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इतिहास
तथा अपनी दोति ओर अदीति नामक देवियोके साथ आकर इन दोनोको अनेको विद्याऍ तथा औषधियों दी। (ह पृ २२/५१-५३) इन दोनो के वंश में उत्पन्न हुए पुरुष विद्याएँ धारण करनेके कारण विद्याधर कहलाये । ( प पु ६ / १०)
१ विद्याधर जातियाँ
पु २२ / ७६-८३ नमि तथा विनमिने सब लोगोको अनेक औषधियाँ तथा विद्याएँ दीं। इसलिए वे वे विद्याधर उस उस विद्यानिकायके नामसे प्रसिद्ध हो गये। जैसे---गौरी निवासे गौरिक कोशिकी कौशिक भूमितुण्ड भूमितुण्ड, मूलबीर्थसे मूलवीर्यक, दांकु शकुक, पाण्डुको से पाण्डुकेय, कालकसे काल, श्वपाकसे श्वपाकज, मातगी से मातंग, पर्वत से पार्वतेय व शालय से वशालयगण, पाशुकि पालक वृक्षसे वार्डस एस प्रकार विद्यालयों से सिद्ध होनेवाले विद्याधरोका वर्णन
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हुआ ।
नोट--कथनपर से अनुमान होता है कि विद्याधर जातियाँ दो भागों में विभक्त हो गयीं -- आर्य व मातग ।
२. आर्य विद्याधरोके चिह्न
ह. पु / २६ / ६ - ९४ आर्य विद्यावरोकी आठ उत्तर जातियाँ है, जिनके चिन्ह व नाम निम्न है - गौरिक हाथ में कमल तथा कमलोकी माला सहित । गान्धार - लाल मालाएँ तथा लाल कम्बलके वस्त्रो से युक्त । मानवपुत्रक-नाना वर्णोंसेयुक्त पीले वस्त्रोसहित । मनुपुत्रककुछ-कुछ लाल वस्त्रोंसे युक्त एवं मनियोके आभूषणो सहित मुनी हा ओषधि तथा शरीरपर नाना प्रकार आप और मालाओ सहित भूमिण्ड सर्व ऋतुको से स्वर्णमय आभरण व मालाओ सहित शंकुक - चित्रविचित्र कुण्डल तथा सर्पाकार बाजूबन्द कौशिक टोपर सेहरे व मणि म कुण्डली युक्त ।
३. मातंग विद्याधरोके चिन्ह-दे मातंगवश सं ६ | ४. विद्याधरकी वंशावली
१ विनमिके पुत्र - ह पु. / २२ / १०३-१०६ "राजा विनमिके संजय, अरिजय, शत्रुंजय, धनजय, मणिधूल, हरिश्मश्रु, मेघानीक, प्रभंजन, चूडामणि शतानीक, सहस्रानीक, सर्वजय बाहू, और अरिदम आदि अनेक पुत्र हुए। पुत्रोके सिवाय भद्रा और सुभद्रा नामकी दो कन्याएँ हुई। इनमें से सुभद्रा भरत चक्रवर्तीके चौदह रत्नों में से एक स्त्री रत्न थी ।
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२ नमके पुत्र इ./१२/१००-१०८ नमिके भी रवि सोम पुरुहूत, अंशुमान हरिजय पुनस्य, विजय, मातंग, वासव, रत्नमाली ह पु / १३/२०) आदि अत्यधिक कान्तिके धारक अनेक पुत्र हुए और कनकपुंजश्री तथा कनकमंजरी नामकी दो कन्याएँ भी हुई। ह.पु / १३ / २०-२५ नमिके पुत्र रत्नमालीके आगे उत्तरोत्तर रत्नवज्र, रत्नरथ, रत्नचित्र, चन्द्ररथ, वज्रजघ, वज्रसेन, वज्रदष्ट्र, वज्रध्वज, वज्रायुध, वज्र, सुबज्र वज्रभृत् वज्राभ, वज्रबाहु, वज्रसज्ञ, वज्रास्य, वज्रपाणि, वज्रजा खान, विमुख, सूपत्र वि. विद्वान्, विद्युदाभ, वियुद्वेग, वैद्युत, इस प्रकार अनेक राजा हुए। १६-२१)
