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उक्त
५ ईहा व अनुमानमे अन्तर
भिन्न-भिन्न
घ. १३/५५.२३/२२७/११ नानुमानमीहा, तस्य अनवगृहीतार्थ विषयत्वात् न च अत्रगृहोतानवगृहोतार्थविषययो ईहानुमानयोरेकत्वम्. भिन्नाधिकरणयोस्तद्विरोधात् । किं च--नानयोरेकत्वम्, स्वविषयादनियोविरोधात ईहा अनुमान ज्ञान नही है, क्योकि अनुमान ज्ञान अनवगृहीत अर्थको विषय करता है, और अवगृहीत अर्थको विषय करनेवाले ईहाज्ञान तथा अनवगृहीत अर्थको विषय करनेवाले अनुमान ज्ञानको एक मानना ठीक नहीं, क्योंकि भिन्न-भिन्न अधिकरणमासे होनेसे उन्हें एक माननेमें विरोध आता है। एक कारण यह भी है कि ईहा ज्ञान अपने विषयसे अभिन्न रूप लिगसे उत्पन्न होता है, और अनुमान ज्ञान अपने विषयसे भिन्न रूप लिंगसे उत्पन्न होता है, इसलिए इन्हे एक माननेमें विरोध आता है।
* ईहा व भूतज्ञानने अन्तरान 1/2
* ईहा व अवग्रहमे अन्तर - दे. अवग्रह २/१/२
* ईहादि तीन ज्ञानोंको मतिज्ञान व्यपदेश सम्बन्धी शंका समाधान दे. मतिज्ञान ३ ।
* ईहा व धारणामे अन्तर (वे धारणा २)
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उक्त मतिज्ञानका एक विकल्प दे मतिज्ञान ४ । उग्रतप एक वृद्धिदेि उग्रवंश- एक पौराणिक वंश - दे. इतिहास १० / ३ उग्रसेन (भारतीय इतिहास १/२८६)- अपर नाम जनकथा अत दे. जनक । राजुनके पिता । - दे. वृहत् जैन शब्दार्णव द्वितीय खंड | म पु. सर्ग श्नो मथुराका राजा व कंसका पिता था । ३३-२३ । पूर्वभवक वैरसेकसने इनको जेल में डाल दिया था । २५-२६। कृष्ण द्वारा कंसके मारे जानेपर पुन इनको राज्यकी प्राप्ति हो गयी ।३६-५१ उग्रादित्याचार्य" (यु. अनु. / ४६ प जुगल किशोर) यह ई श /६ पूर्वार्ध के एक ब्राह्मण आचार्य थे। आपने 'कल्याणकारण' नामक एक वैद्यक ग्रन्थ लिखा है (तो ३/२५०) उच्चकुलउच्चगोत्र — वर्ण व्यवस्था १
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दे. वर्णव्यवस्था १ ।
दे
। उच्चाराको प्रचार कहते हैं औदारिक शरीरमें उसका प्रमाण दे औदारिक १/७
उच्चारणाचार्य - आपने यतिवृषभाचार्य कृत कषाय प्राभृतके चूर्ण सूत्रोंपर विस्तृत उच्चारणवृत्ति लिखी थी। अतः यतिवृषभाचार्य के अनुसार आपका समय लगभग ई. श. २ तथा ३ के मध्य कहीं होना चाहिए। ( ती २ / ६५) ।
उच्छ्वास स. सि ५/१६ / २८८/१ वीर्यान्तरायज्ञानावरणक्षयोपशमाहोपाइनामोदयापेक्षारमनाउदस्यमान' को वायुरुष वास प्राण इत्युच्यते नीर्यान्तराय और ज्ञानावरण क्षयोपशम तथा अंगोपांग नामकर्म के उदयकी अपेक्षा रखनेवाला आत्मा कोष्ठगत
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उच्छवास
जिस वायुको बाहर निकालता है, उच्छ्वासलक्षण उस वायुको प्राण कहते है। (वा ३/११/२४/४०३/२०) (गो की जी ६०६/१०६२/१९) ६/११-१२०/६०/१) समुच्छ् वास ।" साँस लेनेको उच्छवास कहते है ।
२ श्वासोच्छ्वास या आनप्राणका लक्षण
