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उत्कर्षण
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उत्कर्षण
जात्रावली तदुक्कस्सं। उवरीदो णिक्खेओ वरं तु बधिय ठिदि जेछ ।६। बोलिय बंधावलियं उक्कट्ठिय उदयदो दु णिक्खि बिय । उबरिमसमये विदियावलिपढमुक्कट्टणे जादो ।६३। तकालवजमाणे वारद्विदीए अदेत्थियावाह । समयजुदावलीयाबाहूणो उक्कस्सठिदिबको ६ मन भाषाकार कृत विस्तार -अभ्याधात विष स्थितिका उत्कर्षण होते विधान कहिए है। पूर्व जे सत्ता रूप निषेक थे तिनिविषै जो अन्तका निषेक था ताका द्रव्यको उत्कर्षण करनेका समय विष बन्ध्या जो समयप्रबद्ध, ती हि विषै जो पूर्व सत्ताका अन्तनिषेक जिस समय उदय आवने योग्य है तिसविर्ष उदय आबनेयोग्य बन्ध्या समयप्रबद्धका निषेक, तिस निषेकके उपरिवर्ती आरलीका असख्यात भागमात्र निषेक्को अतिस्थापना रूप राखि तिनिके उपरिवती जे तितने ही आवली के अस ख्यातभागमात्र निषेक तिनि विर्षे तिस सत्ताका अन्त निषेकका द्रव्यको निक्षेपण करिए है। यह उत्कर्षण विर्ष जघन्य अतिस्थापना और जघन्य निक्षेप जानना । सदृष्टि- कल्पना करो कि पूर्व सत्ताका अन्तिम निषेक जिस समय उदय होगा उस समय में वर्तमान समयबद्धका ५०वाँ निषेक उदय होना है तहाँ तिस ५०वेसे ऊपर ५१ आदि आ ५०/अस भिषेक अर्थात १६/
४४ निषेक अर्थात ५१-५४ निषेकोको अतिस्थापना रूप रखकर तिनके ऊपरवाले आवलीके असंख्यातभागमात्र १५४-५८) निषेकोंमें निक्षेपण करता है। तहाँ ५१-५४ तो आ./असं मात्र निषेक अतिस्थापना रूप है और (५४-५८) आ./असं मात्र निषेक ही निक्षेप रूप है। यह जघन्य अतिस्थापना व जघन्य निक्षेप है।-दे आगे यत्र । तिस पूर्व सबके अन्त निषेक्ते लगाय ते नीचेके ( सत्ताके उपात्तादि) निषेक तिनिका (पूर्वोक्त ही विधानके अनुसार) उत्कर्षण होते, निक्षेप तौ पूर्वोक्त प्रमाण ही रहै अर अतिस्थापना क्रमतै एक-एक समय बॅधता होइ सो यावत आवली मात्र उत्कृष्ट अतिस्थापना होइ तावत् यह क्रम जानना । (यहाँ अतिस्थापना तो ३६-५४ और निक्षेप ५५-५८ हो जाती है यथा-संदृष्टि-अक सदृष्टि करि सत्ताके अन्त निपेकको उपांत निषेक जिस समय विषै उदय होगा तिस समय हाल बन्ध्या समयप्रबद्धका ४६वाँ निषेक उदय होगा। सो तिस उपान्त निषेकका द्रव्य उत्कर्षण करि ताको ५०वाँ आदि (५०-५४) पाँच निषेकनिको अतिस्थापना रूप राखि ऊपरि ५५वों आदि (२५-५८) चार निषेकनिविषै निक्षेपण करिए । बहुरि ऐसे ही उपांत निषेकतै निचले निषेकनिका द्रव्य उत्कर्षण करते. बन्ध्या समय प्रबद्धका क्रमते ४६वाँ, ४८वाँ आदितै लगाइ छ , सात, आठ आदि एक-एक बंधते निषेक अतिस्थापना रूप राखि ५५वों आदि (पूर्वोक्त ही ११.५८) निषेकनिविर्षे निक्षेपण करिए है। तहाँ हाल बन्ध्या समय प्रबद्रका ३८वॉ निषेक जिस समयविर्ष उदय होगा तिस समय विषै उदय आवने योग्य जो पूर्व सत्ताका निषेक ताका द्रव्यको उत्कर्षण करते हालबन्ध्या समयप्रबद्धका ३६वाँ आदि १६ निषेकनिकौ (अर्थात् आवली प्रमाण निषेकनिकौ) अतिस्थापनारूप राबै है । सो यह उत्कृष्ट अतिस्थापना है। इहाँ पर्यन्त (पूर्वोक्त ही) ५ आदि (५५-५८) चार निषेकनिविषै निक्षेपण जानना।
बहुरि आवलीमात्र अतिस्थापना भये पीछे, ताके नीचे-नीचेके निषेकनिका उत्कर्षण करते अतिस्थापना तौ आवलीमात्र ही रहै अर निक्षेप क्रमते एक-एक निषेकरि बंधता हो है। अंक संदृष्टि करि जैसे हाल बन्ध्या समयप्रबद्धका ३७वाँ निषेक जिस समय उदय होगा तिस समय विषै उदय आवने योग्य सत्ताके निषेकको उत्कर्षण होते (पश्चादानुपूर्वीसे) ३८वाँ आदि १६ निषेक (३८-५३) अतिस्थापना रूप हो है, ५४वाँ आदि पाँच निषेक (५४-५८) निक्षेप रूप हो है। बहुरि ताके नीचेके निषेकका उत्कर्षण होते ३७वॉ आदि (३७-५२) १६ निषेक अति स्थापना रूप हो है। ५३वाँ आदि (५३-५८) छ' निषेक निक्षेप रूप हो है । ऐसै अतिस्थापना तौ तितना ही अर निक्षेप क्रमते बंधता जानना । उत्कृष्ट निक्षेप कहाँ होइ सो कहिए
