Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 1
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 379
________________ उदय ८ ध्रुवोदयी प्रकृतियाँ * स्वोदय परोदय बन्धी आदि प्रकृतियाँ- दे. उदय / ७ २ उदय सामान्य निर्देश १ कर्म कभी बिना फल दिये नही झडते * कर्मोदयके अनुसार ही जीव के परिणाम होते है * कर्मोदयानुसार परिणमन व मोक्षका समन्वय दे. कारण IV/ दे. विभाग/४ ★ कमदयकी उपेक्षा की जानी सम्भव है २ उदयका अभाव होनेपर जीवमे शुद्धता आती है। ३ कर्मका उदय द्रव्य क्षेत्रादिके निमित्त से होता है ४ द्रव्य क्षेत्रादिकी अनुकूलतामे स्वमुखेन और प्रतिकूलतामें परमुखेन उदय होता है ५ विना फल दिये निर्जीर्ण होनेवाले कर्मोकी उदय संज्ञा कैसे हो सकती है ? ६ कर्मोदयके निमित्तभूत कुछ द्रव्योंका निर्देश ७ कर्मप्रकृतियोंका फल यथाकाल भी होता है और अयथाकाल भी ८ बन्ध, उदय व सत्त्वमे अन्तर * कषायोदय व स्थितिबन्ध व्यवसाय स्थानोमे अन्तर -a. अध्यवसाय * उदय व उदीरणामे अन्तर-- दे. उदीरणा * ईर्यापथकर्म -- द ईर्यापथ - दे. कारण III / ५ ३ निषेक रचना १ उदय सामान्यको निषेक रचना २ सत्वकी निषेक रचना ३ सत्व व उदयागत द्रव्य विभाजन ४ उदयागत निषेकोंका त्रिकोण यन्त्र ५ सत्त्वगत निषेकका त्रिकोण यन्त्र ६ उपशमकरण द्वारा उदयागत निषेक रचनामे परिवर्तन ४ उदय प्ररूपणा सम्बन्धी कुछ नियम १ मूल प्रकृतिका स्वमुख तथा उत्तर प्रकृतियोका स्व व परमुख उदय होता है २ सर्वपातीमे देशघातीका उदय होता है, पर देशघातीमे सर्वघातीका नही निद्रा * निद्रा प्रकृतिके उदय सम्बन्धी नियम ३ ऊपर ऊपरकी चारित्रमोह प्रकृतियोंमे नीचे-नीचेवाली तज्जातीय प्रकृतियों का उदय अवश्य होता है। ४ अनन्तानुबन्धीके उदय सम्बन्धी विशेषताएं ५ दर्शनमोहनीयके उदय सम्बन्धी नियम Jain Education International विषयसूची ६ चारित्र मोहनीयकी प्रकृतियोमे सहवर्ती उदय सम्बन्धी नियम ७ नामकर्म की प्रकृतियोंके उदय सम्बन्धी ३६४ १ चार जाति व स्थावर इन पाँच प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति सम्बन्धी दो मत । २ संस्थानका उदय विग्रहगति में नही होता । ३ गति, आयु व आनुपूर्वीका उदय भवके प्रथम समय में ही हो जाता है। ४. आतपउद्यतिका उदय तेज, बात ब] सूक्ष्ममें नहीं होता . आहारकद्विक व सीर्थदूर प्रकृतिका उदय पुरुषवेदीको ही सम्भव है। • तीर्थकर प्रकृति सम्बन्धी तीर्थदर ८ नामकर्म की प्रकृतियोगे सहवर्ती उदय सम्बन्धी ९ उदयके स्वामित्व सम्बन्धी सारणी * गोत्र प्रकृतिके उदय सम्बन्धी -- दे. वर्ण व्यवस्था * कषायोका व साता वेदनीयका उदयकाल --दे वह वह नाम ५ प्रकृतियोंके उदय सम्बन्धी शंका समाधान * पुद्गल जीव पर प्रभाव कैसे डाले -- दे. कारण IV/2 * प्रत्येक कर्मका उदय हर समय क्यों नही रहता ? --दे उदय २/३ होता है ? नही ? -- दे. उदय ४/७ १ असंज्ञियोंमे देवादि गतिका उदय कैसे * तेजकायिकोमे आतप वा उद्योत क्यों २ देवगतिमे उद्योतके बिना दीप्ति कैसे है ? ३ एकेन्द्रियोंमे अंगोपाग व संस्थान क्यों नही ? ४ विकलेन्द्रियोंमे हुँटक संस्थान व दु-स्वर ही क्यों ? ६ कर्म प्रकृतियोंकी उदय व उदयस्थान प्ररूपणाएँ १ सारिणीमे प्रयुक्त संकेतोके अर्थ । । २ उदय व्युच्छित्ति की ओघ प्ररूपणा ३ उदय व्युच्छित्तिकी आदेश प्ररूपणा ४ सातिशय मिध्यादृष्टिमे मूलोत्तर प्रकृतिके चार प्रकार उदयकी प्ररूपणा ५ मूलोत्तर प्रकृति सामान्य उदयस्थान प्ररूपणा ६ मोहनीयकी सामान्य व ओघ उदयस्थान प्ररूपणा ७ नामकर्मकी उदयस्थान प्ररूपणाएँ १. युगपत् उदय आने योग्य विक्व तथा संकेत । २. नामकर्म के कुछ स्थान व भङ्ग । ३, नामकर्मके उदय स्थानोकी ओघ प्ररूपणा । ४ उदय स्थान जीव समास प्ररूपणा । ५ उदय स्थान आदेश प्ररूपणा । ६ पाँच कालोकी अपेक्षा नामकर्मोदय स्थानों की सामान्य प्ररूपणा । ७. पाँच कालोंकी अपेक्षा नामकर्मोदय स्थानोंकी चतुर्गतिप्ररूपणा । = प्रकृति स्थिति आदि उदयौं की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणाओं की सूची । ७ उदय उदीरणा व बन्धकी संयोगी स्थान प्ररूपणाएँ १ उदय व्युच्छित्तिके पश्चात् पूर्व व युगपत् बन्ध व्युच्छित्ति योग्य प्रकृतियाँ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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