प्र सा / त प्र ६४६ उदञ्च नन्यञ्चनात्मको मरुदानपानप्राण । =नीचे और ऊपर जाना जिसका स्वरूप है, ऐसी वायु श्वासोच्छ्वास या आनप्राण है 1
गो जी / जी प्र ५७४ /१०१८/११ में उद्धृत अड्ढस्स अणलस्स य विरु वहदस्स य हवेज्ज जीवस्स उस्सासाणिस्सासो एगो पाणोति आहीदो । जो कोई मनुष्य 'आढ्य' अर्थात् सुखी होइ आलस्य रोगादिकरि रहित होइ, स्वाधीनताका श्वासोच्छ्वास नामा एक प्राण कहा है इसीसे अन्तर्मुहूर्तको गणना होती है।
३ उच्छ्वास नाम कर्मका लक्षण
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स. सि. ८ / ११ / ३६१/६ यद्धेतुरुच्छ् वासस्तदुच्छ् वासनामा । जिसके निमित्तसे उपवास होता है वह उच्यूमास नाम है (रावा. ८/११/१७/४/०८/६). (गो. क / जी. प्र. ३३ / २२ / २१)
),
ध ६/१, ६-१, २८/६ ०/१ जस्स कम्मस्स उदएण जीवो उस्सासक्ज्जुप्पाarrant होदि तस्स कम्मस्स उस्सासो त्ति सण्णा: कारणे कज्जुबारादो । - जिस कर्म के उदयसे जीव उच्छ्वास और निश्वासरूप कार्यके उत्पादनमें समर्थ होता है, उस कर्मको 'खास' यह सज्ञा कारण में कार्य के उपचारसे है ।
४ उच्छ्वास पर्याप्ति व नामकर्ममे अन्तर
रा. बा. ८/११/१२/१२/०१/१५ अत्राह प्राणापानकर्मोदये वायोनिष्क्रमणप्रवेशात्मक फलम् उच्छ्वासकर्मोदयेऽपि तदेवेति नास्त्यनयोविशेष इति उच्यते सनिवस्य पचेद्रियस्य यावुच्छ वासनिश्वासी दीर्घनादी श्रोत्रस्पर्शनेन्द्र तावुवासनामोदयनीयौ तु प्राणापानपर्या सिनामोदयकृती (ती) सर्वससारिणां श्रोत्रस्पर्शानुपलभ्यत्वादतीन्द्रियौ । = प्रश्न - प्राणापान पर्याप्त नाम कर्म के उदयका भी वायुका निक्लना और प्रवेश करना फल है, और उच्छ्वास नामकर्म के उदयका भी वही फल है । इन दोनोंमे कोई भी विशेषता नहीं है ' उत्तर-प चेन्द्रिय जीवोके जो शीत उष्ण आदिसे लम्बे उच्छवास निःश्वास होते है वे श्रोत्र और स्पर्शन इन्द्रिय के प्रत्यक्ष होते है और श्वासोच्छ्वास पर्याप्त तो सर्व मंसारी जीवोके होती है, वह यो स्पर्शन इन्द्रिय से ग्रहण महीको जा सक्सी।
५ नाडी व श्वासोच्छ्वासके गमनागमनका नियम
ज्ञा २६/१०-११ षोडशप्रमित कैश्चिन्निर्णीतो वायुसंक्रम । अहोरात्रमिते काले यथाक्रम १० पट साम्यधिकान्याहु सखायेविशति । अहोरात्रे नरि स्वस्ये प्राणवायोग मागनी ह यह पवन है सो एक नाडीमे नालीद्वयसाद्ध कहिए अढाई घडी तक रहता है, तत्पश्चात् उसे छोड अन्य नाडी में रहता है। यह पवनके ठहरने के काका परिमाण है ॥८६॥ किन्ही किन्हीं आचायोंने दोनों नाडियोमे एक अहोरात्र परिमाण कालमें पवनका सक्रम क्रमसे १६ बार होना निर्णय किया है | १०| स्वस्थ मनुष्य के शरीर में प्राणवायु श्वासोच्छ्बासका गमनागमन एक दिन और रात्रि में २१६०० बार होता है । ६१ । ६ अन्य सम्बन्धित विषय
* प्राणपान सम्बन्धी विषय - दे. प्राण | * उवास प्रकृतिके बंध उदय सत्व वहनाम उच्छ्वास ★ उच्छ्वास निःश्वास नामक काल प्रमाणका एक भेद
-दे गणित 1 / १/४
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