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इतरनिगोद
इतरनिगोद - मनस्पति २ । इतरेतराभाव अभाव ।
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इति रा बा. ९/१३/१/५७ /११ इतिशब्दोऽनेकार्थः संभवति । क्वचि इमे वर्तते हन्तीति पलायते वर्षतीति धावति। क्यचिदेवमित्यस्यार्थे वर्तते इति स्म उपाध्याय कथयति' एवं स्म इति गम्यते । चिकारे वर्तते यथा 'गौरस्य शुक्ल नील, परतिप्ते, जिन दत्तो देवदत्त ''इति एव प्रकारा इत्यर्थ । कचिद्वयवस्थायां वर्ततेयथा 'ज्वलितिकसंतारण [जेने० २/११२] इति । कचिदर्थविपर्यासे वर्तते - यथा 'गौरित्ययमाह - गौरिति जानीते' इति । कचित्समाप्तौ वर्तते -' इति प्रथकमाह्निकम् इति द्वितीयमाह्निकम् ' इति कन्भिवि वर्तते इति भवसम, इति सिद्धसेनमिति । हति शब्द के अनेक अर्थ होते है यथा-१ हन्तीति पलायते - 'मारा इसलिए भागा यहाँ इति शब्दका अर्थ हेतु है । २. इति स्म उपाध्याय कथयति-उपाध्याय इस प्रकार कहता है । यहाँ 'इस प्रकार' अर्थ है । ३ 'गौ अश्व' इति - गाय, घोडा आदि प्रकार यहाँ इति शब्द प्रकारवाची है ४ प्रथममाहिक मिति' यहाँ इति शब्दका अर्थ समाप्ति है । ५ इसी तरह व्यवस्था अर्थविपर्यास शब्द प्रादुर्भाव आदि अनेक अर्थ है। इतिवृत्त - इतिहासका एकार्थवाची है - दे. इतिहास | इतिहास - - किसी भी जाति या संस्कृतिका विशेष परिचय पानेके लिए तत्सम्बन्धी साहित्य हो एक मात्र आधार है और उसकी प्रामाविकता उसके रचयिता व प्राचीनवापर निर्भर है। बता जैन संस्कृति का परिचय पानेके लिए हमें जैन साहित्य व उनके रचयिताओं के काल आदिका अनुशीलन करना चाहिए। परन्तु यह कार्य आसान नहीं है, क्योंकि स्यालको भावना से अतीत वीतरागोजन प्राय अपने नाम, गाँव व कालका परिचय नही दिया करते। फिर भी उनकी कथन शैली पर से अथवा अन्यत्र पाये जानेवाले उन सम्बन्धी उल्लेखों पर से, अथवा उनकी रचनायें ग्रहण किये गये अन्य शास्त्रोंके उद्धरणों परसे, अथवा उनके द्वारा गुरुजनो के स्मरण रूप अभिप्राय से लिखी गयी प्रशस्तियो पर से, अथवा आगममें ही उपलब्ध दो-चार पट्टावलियों परसे, अथवा भूगर्भ से प्राप्त किन्ही शिलालेखो या आयागपट्टी उनके नामो परसे इस विषय सम्बन्धी अनुमान होता है। अनेको विद्वानोने इस दिशा में खोज की है, जो ग्रन्थो में दी गयी उनकी प्रस्तावनाओंसे विदित है। उन प्रस्ताबनाओने से लेकर ही मैने भी यहाँ कुछ विशेष विशेष आचार्यों म तत्कालीन प्रसिद्ध राजाओ आदिका परिचय संकलित किया है। यह विषय मा विस्तृत है। यदि इसकी गहराइयोंमें घुसकर देखा जाये तो एकके पश्चात एक करके अनेको शाखाएं तथा प्रतिशाखाएँ मिलती रहनेके कारण इसका अन्त पाना कठिन प्रतीत होता है, अथवा इस विषय सम्बन्धी एक पृथक् ही कोष बनाया जा सकता है। परन्तु फिर भी कुछ प्रसिद्ध व नित्य परिचय में आनेवाले ग्रन्थो व आचार्यों का उल्लेख किया जाना आवश्यक समझकर यहाँ कुछ मात्रका सकलन किया है। विशेष जानकारोके लिए अन्य उपयोगी साहित्य देखने की आवश्यकता है।
