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क्रमाक
ज
१८ पद्वति टी
तत्त्वार्थ
इतिहास
३४०
१०. आगम समयानुक्रमणिका मूल, शाल, सूर्य, अमर, देवदत्त, हरिषेण, नभसेन, शख, भद्र. अभिचन्द्र, वसु, (असत्यसे नरक गया) (१७/३१-३७)।
- ग्रन्थ । समय रचयिता ग्रन्थ
विषय → । १७/३१-३७ -
२ ईसवी शताब्दी २:वृहद्वसु चित्रवसु वासव अर्क महावसु विश्ववसु रवि सूर्य सुवसु बृहद्वसु
आप्तमीमांसा । १२०-१८५ समन्तभद्र | न्याय । (दे.आगे) स्तुति विद्या ।
भक्ति कुजरावर्त,
(जिनशतक) १० स्वयंभूस्तोत्र
न्याययुक्त भक्ति तदनन्तर बृहदथ, दृढरथ, सुखरथ, दीपन, सागरसेन, सुमित्र, प्रथु, जी मिति
न्याय वप्रथ, विन्दसार, देवगर्भ, शतधनु, लाखो राजाओके पश्चात् तत्वानशासन निहतशत्रु सतपति, बृहद्रथ, जरासन्ध व अपराजित, तथा जरासन्ध
१३युक्त्यनुशासन के कालयवनादि सैकडो पुत्र हुए थे। (१८/१७-२५) बृहद्व सुका पुत्र १४ कर्मप्राभत टी
कर्म सिद्धान्त सुबाहु तदनन्तर, दीर्घबाहु वज्रबाहु . लग्धाभिमान, भानु, यवु, १५ षटखण्ड टो
आद्य १ खण्डों पर सुभानू, कुभानु, भीम आदि सैकडो राजा हुए। (१८/१-५) भगवान् १६ गन्धहस्ती
तत्त्वार्थ सूत्र टी नमिनाथके तीर्थ में राजा यदु (१८/५) ह आ जिससे यादववशको
महाभाष्य उत्पत्ति हुई।-दे यादववश ।
रत्नकरण्ड श्रा, १२७-१७६ शामकुण्ड श्रावकाचार २ पद्यपुराणकी अपेक्षा
कषाय पा तथाषट,
खण्डागमकी टोका प पु २१श्लोक स हरि महागिरि वसुगिरि, इन्द्रगिरि, रत्नमाला.
१३ परिकर्म
१२७ १७६ कुन्द कुन्द षटवण्डके आद्य ५ प्र. सम्भूत, भूतदेव, आदि सैक्डों राजा हुए (-१) । तदनन्तर इसी
खण्डोकी टीका वंशमें सुमित्र (१०), मुनिसुव्रतनाथ (२२), सुव्रत, दक्ष, इलावर्धन, समयसार
अध्यात्म श्रीवर्धन, श्रीवृक्ष, संजयन्त, कुणिम, महारथ, पुलोम दि हजारो राजा प्रवचनसार बीतनेपर वासबकेतु राजा जनक मिथिलाका राजा हुआ। (४६-५५) नियमसार ३ महापुराण व पाण्डवपुराणको अपेक्षा
रयणसार
अष्ट पाहुड म. पु ७०/६०-१०१ मार्कण्डेय, हरिगिरि, हिमगिरि, वसुगिरि आदि पञ्चास्तिकाय सैकडो राजा हुए। तदनन्तर इसी वश में
वारस अणुवेक्खा
वैराग्य शूर व
यत्याचार दश भक्ति
भक्ति अन्धकवृष्णि भोजकवृष्णि
कातिकेयानुप्रे मध्य पाद कुमार स्वामी वैराग्य समुद्रविजयादि
कषाय पाहुड | १४३-१७३ | यतिवृषभ मूल १६० गाथाओ पर सौ पुत्र (दे यादववंश)
चूर्णिसूत्र
लोक विभाग
पण्णत्ति उग्रसेन महामेन देवमेन गान्धारी कन्या ३२ जम्बुद्वीप समास १७६-२४३ | उमा पा पु७/१२७-१४५
३३ तत्वार्थ सूत्र १० आगम समयानुक्रमणिका
३. ईसवी शताब्दी ३ ----
३५ तत्त्वार्थाधिगम | | उमा स्वाति तत्वार्थसूत्र टोका स. नोट-प्रमाणके लिए दं उस उसके रचयिताका नाम ।
| भाष्य
सदिग्ध है। सकेत सं.-सस्कृत, प्रा - प्राकृत, अप - अपभ्रश, टो टीका, वृ =वृत्ति, व-वचनिका, प्र.- प्रथम, सि.सिद्वान्त, श्वे =
४ ईसवी शताब्दी ४:श्वेताम्बर, क. कन्नड, भ भट्टारक, भा.-भाषा, ततमिल. ३. पउम चरिउ पूर्व पाद
अप
विमल सुरि प्रथमानुयोग मरा.-मराठी, हि.-हिन्दी, श्रा.- श्रावकाचार ।
३६ द्वादशा चक्र ३५७ मल्लवादी न्याय (नयवाद) सं ग्रन्थ समय रचयिता
५. ईसपी शताब्दी ५ :विषय
३७, जैनेन्द्र व्याकरण मध्यपाद पूज्यपाद । सस्कृत व्याकरण (सं.
३८ मुग्धबाध १. ईसवी शताब्दी १ .
३६ शब्दावतार
संस्कृत शब्दकोश १श लोकविनिश्चय अज्ञात । अज्ञात यथानाम (गद्य) प्रा. ४० छन्द शास्त्र
संस्कृत छन्द शाख २/ भगवती आरा पूर्व पाद शिवकोटि
यत्याचार वैद्यसार
आयुर्वेद ३ कषाय पाहुड । गुणधर मूल १८० गाथा
४२ सिद्वि प्रिय
चतुर्विशतिस्तव शिल्पड्डिकार मध्य पाद इल गोवडि | जीवनवृत्त (काव्य) । त. । स्तोत्र ५ जोणि पाहुड ४३
धरसेन मन्त्र तन्त्र प्रा. ४३ दश भक्ति
भक्ति षट्खण्डागम ६६-१५६ भूतबलि कमसिद्वान्त मूलसूत्र ,, ४४ शान्त्यष्टक ७ व्यारव्या प्र. मध्य पाद बपदेव । आद्य खण्डोकाटी, ४ सार सग्रह
वीर
२७ मूलाचार
३१ तिल्लोय
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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