है । कोई जीव पहिले उत्कृष्ट स्थिति बान्ध पीछे ताकी आवाधा विषै एक आवली गमाइ ताके अनन्तर तिस समयप्रबद्धका जो अन्तका निषेक था ताका अपकर्षण कीया। तहाँ ताके द्रव्यको (सत्ताके) अन्तके एक समयाधिक आवलीमात्र निषेकनिविषै तौ न दीया, अवशेष वर्तमान समय विषै उदय योग्य निषेक तै लगाइ सर्व निषेककनि विषै दीया। ऐसे पहिले अपकर्षण कीया करी। बहूरि ताकै ऊपरिवर्ती अनन्तर समय विषै, पूर्व अपकर्षण किया करते जो द्रव्य उदयावली (द्वितीयावली) का प्रथम निषेक विषदीया था ताका उत्कर्षण किया। तब ताके द्रव्यको तिस उत्कर्षण करनेका समय विषे बन्ध्या जो उत्कृष्ट स्थिति लिये सययप्रबद्ध, ताके आमाधाको उल्लघ पाइये है जे प्रथमादि निषेक, तिनि विषै, अन्तकै समय अधिक आवलीमात्र निषेक छोडि अन्य सर्व निर्ष कनि विषै निक्षेपण करिए है। इहाँ एक समय अधिक आवली करि युक्त जो आबाधा काल तौहि प्रमाण तौ अतिस्थापना जानना । काहेतै सो कहिए है-जिस द्वितीयावलोका प्रथम निषेकका उत्कर्षण किया सो तो वर्तमान समयतै लगाइ एक-एक समय अधिक आवली काल भए उदय आवने योग्य है । अर जिन निषेकनिविषे निक्षेपण किया है, तै वर्तमान समयतै लगाइ बन्धी स्थितिका आबाधाकाल भये उदय आवने योग्य है। सो इनि दोऊनिके बीच एक समय अधिक आबलीकरि युक्त आबाधाकाल मात्र अन्तराल भया। द्वितीयावलीके प्रथम निषेकका द्रव्यको बीचमें इतने निषेक उल्लघ ऊपरिके निषेकनि विषै दीया सोइ इहाँ अतिस्थापनाका प्रमाण जानना । बहुरि इहाँ एक समय अधिक आवली करि युक्त जो आबाधाकाल तीहिं करि ह'न जो उत्कृष्ट कर्म स्थिति तीहि प्रमाण उत्कृष्ट निक्षेप जानना। काहे ते सो कहिए है
एक समय-अधिक आवली मात्र तो अन्तके निषेकनिविर न दीया अर आबाधाकाल विधै निषेक रचना ही नही, सातै उत्कृष्ट स्थितिविर्षे इतना घटाया। इहाँ इतना जानना- अपकर्षण द्रव्य का नीचले निषेकनिबिषै निक्षेपण कीया ताका जो उत्कर्षण होइ तौ जेती बाकी शक्तिस्थिति होइ तहाँ पर्यत ही उत्वर्षण होइ, ऊपर न होइ । शक्तिस्थिति कहा सो कहिये है-विवक्षित समय प्रमद्धमा जो अन्तका निषेक ताकी तो सर्व ही स्थिति व्यत्ति स्थिति है.बहुरि ताके नीचे नीचेके निषेक निके क्रमते एक समय धाटि, दोय समय घाटि, आदि स्थिति व्यक्तिस्थिति है । बहरि प्रथमादि निषेक निक सर्व ही स्थिति शक्तिस्थिति है । सो उत्कर्षण कीया द्रव्य को, मैती शक्तिस्थिति होइ तहाँ पर्यंत ही दीजिये है, महुरि पूर्वे निक्षेप अतिस्थापना कहा ताका अक संदृष्टिकरि स्वरूप दहिये है--संदृष्टि-जैसे पूर्वे समयप्रबद्ध हजार समयकी स्थिति लिये बन्ध्या। तामें सोलह समय व्यतीत भये अन्त निषेक का द्रव्यको अपवर्षणकरि आमाधाके ऊपरि तिस स्थिति निषेक थे, तिमविर्षे १० निषेक (समय अधिक आवली) को छोडि अन्य सर्व निषेक निविष द्रव्य दीया । बहू रि ताकै अनन्तर समय विर्ष जो तिस अन्त निषेव का द्रव्य, जो उत्कर्षण क रनेका समय से लगाय १७ समय विषै उदय आव ने योग्य ऐसा द्वितीयावली का प्रथम निषेक तिसकि दीपथा ताका उत्कर्षमा किया, तब तीहि समय विर्ष १०८० समय प्रबद्ध प्रमाण स्थितिबन्ध भया । ताकी ५० समय प्रमाण तो आबाधा है और १५० निषेक है। तिनि निषेकनि विषै अन्तके १७ निषेक छोड़ अन्य सर्व निषेकनि विधै तिस उत्कर्षण कीया द्रव्यको निक्षेपण करिए है। ऐसे इहा वर्तमान समय तै लगाय जाका उत्कर्षण कीया सो तो सतरहवे (१७३) स्मय विषै उदय आबने योग्य था, जिस बन्ध्या समयप्रबद्धको प्रथम निषैवविय दीया, सो ५१वॉ समय विषै उदय आवने योग्य भया । सो इनिके बीचि अन्तराल समय भया। सोई अतिस्थापना जानना । बहुरि १००० समयकी स्थितिविषै ५० समय आनाधाके और १७ निषेक अन्तके घटाय अवशेष ६३३ निषेक निविषै
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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