Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 1
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 461
________________ ऋक्षराज ऋद्धि विषय-सूची स सि १/४३/४५५/६ तर्कणमूहन वितर्क श्रृतज्ञानमित्यर्थ । -तर्कणा करना, अर्थात ऊहा करना, वितर्क अर्थात् श्रुतज्ञान कहलाता है। ध.१३/५.५.३८/२४२/८ अब गृहोताथस्य अनधिगतविशेष उह्यते तय॑ते अनया इति ऊहा। = जिससे अवग्रहके द्वारा ग्रहण किये अर्थ में नहीं जाने गये विशेषकी 'ऊह्यते' अर्थात् तर्कणा करते हैं वह ऊहा है। प.मु. ३/११-१३/२ उपलम्भानुपलम्भनिमित्त व्याप्तिज्ञानमूह' ।११। इदमस्मिन्सस्येव भवत्यसति न भवत्येवेति च ॥१२॥ यथाग्नावेव धूमस्तदभावे न भवत्येवेति च ।१३३ - उपलब्धि और अनुपल ब्धिकी सहायतासे होनेवाले व्याप्तिज्ञानको तर्क कहते हैं। और उसका स्वरूप ऐसा है -'इसके होते ही यह होता है और इसके न होते होता ही नहीं है' जैसे-अग्निके होते ही धुआँ होता है, अग्निके न होते होता ही नहीं ॥११-१३। (स./म.२८/३२१/२७) [ऋ] ऋक्षराज-(प./पु.८ श्लोक) रावण की सहायतासे इन्द्र के लोकपाल यमको जीतकर किष्कुपुरको प्राप्त किया (४८) । ऋजुगति-दे विग्रहगति २। ऋजुमति-. मन पर्ययज्ञान २ । ऋजुसूत्रनय-दे, नय III/५ । ऋण-Minus दे रिण। ऋतु-१. कालका प्रमाण विशेष-दे. गणित /११४} २. सौधर्म स्वर्गका प्रथम पटल व इन्द्रक- दे. स्वर्ग ५/३ । ऋद्धि-कायोत्सर्ग का एक दोष- व्युत्सर्ग १ । ऋद्धि-तपश्चरणके प्रभाव मे कदाचित किन्हीं योगीजनो को कुछ चामत्कारिक शक्तियाँ प्राप्त हो जाती है। उन्हे ऋद्धि कहते है। इसके अनेको भेद-प्रभेद है। उन सबका परिचय इस अधिकारमें दिया गया है। ५ संभिन्न श्रोतृत्व ऋद्धि निर्देश ६ दूरास्वादन आदि, पाँच ऋद्धि निर्देश * चतुर्दश पूर्वी व दश पूर्वी–दे श्रुतकेवली * अष्टाग निमित्तज्ञान-दे. निमित्त २ ७ प्रज्ञाश्रमणत्व ऋद्धि निर्देश १. प्रज्ञाश्रमणत्व सामान्य व विशेषके लक्षण (औत्पत्तिकी. परिणामिको, वैनयिकी, कर्मजा) २. पारिणामिकी व औत्पत्तिकीमें अन्तर ३ प्रज्ञाश्रमण बुद्धि व ज्ञानसामान्यमें अन्तर * प्रत्येक बुद्धि ऋद्धि-दे. बुद्ध ८ वादित्व बुद्धि ऋद्धि ३ विक्रिया ऋद्धि निर्देश १ विक्रिया ऋद्धि की विविधता २ अणिमा विक्रिया ३ महिमा, गरिमा व लघिमा विक्रिया ४ प्राप्ति व प्राकाम्य विक्रियाके लक्षण ५ ईशित्व व वशित्व विक्रिया निर्देश १ ईशित्व व वशित्व के लक्षण २. ईशित्व व वशित्व में अन्तर ३. ईशित्व व वशित्व में विक्रियापना कैसे है। ६ अप्रतिघात, अंतर्धान व काम रूपित्व ४ चारण व आकाशगामित्व ऋद्धि निर्देश १ चारण ऋद्धि सामान्य निर्देश २ चारण ऋद्धिकी विविधता ३ आकाशचारण व आकाशगामित्व १ आकाशगामित्व ऋद्धिका लक्षण २. आकाशचारण ऋद्धिका लक्षण ३ आकाशचारण व आकाशगामित्व में अन्तर ४ जलचारण निर्देश १ जलचारण का लक्षण २. जल चारण व प्राकाम्य ऋद्धिमें अन्तर ५ जंघा चारण निर्देश ६ अग्नि, धूम, मेघ, तंतु, वायु व श्रेणी चारण ऋद्धियों का निर्देश ७ धारा व ज्योतिष चारण निर्देश ८ फल, पुष्प, बीज व पत्रचारण निर्देश ५ तपऋद्धि निर्देश १ उग्रतप ऋद्धि निर्देश १ उग्रोग्र तप व अवस्थित उग्रतपके लक्षण * उग्रतप ऋद्धिमे अधिकसे अधिक उपवास करनेको सीमा व तत्सम्बन्धी शंका -दे. प्रोषधोपवास २ २ घोरतप ऋद्धि निर्देश ३ घोर पराक्रमतप ऋद्धि निर्देश १. ऋद्धिके भेद-निर्देश १ ऋद्धियोंके वर्गीकरणका चित्र २ उपरोक्त भेदो प्रभेदोके प्रमाण २ बुद्धि ऋद्धि निर्देश * केवल, अवधि व मन पर्ययज्ञान ऋदिधयाँ -दे. वह वह नाम १ बुद्धि ऋद्धि सामान्यका लक्षण २ बीजबुद्धि निर्देश १. बीजबुद्धि का लक्षण २ बीजबुद्धिके लक्षण सम्बन्धी दृष्टिभेद ३ बोजबुद्धिकी अचिन्त्य शक्ति व शका ३ कोष्ठ बुद्धिका लक्षण व शक्ति निर्देश ४ पादानुसारी ऋद्धि सामान्य व विशेष (अनुसारिणी, प्रतिसारिणी व उभयसारिणी) जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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