Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 1
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 406
________________ उदय ६.कर्म प्रकृतियो की उदय व उदयस्थान प्ररूपणाएं विवरण विकल्प प्रति प्रति स्थान | स्थान | प्रकृति' भग भंगोंका विवरण स्वामित्व प्रकति प्रकृतियोका विवरण । २७ २८ । १७ २६ । २० २.५ इन्द्रिय सामान्य तिर्य मनु.ब २६६ ध्र व/१२+यु+श/३+ उपघात+ औदा. अन्यतम संहननसे निरतिशय केवलीका औदारिक अगोपाग+ अन्यतम संहनन २६ भंग होते है मिश्र काल आहारक शरीर पर्याप्ति काल २७ ध्रब/१२+ यु/८+श/३+ उपधात+ परघात+आहा.अग+प्रशस्त विहायो -२७ तीर्थ कर समुद्धात केवलीका औ २७ | १/ धब/१२ + यु/८+श/३+ उपघात+औ. मिश्र काल अग+ बज्र मषभ नाराचसहनन + तीर्थ कर-२७ देव नारकी का शरीर पर्याप्ति काल २७ / २६व/१२+यु/८+श/३+ उप.+परघात+वै कि. प्रशस्त अप्रशस्त अग+देवके प्रशस्त व नारको के अप्रशस्त बिहायो, विहायो में अन्यतम एकेन्द्रियका उच्छ. पर्याप्तिकाल २७२ ध्र व/१२+ यु+श/३+ उपघात+परघात | आतप उद्योतमें +उच्छ्वास+ आतप या उद्योत -२७ अन्यतम सामान्य मनुष्य और मूलशरीरमें २८ १२ ध्रुव/१२+ यु/८+श/३+उपघात+परपात ६ सहनन४२ विहायो प्रवेश करता सामान्य केवलीका औ अग+ अन्यतम सहनन+अन्यतम | में अन्यतम युगल शरीर पर्याप्ति काल विहायो -२८ २-५ इन्द्रियका शरीर पर्याप्ति काल २८२ धब/१२+ यु/८+श/३+ उप + परघात+औ अंग २ विहायोगतिमें +असंप्राप्त सृपाटिकासहनन+अन्यतम विहायो अन्यतम आहारकका उच्छ्वास पयः प्ति २८१ ध्र व/१२+ यु/८+श/३+ उपघात+ परघात + आहा अग+ उच्छ्वास + प्रशस्त विहायो. देव नारकीका उच्छवास पर्याप्ति २८२५ ब/१२+ यु/+श/३+ उपघात+परघात+ | २ विहायो में काल | वैकि अग+ उच्छवास + देवकी प्रशस्त और अन्यतम नारकीकी अप्रशस्त विहायो. सामान्य मनुष्य व मुल शरीरमें २६१२ धुव/१२ + यु/+श/३+उपघात+परघात ६ स हननx२ विहायो प्रवेश करते केवलीका उच्छवास औ, अंग+ अन्यतम संहनन + अन्यतम में अन्यतम युगल पर्याप्ति काल विहायो + उच्छवास २-५ इन्द्रियका शरीरपर्याप्ति काल २९ | २ ध्रुव/१२+ यु./८ + श/३ + उपघात + परघात २विहायोमें अन्यतम +उद्योत+औ. भग+ अस प्राप्त सुपाटिका संहनन+ अन्यतम विहायो २६ २-५ इन्द्रियका उच्छ्वासपर्याप्ति काल 8 | २ | उपरोक्त २६-उद्योत + उच्छ्वास २६ समुद्धात तीर्थंकरका शरीर पर्याप्त-२818| धव/१२+ यु/८+श/३+ उपघात+ परघात काल +औ.अंग+वज्र ऋषभ नाराच संहनन+ प्रशस्त विहायो + तीथ कर -२६ आहारक शरीरका भाषा पर्याप्ति २६ | १] धुव/१२+ यु/+श/३+उपधात+परधात+ काल आहा अंग+ उच्छवास+प्रशस्त विहायो, +सुस्वर देव नारकीका भाषा पर्याप्ति २६ | २ | धब/१२+ यु./८+श/३+ उपधात+ परघात देव व नारकीके दो काल +वैक्रि. अग+ उच्छवास+देवकी प्रशस्त विकल्प और नारकीकी अप्रशस्त विहायो.+देवका सुस्वर और नारकीका दुःस्वर -२६ २-५ इन्द्रियका उच्छ्वास पर्याप्ति ३०२ धव/१२ + यु./८+श/३+ उपघात+परघात २ विहायो.में काल +उद्योत + औ. अग+ असंप्राप्त सूपाटिका अन्यतम सहनन+ अन्यतम विहायो.+उच्छ्वास-३० २-४ इन्द्रिय तथा सामान्य पंचे- ३०। ४ धब/१२+ यु./८+श/३+ उपघात+परघात । २विहायो व २स्वर न्द्रिय व सामान्य मनुष्यका भाषा औ. अग+ स्पाटिका संहनन + अन्यतम- में अन्यतम पर्याप्ति काल विहायो+उच्छ्वास + अन्यतम स्वर ३० । समुद्धात तीर्थ करका उच्छ्वास धव/१२+ यु./८+श/३+उपधात+परघात । पर्याप्ति काल +औ. अग+वज्र ऋषभ नाराच+प्रशस्त विहायो.+तीर्थ +उच्छ्वाम -३० सामान्य समुद्धात केवलीका भाषा ३०२ उपरोक्त विकल्पको ३०-तीर्थकर + अन्यतम स्वर २ स्वरों में अन्यतम | पर्याप्ति काल जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506