निर्देश --दे. स्याद्वाद * एवकार व स्यात्कारका समन्वय --दे, स्थाद्वाद ३ सम्यगेकान्तकी इष्टता व इसका कारण * वस्तुके अनेको विरोधी धर्मोमे कथंचित् अवरोध
दे. अनेकांत ४/५
१ वस्तुके सर्व धर्म अपने पृथक्-पथक स्वभावमे स्थित है २ किसी एक धर्म की विवक्षा होनेपर उस समय वस्तु
उतनी मात्र ही प्रतीत होती है ३ एक धर्म मात्र वस्तुको देखते हए अन्य धर्म उस समय
विवक्षित नही होते * धर्मोमे परस्पर मुख्य गौण व्यवस्था --दे. स्याद्वाद ३ ४ ऐसा साक्षेप एकान्त हमे इष्ट है * वस्तु एक अपेक्षासे जैसी है अन्य अपेक्षासे वैसी नही है
--दे अनेकान्त १/४ ४ मिथ्या-एकान्त निराकरण १ मिथ्या-एकान्त इष्ट नही है २ एवकारका मिथ्याप्रयोग अज्ञान सूचक है ३ मिथ्या-एकान्तका कारण पक्षपात है ४ मिथ्या एकान्तका कारण संकीर्ण दृष्टि है ५ मिध्या-एकान्तमे दूषण ६ मिथ्या-एकान्त निषेधका प्रयोजन ५ एकान्त मिथ्यात्व निर्देश १ एकान्त मिथ्यात्वका लक्षण २ ३६३ एकान्त मत निर्देश * ३६३ वादोके लक्षण –दे. बह वह नाम ३ एकान्त मिथ्यात्वके अनेको भंग ४ कुछ एकान्त दर्शनोका निर्देश * षट दर्शनो व अन्य दर्शनोका स्वरूप --दे. वह वह नाम * जैनाभासी संघ -दे. इतिहास ६। * एकान्तवादी जैन वास्तवमे जैन नही - जिन र ५ एकान्त मत सूची * सब एकान्तवादियोके मत किसी न किसी नयमे गभित है
-दे. अनेकान्त २/E १. सम्यक् मिथ्या एकान्त निर्देश
१.एकान्तके सम्यक व मिथ्या भेव निर्देश रा, वा, १/६/७/३/२३ एकान्तो द्विविध'---सम्यगेकान्तो मिथ्यैकान्त इति ।-एकान्त दो प्रकारका है सम्यगेकान्त और मिथ्या एकान्त । (स.भ.त ७३/१०)।
२. सम्यक् व मिथ्या एकान्तके लक्षण रा.वा.१/६/७/३५/२४ तत्र सम्यगेकान्तो हेतुविशेषसामर्थ्यापेक्षः प्रमाणप्ररूपितार्थ कदेशादेश । एकात्माबधारणेन अन्याशेषनिराकरणप्रवणप्रणिधिमिथ्र्यकान्त । -हेतु विशेषकी सामर्थ्य से अर्थात् सुयुक्तियुक्त रूपसे, प्रमाण द्वारा प्ररूपित वस्तुके एकदेशको ग्रहण करनेवाला सम्यगेकान्त है और एक धर्मका सर्वथा अवधारण करके अन्य धर्मों
का निराकरण करनेवाला मिथ्या एकान्त है। सभ.त. ७३/११ तत्र सम्यगेकान्तस्तावत्प्रमाणविषयीभूतानेकधर्मात्मकवस्तुनिष्ठ कधर्मगोचरो धर्मान्तराप्रतिषेधकः । मिथ्यकान्तस्त्वेकधर्म
पाह
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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