Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 1
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 341
________________ इतिहास ७. पट्टावलिये तथा गुर्वावलिये ६ सेन या वृषभ संघको पट्टावली पद्मपुराणके कर्ता आ रविषेण को इस सघका आचार्य माना गया है। अपने पद्मपुराणमें उन्होंने अपनी गुरुपरम्परामें चार नामोंका उल्लेख किया है। (प पु १२३/१६७)। इसके अतिरिक्त इस संघके भट्टारकोकी भी एक पट्टावली प्रसिद्ध हैसेनसंघ पट्टावली/श्ल न.(ति. ४/४२६ पर उधृत)-'श्रीमूलसंघवृषभ सेनान्वयपुष्करगच्छविरुदावलि बिराजमान श्रीमद्गुणभद्रभट्टारकाणाम् ।३८। दारुसंघसंशयतमोनिमग्नाशाधर श्रीमूलसंघोपदेशपितृवनस्वाँतककमलभद्रभट्टारक ।२६।- श्रीमूलसंघमें वृषभसेन अन्वय के पुष्करगच्छकी विरुदावली में विराजमान श्रीमद् गुणभद्र भट्टारक हुए।३८। काष्ठासंघके संशयरूपी अन्धकारमें डूबे हुओंको आशा प्रदान करनेवाले श्रीमूल संघके उपदेशसे पितृलोकके वनरूपी स्वर्ग से उत्पन्न कमल भट्टारक हुए ।२६। सं| नाम _ वि. श. विशेष २३ | गुणभद्र | १७का मध्य सोमसेन तथा नेमिषेणके आधारपर २४ सोमसेन १७ का उत्तर वि १६५६, १६६६, १६६७ में राम पाद | पुराण आदिकी रचना २५ जिनसेन श.१८ शक १५७७ तथा वि. १७८० में मूर्ति स्थापना २६ समन्तभद्र श १८ऊपर नीचेवालोंके आधारपर २७ छत्रसेन 1१८ का मध्य श्ल.५० में इन्हे सेनगणके अग्रगण्य कहा गया है। वि.१७५४ में मूर्ति स्थापना नरेन्द्रसेन १८ का अन्त शक १६५२ में प्रतिमा स्थापन नोट-सं. १६ तकके सर्व नाम केवल प्रशस्तिके लिये दिये गये प्रतीत होते है। इनमेंकोई पौर्वापर्य है या नहीं यह बात सन्दिग्ध है, क्योंकि इनसे आगे वाले नामों में जिसपकार अपने अपनेसे पूर्ववर्तीके पट्टपर आसीन होने का उल्लेख है उस प्रकार इनमें नहीं है। ७ पंचस्तूपसंघ यह सब हमारे प्रसिद्ध धवलाकार श्री वीरसेन स्वामीका था। इसकी यथालब्ध गुर्वावली निम्न प्रकार है(म. पु/प्र. ३१/पं पन्नालाल) चन्द्रसेन ई.७४२-७७३ o e रविण सं. नाम वि सं । विशेषता १. आचार्य गुर्वावली-(प.पु १२३/१६७); (ती. २/२७६) इन्द्रसेन । ६२०-६६० सं १से ४ तक का काल रविषेणके दिवाकरसेन ६४०-६८० आधारपर कनिपत किया गया है। अर्हत्सेन ६६०-७०० लक्ष्मणसेन ६८०-७२० । ७००-७४० वि ७३४ में पद्मचरित पूरा किया। २. भट्टारकोको पट्टावली-(ती. ४/४२४ ४३०) सं नाम | वि श विशेष | नेमिसेन २ छत्रसेन ३ | आर्यसेन लोहाचार्य | ब्रह्मसेन आर्यनन्दि ई. ७६७-७६८ वीरसेन नं.१ ई.७७०-८२७ जयसेन नं.३ ई. ७७०-८२७ सूरसेन । दशरथ जिनसेन ३ विनयसेन श्रीपाल पद्मसेन देवसेन नं.१ (आदिपुराणके कर्ता) 1-ई. ८२०-८७०→ गुणभद्र ई.८७०-६१० कमलभद्र देवेन्द्रमुनि कुमारसेन दुर्लभसेन श्रीषेण लक्ष्मोसेन सोमसेन श्रुतवीर धरसेन देवसेन सोमसेन गुणभद वीरसेन माणिकसेन नेमिषेण १७का मध्य नीचेवालोके आधार पर १७ का मध्य शक १५१५के प्रतिमालेख में माणिकसेन के शिष्य रूपसे मामोल्लेख (जै.४/५६) १७का मध्य | दे. नीचे गुणभद्र (सं २३)।। लोकसेन ई.१००-१४० कुमारसेन प्रेमीजी के अनुसार 1 वि.६५५ काष्ठा संघके सस्थापक द. सा./प्र /प्रेमीजी) नोट-उपरोक्त आचार्यों में केवल वीरसेन, गुणभद्र और कुमारसेनके काल निर्धारित है। शेषके समयोका उनके आधार पर अनुमान किया गया है । गलती हो तो विद्वद्जन सुधार ले। ८ पुन्नाटसंघ ह पु. ६६/२५-३२ के अनुसार यह संध साक्षात् अर्ह बलि आचार्य द्वारा स्थापित किया गया प्रतीत होता है, क्योकि गुर्वावलिमें इसका सम्बन्ध लोहाचार्य व अर्हडलिसे मिलाया गया है। लोहाचार्य व अर्हद्वलिके समयका निर्णय मूलस धमें हो चुका है। उसके आधार पर इनके निकटवर्ती ६ आचार्यों के समयका अनुमान किया गया है। इसी प्रकार अन्तमें जयसेन व जयसेनाचार्यका समय निर्धारित है, उनके आधार पर उनके निकटवर्ती ४ आचार्योके समयोंका भी अनमान किया गया है । गलती हो तो विद्वद्जन सुधार लें। २१/ गुणसेन २२ | लक्ष्मीसेन *सोमसेन माणिक्यसेन पूर्वोक्त हेतुसे पट्टपरम्परासे बाहर है। केवल प्रशस्तिके अर्थ स्मरण किये गये प्रतीत होते हैं। - जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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