Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 1
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 426
________________ उदीरणा २. उदीरणा व उदीरणा स्थान प्ररूपणाएं गुण स्थान उदोरणायोग्य अनुदीरणा पुन उदीरणा कुल उदीरणा | गुण स्थान | कुल उदीरणा योग्य कुल प्रकृति विशेष १२२१५ कुल प्रकृति २ उदीरणा व्युच्छित्तिको ओघ आदेश प्ररूपणा आदेश प्ररूपणा (पं.सं /प्रा./परिशिष्ट/पृ. ७४८); 4 सं /प्रा ३/४४-४८,५६-६०); यथा योग्य रूपसे उदयवत जान लेना, केवल ओघवत् ६, १३वेब (गो.क.२७८-२८१/४०७-४१०) १४३ गुणस्थानमें निर्दिष्ट अन्तर डाल देना उदोरणा योग्य प्रकृतियाँ-उदय योग्यवाली ही-१२२ संकेत-प्रकृतियों के छोटे नाम (देखो उदय ६१) ३. उत्तर प्रकृति उदीरणा को ओघ प्ररूपणा (प.स./प्रा. ३/६-७); (रा.T६/३६/६/६३१), (पं.सं.३/१४-१६) व्युच्छिन्न प्रकृतियाँ अनुदीरणा उद प्रकृत गुण स्थानकी | प्रकृत गुण स्थानमें | मरण कालसे १ अवस्थामे कभी भी। अन्यतम प्रकृति की आवली पूर्व ओघ प्ररूपणा १। आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, तीर्थ,आहा | विशेष विशेष साधारण, मिथ्यात्व -५ द्वि सम्य., मिश्र - ६।१-४ इन्द्रिय जाति , अनन्तानुसन्धी| १| मनुष्यायु २१.४ इन्द्रिय, स्थावर, अन- नारकानुपूर्व ११२ १ १११ आतप, स्थावर, चतुष्क, चारों न्तानुमन्धी चतुष्क -६ सूक्ष्म, अपर्याप्त आनुपूर्वी, मनुमिश्र मोहनीय मनु. तिर्य. मिश्रमोह/१०२ ३ ११०० साधारण मनुष्य यु | देव-आन. | १ सम्यग्मिध्यात्व ४ | अप्र. चतु, वैक्रि. द्वि, नरक चारो ६६५५१०४४१८८ | अप्रत्याख्यानावरण दुर्भग, अनादेय ७/चारों आनत्रिक, देव त्रिक, मनु तिर्य. आनु., ४, नरक व देवगति, अयश, सम्यक | पूर्वी,मन ष्यआनु.. दुर्भग, अनादेय, सम्य | बैंक्रियक शरीर व| प्रकृति, मनु- वनरक आयु अयश -१७ अंगोपांग ध्यायु ५ प्रत्या चतु, तिर्य आयु, नीच १९९८ प्रत्याख्यानावरण ४,२ सम्यक प्रकृति, २| मन ष्य व गोत्र, तिर्य गति,उद्योत तियंचगति, उद्योत, । आहा. आहा. द्वि. स्त्यानगृद्धि. |तियंच आयु मनुष्यायु ७४ | | नोचगोत्र निद्रा निद्रा, प्रचला चला, निद्रा निद्रा, प्रचला, ४ सम्यक् प्रकृति, ३ मन घ्यायु, साता असाता, मनुष्यायु-८ प्रचला,स्त्यानगृद्धि मनुष्यायु,आहासम्य, मोह, अर्धनाराच, आहारक साता असाता | कीलित, सृपाटिका -४ रक शरीर व शरीर व अंगोपांग अगोपांग ८/१ | हास्य, रति, भय,जुगुप्सा-४ | नीचेवाली तीनों अरति, शोक | १ सम्यकप्रकृति | | संहनन ६३८६ हास्य, रति, अरति, ६/११ सवेद भागमें तीनों वेद शोक भय, जुगुप्सा तीनों वेद, संज्वलन ६/७ मान क्रोध. मान, माया / माया सज्वलन लोभ १/8/ लोभ (बादर) बज्र नाराच, नाराच १० लोभ (सूक्ष्म) संहनन ११ बज्र नाराच, माराच २ नद्रा, प्रचला १२/ निद्रा, प्रचला ५२१२/ १४ । १४/५ ज्ञानावरण १२/५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, ४ दर्शनावरण अन्तराय -१४ ५ अन्तराय १३। (नाना जीवापेक्षा) :-वज्रऋषभनाराच, तीर्थङ्कर ३८ १३६ निर्माण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, ११३ ३८३८ मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, औदारिक सुस्वर, दु'स्वर,प्रशस्त-अप्रशस्त,विहायो, शरीर व अंगोपांग, तैजस व कार्मण औदा-द्वि, तेजस, कार्माण, ६ संस्थान, शरीर, छहों संस्थान, वज्रऋषभ नाराच वर्ण रस, गन्ध, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात. संहनन, वर्ण गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलधु, परघात, उच्छ्वास, प्रत्येक शरीर-२६ उपघात, उच्छ्वास, प्रशस्ताप्रशस्वमनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, सुभग,त्रस, विहायोगति,त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, भादर, पर्याप्त, आदेय, यश, तीर्थङ्कर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, उच्चगोत्र =१० मुस्वर, दुःस्वर, आदेय, यश, निर्माण, ३६ | उच्चगोत्र, तीर्थङ्कर १४ xxx बंत १/4 क्रोध Wwwwx बलल जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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