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उदय
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६ कर्म प्रकृतियोंकी उदय व उदयस्थान प्ररूपणाएँ
स्थान
३-१४
|१०४
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९० | १
मार्गणा | गुण व्युच्छिन्न प्रकृ तयाँ अनुदय । पुन' उदय
उदय उदय अनुदय पुनः । कृत व्युच्छि,
पुन' | कुत व्यच्छि ,
| उदय | उदय । ७. ज्ञान मार्गणा--(गो क./म. ३२३-३२५/४६२-४६५) मतिश्रुत अज्ञान उदय योग्य-आहा द्वि., तीर्थंकर, मिश्र. सम्य., इन ५ के बिना सर्व १२२-५- ११७
मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, नारक आनु. ६ अनन्तानुबन्धी चतु, १-४ इन्द्रिय, स्थावर
गुणस्थान सम्भव नहीं विभग ज्ञान
उदय योग्य--१४ इन्द्रिय, आतप, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, आन. चतु , आहा. द्वि., तीर्थकर, मिश्र,
सम्य, मोह इन १८ बिना सर्व १२२-१८-१०४ मिथ्यात्व अनन्तानुबन्धी चतु
| १०३ | ४
गुणस्थान सम्भव नहीं मति, श्रुत,
उदय योग्य :-मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, १-४ इन्द्रिय, स्थावर, अनन्ता चतु मिश्र मोह इन अवधिज्ञान
१५ के बिना सर्व-१२२-१५- १०७ | ४ मूलोधवत
-१७ | तीथ, आ. ।
| द्वि-३ ।
--- मूलोघवत मन पर्यय ज्ञान | - | उदय योग्य -१-५ तक के गुण स्थानों में ओघवत् व्युच्छिन्न ४०+ तीर्थकर, आहा- द्वि. व स्त्री नपुंसक वेद इन
४५ के बिना सर्व-१२२-४५-७७ ६ |स्त्यानगृद्धि त्रिक
| | । । ७७ | ३ - मुलं घबत् । विशेष इतना कि हमें में एक पुरुषवेद की ही व्युच्छित्ति कहना। केवल ज्ञान -- | उदय योग्य –ोध प्ररूपणाके १३वे १४वें गुणस्थानो में व्युच्छिन्न कुल ४२ ।। १३-१४
- मूलोधवत् । १३वें में तीर्थंकर का पुन उदय न कहना ८. संयम मार्गणा-(गो. क./जी. प्र. ३२४/४६५-४६६) सामायिक | - उदय योग्य .-ओघ प्ररूपणामें कथित ६ठे गुणस्थान में उदय योग्य-८१ छेदोष.
- मूलोववव परिहार विशुद्धि उदय योग्य --खी व नपुंसकवेद तथा आहारक द्वि इन ४ के बिना सामायिक सयतय ८१-४-७७
स्त्यानत्रिक, सम्य., ३ अशुभ संहनन
उदय योग्य '--ओघ प्ररूपणाके १०वें गुणस्थान में उदय योग्य = ६० सूक्ष्म साम्पराय
मूलोधवव उदय योग्य --ओध प्ररूपणाके ११वे गुणस्थानमें उदय योग्य-५६ यथा ख्यात
- मूलोधव देश संयत उदय योग्य '--ओघ प्ररूपणाके वे गुणस्थानमें उदय योग्य-२७
- मूलोधवत असंयत
उदय योग्य .--तीर्थकर व आहा. द्वि इन ३ के बिना सर्व १२२-३-११६ आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण,
मिश्र, सम्य-२। मिथ्या. २-४
- मूलोधवत ९. दर्शन मार्गणा-गो क /जी प्र. ६२५/४६९-४७०) चक्षुदर्शन
उदय योग्य ----साधारण, आतप, १-३ इन्द्रिय, स्थावर, सूक्ष्म, तीर्थ कर इन के बिना सर्व १२२-८-११४ मिथ्यात्व, अपर्याप्त
२ | सम्य., मिश्र, ।
आ द्वि-४ | अनन्तानुबन्धी ४, चतुरिन्द्रिय -५ | नारकानुपूर्वी
मूलोधवत
18
४
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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