Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 1
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 326
________________ इतिहास ३११ ३. ऐतिहासिक राज्यवंश बशका राज्य आया जिसके राजा शालिवाहनने वी, नि ६०५ (ई ७६) में शक व शो नरवाहनको परास्त करने के उपलक्ष में शक संवत्की स्थापनाकी (दे इतिहास २/४)। इस वंशका शासन२४२वर्ष तकरहा। भृत्य व शके पश्चात इस देशमें गुप्तवंशका राज्य २३१ वर्ष पर्यन्त रहा, जिसमें चन्द्रगुप्त द्वि तथा समुद्रगुप्त आदि ६ राजा हुए। परन्तु तृतीय राजा स्कन्दगुप्त तक ही इसकी स्थिति अच्छी रही, क्योकि इसके काल में हूनवशी सरदार काफी जोर पकड चुके थे। यद्यपि स्कन्दगुप्तने इन्हे परास्त कर दिया था तदपि इसके उत्तराधिकारी कुमारगुप्तसे उन्होने राज्यका बहुभाग छीन लिया। यहाँ तक कि ई. ५०० (वी. नि. १०२७) में इस वशके अन्तिम राजा भानुगुप्तको जोतकर हूनराज तोरमाणने सारे पंजाब तथा मालवा (अवन्ती) पर अपना अधिकार जमा लिया, और इसके पुत्र मिहिरपालने इस वंशको नष्ट भ्रष्ट कर दिया । (क पा १/५४,६४/महेन्द्र)। इसलिये शानकारोने इस बंशकी स्थिति वी नि ६५८ (ई ४३१) तक ही स्वीकार को। जेन आम्नायके अनुमार वी.नि.१५८(ई ४३१)में इन्द्रसुत कल्कीका राज्य प्रारम्भ हुआ, जिसने प्रजापर बडे अत्याचार किये, यहाँ तक कि साधुओसे भी उनके आहारका प्रथम ग्रास शुरुकके रूपमें मांगना प्रारम्भकर दिया। इसका राज ४२ वर्ष अर्थात् वी नि १००० (ई ४७३) तक रहा। इस कुनका विशेष परिचय आगे पृथकसे दिया गया है (दे, अगला उपशीर्षक) । २ कल्की वंश ति प.४/१५०६-१५११ तत्तो कक्की जादो इंदसुदो तस्स चउमुहो णामो। सत्तरि वरिसा आऊ विगुणियइ गिवीस रज्जतो ।१५०६। आचारागधरादो पणहत्तरिजुत्तदुसमवासेस । बोलीणेसं बद्धो पट्टो कक्किम्स णरवहणो ॥१५१०॥ अहसाहिह्याण कक्को णियजोग्गे जणपदे पयत्तेण । सुक जाचदि लुद्धो पिंडग्गं जाव ताव समणाओ ॥ ५११॥ गुप्त कालके पश्चात अर्थात् वो नि ६५८ में 'इन्द्र' का सुत कल्की अपर नाम चतुख राजा हुआ। इसकी आयु ७० वर्ष थी और ४२ वर्ष अर्थात् वी नि, १००० तक उसने राज्य किया ॥१५०६।। आचारसंगधरो (वी नि ६८३) के पश्चात २७५ वर्ष व्यतीत होनेपर अर्थात बी. नि ६५८ में कल्की राजाको पट्ट बाँधा गया ॥१५१०॥ तदनन्तर वह कर की प्रयत्न गर्वक अपने-अपने योग्य जनपदोको सिद्ध करके लोनको प्राप्त होता हुआ मुनियोके आहार में से भी अग्रपिण्डको शुल्क में मांगने लगा। ॥१५११॥ (ह.पु.६०/४६१-४६२) त्रि. सा.८० पण्णछस्सयवस्स पणमासजुदं गमिय वीरणिन्वुइदे । सगराजो तो कक्को चदुणवतियम हिय सगमास । -वीर निर्वाणके ६०५ वर्ष ५ मास पश्चात शक राजा हुआ और उसके ३६४ वर्ष ७ मास पश्चात अर्थात वोर निर्वागके १००० वर्ष पश्चात् कल्की राजा हुआ। उ पु. ७६/३६७-४०० दुष्षमाया सहस्राब्दव्यतीतो धर्म हानित ३६७। पुरे पाटलिपुत्राख्ये शिशुपालमहीपते । पापी तनूज पृथिवीमुन्दयाँ दुर्जनादिम' ।३६८। चतुर्मुखाय' कलिकराजो वेजितभूतल । 1३६६। समाना सप्तितस्य परमायु प्रकीर्तितम् । चत्वारिंशत्समा राज्यस्थितिश्चाक्रमकारिण ।४०० - जन्म दू खम कालके १००० वर्ष पश्चात् । आयु ७० वर्ष । राज्यकाल ४० वर्ष । राजधानी पाटलीपुत्र । नाम चतुर्मुख । पिता शिशुपाल । मोट-शास्त्रोल्लिखित उपयुक्त तीन उद्धरणोंसे कल्कीराजके विषयमें तोन दृष्टिये प्राप्त होती है। तीनो हो के अनुसार उसका नाम चतु र्मुख था, आयु ७० वर्ष तथा राज्यकाल ४० अथवा ४२ वर्ष था। परन्तु ति.प.में उसे इन्द्र का पुत्र बताया गया है और उत्तर पुराणमें शिशुपालका । राज्यारोहण काल में भी अन्तर है। ति.