3 इतिहास निर्देश व लक्षण
१ इतिहासका लक्षण
२ ऐतिह्य प्रमाणका श्रुतज्ञानमे अन्तर्भाव
२ संवत्सर निर्देश
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१ संवत्सर सामान्य व उसके भेद २ वीर निर्वाण सवत् । ३ विक्रम संवत् । ४ शक संवत् । ५ शालिवाहन सवत् ।
१. इतिहास निर्देश व लक्षण
६ ईसवी संवत् ७ गुप्त संवत् ८ हिजरी संवत् । ९ मधा संवत् । १० सब संव तोका परस्पर सम्बन्ध । ३ ऐतिहासिक राज्य वंश
१ भोज वंश २ कुरु वंश ३ मगध देशके राज्य वंश (१ सामान्य २ कल्की; ३ हून, ४ काल निर्णय ) ४ राष्ट्रकूट वंश |
8 दिगम्बर मूलसंघ
१ मूल संघ । २ मूल संघकी पट्टावली । ३ पट्टावलीका समन्वय । ४. मूलसंघ का विघटन ५ श्रुत तीर्थंकी उत्पत्ति । ६ श्रुतज्ञानका क्रमिक ह्रास |
५ दिगम्बर जैन संघ
१ सामान्य परिचय । २ नन्दिसंच ३ अन्य संघ
६ दिगम्बर जैनानासी संघ
१ सामान्य परिचय । २ यापनीय सघ । ३ द्राविड संघ ४ काष्ठा संघ । ५ माथुर संघ । ६ भिल्लक संघ । ७ अन्य संघ तथा शाखाये ।
७ पट्टावलियें तथा गुर्वावलिय
१ मूल संघ विभाजन । २ नन्दिसंघ बलात्कार गण । ३ नन्दिसंघ बलात्कार गणकी भट्टारक आम्नाय ४ नन्दिसंघ बलात्कार गणकी शुभचन्द्र आम्नाय । ५ नन्दिसंघ देशीयगण । ६ सेन या ऋषभ संघ । ७ पंचस्तृप संघ । ८ पुन्नाट संघ ९ काष्ठा संघ १० लाड बागड़ गच्छ ११ माथुर गच्छ ।
८ आचार्य समयानुक्रमणिका 8 पौराणिक राज्य वंश
१ सामान्य वंश २ इक्ष्वा वश ३ उग्र वंश । ४ ऋषि वंश । ५ कुरुवंश | ६ चन्द्र वंश । ७ नाथ वंश । ८ भोज वंश । ९ मातङ्ग वंश । ११ रघुवश । १२ राक्षस वंश । १४ विद्याधर वश । १५ श्रीवंश | १७ सोम वंश १८ हरिवश ।
१० यादव वंश | १३ वानर वंश | १६ सूर्य वंश ।
१० आगम समयानुक्रमणिका
* परिशिष्ट
१ संवत् २ मूलसंघ ३ गुणधर आम्नाय ४ मन्दिसंघ
१ इतिहास निर्देश व लक्षण
१ इतिहासका लक्षण
म. पु. १ /२५ इतिहास इतीष्ट तद् इति हासीदिति श्रुते । इति वृत्तम तिह्यमाम्नाय चामनस्ति तत् | २५ | -' इति इह आसीत्' (यहाँ ऐसा हुआ) ऐसी अनेक कथाओका इसने निरूपण होने से इसे (महापुराणको 'इतिहास'इति'' भी कहते है| २६
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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