Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 1
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 342
________________ इतिहास (ह. पु ६०/ २५ -६२), ( म पु / प्र ४८ पं पन्नालाल (तो. २ / ४५१) नं नाम ! वी नि.नं नाम विसं. १२ ४१५५६५ १८ दीपम २) विनयधर ३) गुप्तिश्रुति ४ गुप्तऋद्धि ५ शिवगुप्त 4 अलि ७ मन्दराय ८ मित्रवीर ६ बलदेव १० मित्रक ११ सहस १२ वीरवित १३) पद्मसेन १४ व्याधहस्त १५ नागहरुको १६ जितदन्ड १७ नन्दिषेण सं : १ जयसेन २ वीरसेन ३ ब्रह्मसेन ४ रुद्रसेन ५ भद्रसेन ६ ७ ८ नाम गौतमसे लेकर साहाचार्य तक के सर्व नाम कीर्तिसेन जयकीर्ति विश्वकीर्ति अभयसेन १० | भूतमेन ११ धरसेननं २ ई श. ५ २० सुधर्मसेन ५५० २१ सहसेन ५६० २२ मुद ५६५-४१३२३ ईश्वरसे भावकीर्ति ११ १० विश्वचन्द्र ५३० १३ अभयचन्द्र १४ माघचन्द्र १५ नामचन्द्र १६ | विनय चन्द्र ५४० 8 श स ७०५ में हरिवश पुराणको रचना है पु ६६ / ५२ ९. काष्ठासंघकी पट्टायली गौतम लोहाचार्य तक के नामका उपलेख करके पट्टावलीकारने इस संघका साक्षात् सम्बन्ध मूलसंघके साथ स्थापित किया है, परन्तु आचार्यका काल निर्देश नहीं किया है। कुमारमेन तथा का काल पहले निर्धारित किया जा चुका है (दे शीर्षक ६/४) । उन्होंके आधार पर अन्य कुछ आचार्योंका काल यहाँ अनुमानसे लिखा गया है जिसे अस दिग्ध नहीं कहा जा सकता । (ती ४/६०-३६६ पर उत सं Jain Education International 450 २४ सुन ५६० इनके समय का भी अनुमानस लगा लेना चाहिए १६ २० २१ २५ अभयसेन २८ न २० अभयसेन २८ भीमसेन २६ जिनसेन १ ईश ७ अन्त ३० शान्तिसेन विश ७-८ ई श ८ पूर्व ३१ जयसेन २ ३२) अमितसेन नाम रामचन्द्र विजयचन्द्र कीर्ति यश अभयकीति ८२० ८७० ७६१-८१३ ३४ जनसेन २८३५-५७७८८२८ १ २६ रामसेन २० इन २८ गुणसेन २६ ७८०-८३० ७२३-७७३ ८००-६५० ७४३-७६३ कुमारसेन १ (वि. ७५३) प्रतापसेन ३० ३१ महायसेन ३२ विजयसेन २२ २३ महासेन २४ कुन्दकीर्ति २५४४ स नाम ३६ | कमलकीर्ति २ ४० कुमारसेन (fa, Ekk) हेमचन्द्र ४१ ४२ पद्मनन्दि ४३ यश कीर्ति २ कीर्ति ४५ ४६ सहस्रकीर्ति ४७ महीचन्द्र ४८ देवेन्द्र कोर्ति ४१जगतको ३२७ ई सं सहितको २० २१ राजे ३३ नयसेन ३४ श्रेयांससेन ३६ (वि. १४३१) १५ अमन्दकी २४ रनकीर्ति कमलकीर्ति १ ५५ लक्षमणसेन क्षेमकीर्ति १ ५६ भीमसेन हमकोसि va सोमकीर्ति १७ बालचन्द्र ३७ १८ त्रिभुवनचन्द्र १ ३८ 1 ५२ शुभकीर्ति ५३ राममेन प्रद्युम्न चारित्रको अन्तिम प्रशस्ति के आधार पर प्रेमोजी कुमारसेन २ को इस संस्थापक मानते हैं, और इनका सम्बन्ध