५/२५-२६ तदन्तर इसी ने राजा हुआ इसने संजय मुनिपर उपसर्ग किया था। नन्तर
५/४८-५४ दृढरथ, अश्वधर्मा, अश्वायु, अश्वध्वज, पद्मनिभ, पद्ममाली पद्मरथ सिंहयान, मृगोदर्मा सिसप्रभु सिंहकेतु. शशाकमुख, चन्द्र, चन्द्रशेखर, इन्द्र, चन्द्ररथ, चक्रधर्मा, चक्रायुध. चक्रध्वज, मणिग्रीव, मण्यक, मणिभासुर, मणिस्यन्दन, मण्यास्य, बोडर रोड हरिचन्द्र पुण्यचन्द्रपूर्व न्द्र वाले चन्द्रचूड, व्योमेन्दु उडुपालन, एकचूड, द्विचूड, त्रिचूड, वज्रचूड, भरि अर्कपूड, जिरी मज इस प्रकार बहुत राजा हुए।
९ पौराणिक राज्यवंश
अजितनाथ भगवान् के समय में इस वशमें एक पूर्णधन नामक राजा हुआ ( प पु . ५ / ७८) जिसके मेघवाहनने धरणेन्द्र से लकाका राज्य प्राप्त किया. २/९४६-१६०) उससे राक्षस की उत्पत्ति हुई। - दे, राक्षस वश
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३३९
१५. श्री बंश
ह पु १३/३३ भगवान् ऋषभदेव से दीक्षा लेकर अनेक ऋषि उत्पन्न हुए उनका उत्कृष्ट वश श्री वंश प्रचलित हुआ । नोट - इस वशका नामोल्लेख के अतिरिक्त अधिक विस्तार उपलब्ध नही ।
१६ सूर्यवंश
ह पु १३ / ३३ ऋषभनाथ भगवान् के पश्चात् इक्ष्वाकु वंशकी दो शाखाएँ हो एक सूर्य व दूसरी चन्द्रश
प. पु. २/४ सूर्यशकी शाम भरत के पुत्र कीर्ति प्रारम्भ हुई। क्योकि अर्क नाम सूर्यका है।
५/५६१ इस सूर्य का नाम ही सर्वत्र इक्ष्वाकुवश प्रसिद्ध है । देश
१७ सोमवंश
ह पु. १३/१६ भगवान् ऋषभदेवकी दूसरी रानीसे बाहुबली नामका पुत्र उत्पन्न हुआ, उसके भी सोमयश नामका सुन्दर पुत्र उत्पन्न हुआ। 'सोम' नाम चन्द्रमाका है सो उसी सोमयशसे सोमवश अथवा चन्द्रवंशकी परम्परा चली। ( प पु १० / १३ )
प.पु ५ / २ चन्द्रव शका दूसरा नाम ऋषिवंश भी है।
ह पु १३/१६-१७ प पु ५/११-१४ ।
देव
भरत 1
अर्कीर्ति
(सूर्य व शका क्र्ता)
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१६ हरिवंश
ह पृ १५/५७-५८ हरि राजाके नामपर
इस वशकी उत्पत्ति हुई ।
( और भी दे सामान्य राज्य वंश स १ ) इस वशकी वंशावली आगममें तीन प्रकार से वर्णनकी गयी। जिसमें कुछ भेद है । तीनों ही नीचे दी जाती है ।
पौलोम (१०/२५) 1 महीदस (१०/२०)
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बाहबली
१. हरिवंश पुराणकी अपेक्षा
हy / सर्ग / श्लोक सर्व प्रथम आर्य नामक राजाका पुत्र हरि हुआ 1 इसोसे इस वशकी उत्पत्ति हुई। इसके पश्चात उत्तरोत्तर क्रमसे महागिरी, गिरि, आदि सैकडो राजा इस वशमें हुए (१५/५७-६१ ) । फिर भगवान् मुनिसुव्रत ( १६ / १२) सुबत (१६/५५) दक्ष, ऐलेय (१७/२,३), कृमि (१०/२२) पुलोम (१०/२४)
अरिनेमि (१७/२६)
1 सोमयश
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भहाबल 1 सुबल आदि
राजा इस वशमें उत्पन्न हुए ।
चरम (१७/१५) 1
चरम (१७/२८)
1 मत्स्य (१७ / २६ ) I
आयोधनादि सौ पुत्र तदनन्तर
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