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उपशम
१. उपशम निर्देश
जाने पर नियमसे कर्म पुन उदयमें आ जाते है और जीवके परिणाम पुन गिर जाते हैं। उपशम-करणका सम्बन्ध केवल मोहकर्म व तजन्य परिणामोसे ही है, ज्ञानादि अन्य भावोसे नहीं, क्योकि रागादि विकारोमें क्षणिक उतार-चढाव सम्भव है। कर्मों के दबनेको उपशम और उससे उत्पन्न जोवके शुद्ध परिणामोको औपशमिक भाव कहते हैं। १. उपशम निर्देश
१ उपशम सामान्यका लक्षण २ सदवस्थारूप उपशमका लक्षण ३ प्रशस्त व अप्रशस्त उपशम ४ उपशमके निक्षेपोकी अपेक्षा भेद * निक्षेपो रूप भेदोके लक्षण -दे निक्षेप ५ नो आगम भाव उपशमका लक्षण ६ उपशम व विसयोजनामे अन्तर * अनन्तानुबन्धी विसंयोजना -दे विसयोजना * त्रिकरण परिचय -दे. करण ३ ।। * अन्तरकरण विधान --दे अतरकरण * स्थितिबन्धापसरण --दे अपकर्षण ३ * मोहोपशम व आत्माभिमख परिणाममे केवल भाषा
का भेद है दे उपशम ६/१ २ दर्शनमोहका उपशम विधान १ प्रथमोपशम सम्यक्त्वकी अपेक्षा स्वामित्व २ प्रथमोपशममे दर्शनमोह उपशम विधि * अनादि मिथ्यादृष्टि केवल एक मिथ्या बका ही और
सादि मिथ्यावष्टि १, २ या ३ प्रकृतियोका उपशम करता है -दे. सम्यग्दर्शन IVR ३ मिथ्यात्वका त्रिधाकरण ४ द्वितीयोपशमकी अपेक्षा स्वामित्व ५ द्वितीयोपशमकी अपेक्षा दर्शनमोह उपशमविधि * द्वितोयोपशम सम्यक्त्वमे आरोहक सम्बन्धी दो मत
-दे सम्यग्दर्शन IV/३/४ ६ उपशम सम्यक्त्वमे अनन्तानुबन्धीकी संयोजनाके विधि
निषेध सम्बन्धी दो मत * पुनः पुन' दर्शनमोह उपशमानेकी सीमा
-देसम्यग्दर्शन IV)२ ३ चारित्रमोहका उपशम विधान १ चारित्रमोहकी उपशम विधि * पुनः पुनः चारित्रमोह उपशमानेकी सीमा-दे. सयम २ ४ उपशम सम्बन्धी कुछ नियम व शंकाएँ १ अ तरायाममे प्रवेश करनेसे पहले मिथ्यात्व ही रहता है २ उपशान्त-द्रव्यका अवस्थान अपूर्वकरण तक ही है, ऊपर नही
३ नवकप्रबद्धका एक आवली पर्यन्त उपशम सम्भव
नही ४ उपशमन काल सम्बन्धी शंका * दर्शन व चारित्रमोहके उपशामककी मृत्यु नही होती
-दे. मरण ३ * उपशम श्रेणीमे कदाचित् मृत्यु सम्भव -दे मरण ३ * मोहके मन्द उदयमे ही यथार्थ पुरुषार्थ सम्भव है
दे कारण III/६ ५ उपशम विषयक प्ररूपणाएँ १ मलोत्तर प्रकृतियोकी स्थिति आदिमे उपशम विषयक
प्ररूपणाएँ * दर्शन चारित्र मोहके उपशामको सम्बन्धी सत्, संख्या,
क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव व अल्पबहुत्वरूप
आठ प्ररूपणाएं -दे वह वह नाम ६ औपशमिक भाव निर्देश १ औपशमिक भावका लक्षण २ औपशमिक भावके भेद-प्रभेद * क्षायोपशमिक भावमे कथंचित औपशमिकपनेका विधि
निषेध -दे.क्षयोपशम * गणस्थानो व मार्गणा स्थानोमे यथासम्भव भावोंका
निदंश -दे, बह वह नाम * अपूर्वकरण गुणस्थानमे किसी भी कर्मका उपशमन होते हुए भी वहाँ औपशमिक भाव कैसे कहा गया
-दे. अपूर्वकरण ४ * औपशमिक भाव व आत्माभिमुख परिणाममे केवल
भाषाका भेद है-दे.औपशमिक भावका लक्षण * औपशमिक भाव जीवका निज तत्व है १. उपशम निर्देश
१.उपशम सामान्का लक्षण ध:/४,१.४५/११/२३६ उदए सकम उदए चदुसु वि दादु कमेण णो सक्क ।
उवसंत च णिधत्तं णिकाचिदं चावि जं कम्म । - जो कर्म उदय में नही दिया जा सके, वह उपशान्त कहलाता है। (ध १५/४/२७६); (गो क / ४४०/५६३) स सि २/१/१४६/५आत्मान कर्मण' स्वशक्ते कारणवशादनुभूतिरुपशम । यथा क्तकादिद्रव्य बन्धादम्भसि पङ्कस्य उपशम । आत्मामें कम की निजशक्तिका कारणवश प्रगट न होना उपशम है। जैसे कतक
आदि द्रव्यके सम्बन्धसे जल में काचडका उपशम हो जाता है। रा वा. २/१/१/१००/१० यथा सकलुषस्याम्भस कतकादिद्रव्यस पद्ि
अध प्रापितमलद्रव्यस्य तत्कृतकालुष्याभावात् प्रसाद उपलभ्यते, तथा कर्मण कारणवशादनुभूतस्वबीर्यवृत्तिता आत्मनो विशुद्विरुपशम । --जैसे कतकफल या निर्मलीके डालने से मैले पानीका मैल नीचे बैठ जाता है और जल निर्मल हो जाता है, उसी तरह परिणामोंकी विशुद्धिसे कर्मोकी शक्तिका अनुभूत रहना अर्थात् प्रगट न होना. उपशम है । (गो जी /जो.प्र८/२६/१२)
जनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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