पंचस्तूप ७. पट्टायलिये तथा गुर्वावलिय सबके साथ घटित करके इन्हे वि ६४५ में स्थापित करते है। साथ ही 'रामसेन' जिनका नाम ऊपर ५३वें नम्बर पर आया है उन्हे वि १४३१ में स्थापित करके माथुर सघका संस्थापक सिद्ध करनेका प्रयत्न करते हैं (परन्तु इसका निराकरण शीर्षक ६/४ मे किया जा चुका है) । तथापि उनके द्वारा निर्धारित इन दोनो आचार्योंके काल को प्रमाण मानकर अन्य आचार्योंके कालका अनुमान करते हुए प्रद्य ुम्न चारित्रकी उक्त प्रशस्तिमे निर्दिष्ट गुर्वावली नीचे दी जाता है। 1 . ( न चारित्रकी अन्तिम प्रशस्ति), प्रद्य, मन चारित्रको प्रस्तावना/ प्रेमीजी (सा / प्रेमीजी) (नास १/६४-००)। नाम भं विसे | ईन्सद सिनाम ४० कुमारसेन‍ ९४४ පුද5 ४१ हेमचन्द्र १ १८० २३ ४२ पद्मनन्दि२ १००५ ६४८ ४३ यश कीर्ति २ | १०३०१७३ १४ क्षेमकीर्ति १ १०५५ ६६८ स 1 गुगसेन २ नोट- प्रशस्ति में ४४ से ५२ तक के ८ नाम छोड़कर सं. ५३पर कथित राममेनसे पुन प्रारम्भ करके सोमकीर्ति तकके पाँचो नाम दे दिये गये है । १० लाड़बागड़ गच्छ की गुर्वावली यह काष्ठा संघका ही एक अवान्तर गच्छ है । इसकी एक छोटी सीन उपलब्ध है जो नीचे दी जाती है। इसमें केवल आ. नरेन्द्र सेनका काल निर्धारित है। अन्यका उल्लेख यहाँ उसीके आधार पर अनुमान करके लिख दिया गया है। ( आ. जयसेन कृत धर्म रत्नाकार रत्नक्रण्ड श्रावकाचारको अन्तिम प्रहरित) (सिद्धान्तसार संग्रह १२/१३ हास्ति) (सिद्धान्तसार संग्रह प्र ८ / AN Up) । १ विसे स धर्म सेन ६५५ රදීත් २ शान्तिसेन ६० १२३ ३ गोपसेन २००५ ४ भाव सेन १०३० ६७३ नाम १ रामसेन २ वीरसेन २ ३ देवसेन २ ४ अमितगति १ विसं.सद ५३ रामसेन १४३१ १३७४ ५४ | रत्न कोति १४५६ १३६६ ५५ लक्ष्मणसेन १४८१ १४२४ भीममेन १५०६ १४४६ २० सोमकीर्ति २०१ १४७४ ५६ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only वि.सं. ई.स ५ जयसेन ४ १०५५ १०८० १०१३ हहद ७ सेन वारसेन ३ ८ गुणसेन १ ११०५ १०४८ ११३९ १०७३ 1 नरेद्रसेन मि १९७२ उदयसेन १ 1 जयसेन ६ उदयसेन २ ११. माथुर गच्छ वा संघकी गुर्वावली. (सुभाषित रत्नसन्दोह तथा अमितगति श्रावकाचारको अन्तिम प्रशस्ति (४० /प्रेमीजी) । ( १९८० १९२३) वि.सं. 10. नाम ५ नेमिषेण ८८०-१२० १४०-१८० माधवसेन अमितगति २ १०-१०००७ १८०-२०२० वि.सं. १०००-१०४० १०२०-१०६० १०४०-१०८०* १ प्रेमीजी के अनुसार इन दोनोंके मध्य तीन पीढियोंका अन्तर * १०५० में सुभाषित रत्नसन्दोह पूरा किया। है 1 www.jainelibrary.org

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