Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 1
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 407
________________ उदय ३९२ ६.कर्मप्रवृतियोंकी उदय व स्वयस्थान प्रापणाएँ सं. प्रकति विवरण विकल्प प्रति प्रति स्थान | स्थान भंगों का विवरण स्वामित्व प्रकृतियो का विवरण प्रकृति भग २६ | ३१ | ५ | तीर्थङ्कर केवलीका भाषा पर्याप्ति ३१ | १| ध्रुव/१२+ यु/+ श/३+ उपघात + परघात+ काल औ अग+बज्रऋषभ नाराच+प्रशस्त बिहायो, +तीर्थङ्कर+उच्छवास+सुस्वर -३१ २-५ इन्द्रियका भाषा पर्याप्ति काल ३१४ ध्रुव/१२+ यु./८+श/३+ उपघात + परघात २विहायो.व २स्वरों +उद्योत+औ. अंग+सृपाटिका+अन्यतम- में अन्यतम युगल विहायो + उच्छवास+अन्यतम स्वर -३१ अयोग केवली सामान्यके उदय ८१ मनु गति+पचेन्द्रिय जाति+सुभग+आदेय योग्य +यश को ति + त्रस+बादर पर्याप्त ३२ । अयोग केवली तीर्थङ्करके उदय योग्य ६१ उपरोक्त विकल्पकी ८+तीर्थ डूर - ३.५ नाम कर्म उदय स्थानोकी ओघ आदेश प्ररूपणा LI क्रम मार्गणा स्थान कुल नोट-प्रत्येक स्थानमें प्रकृतियोंका विवरण देखो इसी प्रकरणका नं.२ स्थान विशेष स्थान "नाम कर्म के कुल स्थान व भग"। प्रति स्थान भग यथायोग्य रूपसे लगा लेना। विशेषके लिए दे आगे उदय कालोंकी अपेक्षा सारणीनं.७ । ५. उदय स्थान आदेश प्ररूपणा प्रमाण सामान्य (पं.सं./प्रा.ब.सं), (गो, क.७१२-७३८/८८१/८३८); कुल क्रम गुण स्थान स्थान विशेष १. गति मार्गणा-(प.स./प्रा५/१७-११० ४१६-४२५) (पं.स./स/ | स्थान ११२-२२०. ४३१-४३६) ३. उदय स्थान ओघ प्ररूपणा नरक गति | २१,२५,२७,२८,२६ (पं.सं./प्रा.५/४०२-४१७).(गो.क ६९२-७०३/८७२-८७७);(पं.स/स.५/४१६-४२८२ २१,२४,२५,२६,२७,२८,२६,३०,३१ १मिथ्यात्व ६ । २१.२४.२५,२६,२७,२८,२६,३०,३१ | ३ | मनुष्य गति २०,२१,२५,२६,२७,२८,२६,३०,३१ २ सासादन २१,२४,२५,२६,२६,३०,३१ ८.६, सम्यग्मिध्याव २९,३०,३१ ४ | देव गति (५ । २१,२५,२७,२८,२६ अविरत सम्य. २१.२५,२६,२७,२८,२६,३०,३१ २ इन्द्रिय मार्गणा-(५. सं./प्रा. ५/१९२-१६४, ४२६-४३१); (पं. सं./ ५. विरताविरत ३०,३१ सं.१/४३७-४४१) प्रमत्त संयत २५,२७,२८,२६.३० १. एकेन्द्रिय सामान्य २१,२४,२५,२६,२७ अप्रमत्त संयत २ विकलेन्द्रिय . ६ । २१,२६,२८,२६,३०,३१ अपूर्व करण ३/ पचेन्द्रिय | १० २१,२५,२६,२७,२८,२९,३०,३१,६८ अनिवृत्ति करण ३ काय मागणा-(पं सं./प्रा./१६५४३२-४३४) सूक्ष्म साम्पराय १| पृथिवी, अप. बनस्पति ५ । २१,२४,२५,२६,२७ उपशान्त कषाय २ तेज वायु कायिक । ४ । २१,२४,२५,२६ क्षीण कषाय ३ | त्रस १० । २१,२५,२६,२७,२८,२६,३०,३१,६,८ सयोग केवली सामान्य ४. योग मार्गणा-(पं. सं./प्रा. ५/१६६-१६६, ४३५-४४०) सयोग केवली तीर्थङ्कर । १ १। चारो मनोयोग ३ | २६,३०,३१ (५चेन्द्रिय संज्ञी १४ | अयोग केवली सामान्य । १ । पर्याप्त वव) | अयोग केवली तीर्थकर । |२ सत्य असत्य उभय वचन ३ । २६,३०,३१ (पंचेन्द्रिय संज्ञी स्थान विशेष जीव समास पर्याप्त वत्) स्थान अनुभव वचन योग २६,३०,३१ (वस पर्याप्त वत) ४ औदारिक काय योग २५,२६,२७,२८,२९,३०,३१, (स ४. उदय स्थान जीव समास प्ररूपणा पर्याप्त वद) (पं.सं./प्रा./२६८-२८०); (गो.क.७०४-७११/८७८-८८१) ५ औदारिक मिश्र काययोग २४,२६,२७ (सातों अपर्याप्त बत) १ लब्ध्यपर्याप्त : ६ कार्माण काय योग २०,२१ सूक्ष्म बादर एकेन्द्रिय २१,२४ | वैक्रियक काय योग २७,२८,२६ विकलेन्द्रिय २१,२६ ८ वैक्रिय, मिश्र काय योग १ संज्ञी असंज्ञी पंचे, है | आहारक काय योग ३ । २७,२८,२४ पर्याप्त १० | आहारक मिश्र योग । १ । २५ सूक्ष्म एकेन्द्रिय २१,२४,२५,२६ मादर एकेन्द्रिय २१,२४,२५,२६,२७ ५ वेद मार्गणा-(पं. सं./प्रा./२००, ४४१) विकलेन्द्रिय २१,२६,२८,२६३१ १. स्त्री वेद । ८ । २१,२५,२६,२७,२८,२९,३०,३१ असंही पचेन्द्रिय २ पुरुष वेद मंज्ञी पंचेन्द्रिय २१,२५,२६,२७,२८,२६,३०,३१ ३ नपुंसक वेद ह । २१,२४,२५,२६,२७,२८,२६,३०,३१ २५ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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