________________
उदय
६.कर्म प्रकृतियों की उदय व उदयस्थान प्ररूपणाएं
4.स./
मार्गणा |
उदय काल
थान
प्रकृतियोंका विवरण
भंगोका विवरण
मिश्र शरीर , २४ २*
-२४
शरीर पर्या.
२६]
४
शरीर पर्या काल, २१ उपरोक्त १६+पर्याप्त (सूक्ष्म बादर, यश-अयश) इन २ | अयशके साथ सूक्ष्म, बादर,
| युगलाम अन्यतम एक-एक, स्थावर, औदा. शरीर. प्रत्येक साधारणके ४ भग तथा । हडक, उपघात, परघात, प्रत्येक या साधारण =२५ / यश के साथ बादर प्रत्येकका
केडन एक भग उच्छवास, २६| ५ उपरोक्त २५+ उच्छवास
। २४ । उदय योग्य ३०, उदय स्थान-४ (११,२४,२६,२७), कुल भग-८+४ पुनरुक्त-१२ आतप उद्योत | कार्माण काल | २१, २. (उद्योत रहित की उपरोक्त १६ - बादर, पर्याप्त, स्थावर, ) यश या अयश सहित एकेन्द्रिय 1 तिर्यगानुपूर्वी
-२० सामान्य यश या अयश
=२१ | (ये भग ऊपर कहे जा चुके है) * | उपरोक्त २१+ औ. शरीर, हुंडक, उपघात,
प्रत्येक २५- तिर्य, आनु.
उपरोक्त २४+ परघात, आतप या उद्योत -२६ / यश, अयशxआतप, उद्योत उच्छवास ,,,, २७ उपरोक्त २६+उच्छवास
-२७ । ___ *नोट -२१ व २४ के दो दो भग आतप उद्योत सहित एकेन्द्रियमे गिने जा
चुके है अत' पुनरुक्त हैं। विकलेन्द्रिय सामान्य-उदय योग्य-३४ उदय स्थान-६ (२१,२६,२८,२६,३०,३१), कुल भंग-५४ १२२ । उद्योत रहित | सामान्य |५| १६ | उदय स्थान-५ (२१,२६,२८,२६,३०); भंग-१२४ ३३६
उद्योत सहित | सामान्य | १८ | उदय स्थान-५ (२१,२६,२६,३०,३१, भग-६४३-१८ उद्योत रहित | कार्माण काल २१ ३ तिर्य, गति, द्वीन्द्रिय जाति, तैजस कार्माण शरीर, । अयशके साथ पर्याप्त, अपर्याप्त द्वीन्द्रिय
वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलधु, स. बादर, स्थिर, २ भग और यशके साथ केवल अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, निर्माण यह | पर्याप्तका १भंग १८+ पर्याप्त या अपर्याप्त, यश या अयश इस प्रकार
२०+तिर्य आनु मिश्र शरीर २६
उपरोक्त २० (२१-आनु.)+औ. शरीर. हुडक, सपाकाल
टिका, औ. अंगोपांग, प्रत्येक, उपघात, २६ शरीर पर्याप्ति २८
२ । उपरोक्त २१ में से १८+ पर्याप्त, उपघात, औ. शरीर यश या अयश सहित काल
अंगोपांग, हुडक. सृपाटिका, प्रत्येक, परघात, अप्रशस्त विहायो यश या अयश
२८ उच्छवास पर्या.२६
२ उपरोक्त २८+उच्छ्वास
उपरोक्त २६+दुःस्वर
२*
२*
१३१] उद्योत सहित कार्माण काल
उद्योत रहित उपरोक्त १८+ पर्याप्त, तिर्यगानु, यश या | यश या अयश सहित द्वीन्द्रिय
अयश मिश्रशरीर काल २६
उपरोक्त १८+ पर्याप्त, औ. शरीर, अंगोपांग, हुडक, सृपाटिका, प्रत्येक, उपघात, यश या अयश
(यह २,२ भंग उद्योत रहितमें
आ चुके है) शरीर पर्याप्ति ,
उपरोक्त २६ + परधात उधोत. अप्रशस्त विहायो.-२६ । यश व अयश सहित उच्छवास ," उपरोक्त २६+ उच्छवास
-३० उपरोक्त ३०+दुःस्वर *(२१ व २६ के दो-दो भंग उद्योत सहित द्वीन्द्रियमें
गिना दिये गये है अत' पुनरुक्त हैं।) त्रीन्द्रिय चतुद्वीन्द्रियवद
द्वीन्द्रियवद रिन्द्रि. उद्योत रहित
उद्योत सहित पंचेन्द्रिय सा.-उदय योग्य-३६ उदय स्थान-६ (२१,२६,२८,२६,३०,३१); कुल भंग-४१०६ १३८ उद्योत रहित-उदय योग्य-३८, उदय स्थान-५ (२१,२६,२८,२६,३०): भंग-२६०२
उद्योत सहित-उदय योग्य-३, उदय स्थान-५ (२१,२६,२६,३०,३१); भंग-२३०४
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org