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उदय
७. पांच उदय कालोकी अपेक्षा नामकर्मोदय स्थानोंकी सामान्य प्ररूपणा संकेत '-१. कार्माण काल-विग्रह गतिका काल; कार्माण शरीरका काल: प्रतर व लोक पूरण
समुद्घातका काल २. मिश्र शरीर काल-आहार ग्रहणसे शरीर पर्याप्ति तकका काल ३. शरीर पर्याप्ति काल-शरीर पर्याप्तिसे उच्छवास पर्याप्ति तकका काल ४ उच्छ्वास पर्याप्ति काल - उच्छवास पर्याप्तिसे भाषा पर्याप्ति तकका काल
(गो.क.६०३-६०५/८०६-८११)
५. भाषा पर्याप्ति काल-भाषा पर्याप्तिमे आयुके अन्त तकका काल ६. स्थान-स्थान विशेषमें कितनी प्रकृतियोका उदय है। ७. भग-प्रति स्थान अक्ष परिवर्तनसे कितने भंग बनने सम्भव है। ८.विकल्प सं. दे. इसी प्रकरणकी सारणी सं.२ नाम कर्मके कुल स्थानोंकी प्ररूपणामें
कोष्ठक स.१ में डाले गये ६.x - यह काल सम्भव नहीं
कार्माण काल
मिश्र शरीर काल
शरीर पर्याप्ति काल । उच्छवास पर्याप्ति काल
भाषा पर्याप्ति काल
मार्गणा या समास
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स्थान
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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१ १७ प्रकार ल. अप |२| २११ तिर्य अग्नु
२ आतप-उद्योत बन साधारण सूक्ष्म . . "
६२६१ 1 व आदर पर्याप्त
पृथिवी, अप, तेज, ३रबायु.वन अप्रतिष्ठित " | ""
। प्रत्येक सू पर्याप्त ४ उपरोक्त मार्गणा बा पर्या....|२| यश या अयश " |..२ यश या अयश ८२६४ यश या अयश
"..२ यश या अयश
xआतप या उद्योत ॥२-४ इन्द्रिय अप ,
२६२ सृपाटिका+ १६ २८२ अप्रश.विहाx
२१ | २६/२ | अप्रश, बिहा. २६ | ३०२ द स्वरx ५। असंज्ञीपंचेन्द्रियअप ।
यश-अयश | २०२६२ यश या अयश
२५ ३०२ :यश या अयश ३० ३१२ यश या अयश ६ संज्ञो पंचेन्द्रिय पर्या ...,
"., २८ पूर्वोक्त ex १५ २८५७६) पूर्वोक्त २८८ १६ | २६/५७६/ पूर्वोक्तवत्
३० पूर्वोक्त'५७६४२ ४ यु के विशेष ६ संस्थानx ४२ विहायो.
स्वर ||६ संहनन नोट -न.४,५,६ के उद्योत सहित व उद्योत रहित के दो दो स्थान बन जाते है। भग यथा योग्य लगा लेना। ७] मनुष्य १२ २१ | ८ |यु/में ४ युग के विशेष,१० २६ २८८ पूर्वोक्त ८४६ संस्थान १५ | २८५७६ पू:क्त २८८ १ ६/२६ ५७६, पूर्वोक्त वद
पूर्वोक्त ५७६ x६ संहनन ११ २७१४२ बिहायो.
१४२ स्वर आहार शरीर युक्त मनु.
x६R५१ | सामान्य केवली १२० | १|
२ स्वर १० तीर्थङ्कर केवली ३२११ ११ समुद्धातगत सामान्य केव
२ स्वर " तीर्थ । नारकी | २२१/१
२८/१ केवल अप्रशस्त | केवल अप्रश.
१ | केवल अप्रशस्त १४ देव १५ | सामान्य अयोग केवली |
" " प्रशस्त " "" " प्रशस्त
" प्रशस्त १६ तीर्थ कर ,
१
१७ २८
३९७ ६. कर्म प्रकृतियोंका उदय व उदयस्थान प्ररूपणाएँ
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