प. के अनुसार वह वी.नि. ६५८ में गद्दीपर बैठा, त्रि. सा, के अनुसार वी.नि, १००० में और उ.पु. के अनुसार दषम काल (बी.नि. ३) के १००० वर्ष पश्चात् अर्थात् १००३ में उसका जन्म हुआ और १०३३ से १०७३ तक उसने राज्य किया। यहाँ चतुर्मखको शिशुपालका पुत्र भी कहा है। इसपरसे यह जाना जाता है कि यह कोई एक राजा नहीं था, सन्तान परम्परासे होनेवाले तीन राजा थे-इन्द्र. इसका पुत्र शिशुपाल और उसका पुत्र चतुर्मुख । उत्तरपुराण में दिये गए निक्षित काल के आधारपर इन तीनोका पृथक्-पृथक् काल भी निश्चित हो जाता है। इन्द्रका वी. नि ६५८-१०००, शिशुपालका १०००-१०३३, और चतुमुंख का १०३३-१०७३ । तीनों ही अत्यन्त अत्याचारी थे। ३. हुन वंश क पा १/प्र ५४/६५ (५ महेन्द्र कुमार)- लोक-इतिहासमें गुप्त वंशके पश्चात काकी के स्थानपर हूनवंश प्राप्त होता है। इसके राजा भी अत्यन्त अत्याचारी बताये गये है और काल भी लगभग वही है, इसलिये कहा जा सकता है कि शास्त्रोक्त कन्की और इतिहासोक्त हुन एक ही बात है । जैसा कि मगध राज्य व शोंका मामान्य परिचय देते. हुए बताया जा चुका है इस वंशकेसरदार गुप्तकाल में बराबर जोर पकइते जा रहे थे और गुप्त राजाओके साथ इनकी मुठभेड परामर चलती रहती थी। यद्यपि स्कन्द गुप्त (ई.४१३-४३५) ने अपने शासन कालमें इसे पनपने नहीं दिया, तदपि उसके पश्चात् इसके आक्रमण बढ़ते चले गए । यद्यपि कुमार गुप्त (ई. ४३५-४६०) को परास्त करने में यह सफल नहीं हो सका तदपि उसकी शक्तिको इसने क्षीण अवश्य कर दिया, यहाँ तक कि इस के द्वितीय सरदार तोरमाणने ई०० में गुप्तवंशके अन्तिम राजा भानुगुप्तके राज्य को अस्त व्यस्त करके सारे पजाब तथा मालवापर अपना अधिकार जमा लिया। ई.५०७ में इसके पुत्र मिहिरकुलने भानुगुप्तको परास्तकरके सारे मगधपर अपना एक छत्र राज्य स्थापित कर दिया। परन्तु अत्याचारी प्रवृत्ति के कारण इसका राज्य अधिक काल टिक न सका । इसके अत्याचारोंसे तंग आकर विष्णु-यशोधर्म नामक एक हिन्दू सरदारने मगधकी बिखरी हुई शक्तिको सगठित किया और ई ५२८ में मिहिरकुलको मार भगाया। उसने कशमीरमें शरण ली और ई.५४० में वहाँ ही उसकी मृत्यु हो गई। विष्णु-यशोधर्म कट्टर वैष्णव था, इसलिये उसने यद्यपि हिन्दू धर्म की बहुत वृद्धि की सदपि साम्प्रदायिक विद्वेषके कारण जैम संस्कृत तिपर तथा श्रमणोपर बहुत अत्याचार किये, जिसके कारण जैनाम्नायमें यह कल्की नामसे प्रसिद्ध हो गया और हिन्दुओंने इसे अपना अन्तिम अवतार (कल्की अवतार) स्वीकार किया। जैन मान्य कलिक वंशकी हुन वंशके साथ तुलना करनेपर हम कह सकते है वी नि. ६५८-१००० (ई. ४३१-४७३) में होनेवाला राजा इन्द्र इस कुल का प्रथम सरदार था, वी.नि १०००-१०३३ (ई ४७३५०६) का शिशुपाल यहाँ तोरमाण है, वी.नि. १०३३-१०७३ वाला चतुर्मुख यहाँ ई ५०६-५४६ का मिहिरकुल है। विष्णु यशोधर्मके स्थानपर किसी अन्य नामका उल्लेख न करके उसके कालको भी यहाँ चतुर्मुखके काल में सम्मिलित कर लिया गया है। ४. काल निर्णय अगले पृष्ठको सारणीमें मगध के राज्यवंशो तथा उनके राजाओंका शासन काल विषयक तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। आधार-जैन शास्त्र -ति. प. ४/१५०५-१५०८, ह. पु ६०/४८७-४६१ । सन्धान-ति. प. २/७,१४। उपाध्ये तथा एच, ऐल, जैन, ध, १/प्र. ३३/एच. एल, जैन; क. पा.१/प्र. ५२-५४ (६४-६५). प.महेन्द्रकुमार; द. सा./प्र. २८/4. नाथूराम प्रेमो, प. कैलाश चन्द जी कृत जैन साहित्य इतिहास पूर्व पीठिका। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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