________________
अवधिज्ञान
१९९
९.अवधिज्ञान विषयक प्ररूपणाएँ
५. तिर्यंच व मनुष्योमें देशावधिका विषय (म.ब १/गा सू १४-१५/२३) (रा.वा १/२२/४/८२/५) (ध.२/१,१,२/६३) (गो. जी./मू. ४२५/२४६)।
७. देशावधिकी क्रमिक वृद्धिके १९ काण्डक (म.ब. १/गा सु. २-६/२१) (ध. १३/५,५,५६/गा सू ३-६/३०१-३२८) (ध.१/४,१,२/गा.५-७/२४-२६) (रा.वा १/२२/४/८२/८) (गो.जी./मू व टी. ४०४-४१३/८३०-८३६)
नाम ज
द्रव्य
क्षेत्र
काल
ध./१३
द्रव्य
क्षेत्र
काल
भाव
तिथंच उ तेजस शरीर प्रमाण असं द्वीप- अस वर्ष
समुद्र । (१ समय
कम पल्य) मनुष्य ज | एक जीवका औदारिक | उत्सेधागुल/अस आवलीशरीर-लोक प्रदेश (लब्ध्य पर्याप्त
असं. (स्वक्षेत्रके प्रदेशोके असं निगोदियाकी |भागप्रमाण विस्रसोपचय अवगाहनाप्रमाण
सहित रव शरीर) का अस.भाग) उ | एक परमाणु या कार्माण समस्त लोक अस. लोक न शरीर प्रमाण (अस. लोक) प्रमाण
सामान्य नियमके अनुसार स्वस्व योग्य | भाव
arenan|कांडक स.
१ घन कोस
समय
घनागुल - अ. | | आवली-अस. घनागुल-सं. आवली । स | घनागुल किंचिदून आवली घनागुल पृथक्त्व | आवली १घन हाथ आवली पृथक्त्व
अन्तर्मुहूर्त १घन योजन
१भिन्न मुहूर्त
(मुहूर्त-१समय) २५ धन योजन
किचिदूनदिव भरत क्षेत्र प्रमाण अर्द्ध मास (५२६६-ध. योजन) जम्बूद्वीप प्रमाण साधिक १मास १००,०००घ योजन मनुष्यनोक प्रमाण १ वर्ष ४५००,०००५ योजन रुचकवर द्वीप तक वर्ष पृथक्त्व असख्य द्वीप सागर
सख्यात वर्ष तेजस शरीर पिड
असख्यात वर्ष कार्माण .,., ३११ | वि नसोपचय रहित
एक तै जसवर्गणा
प्रथम काण्डकमे विनसोपचय सहित निज औदारिक शरीर -- घनलोक प्रमाण असं. द्रव्य है। तत्पश्चात् द्वितीयादिमे सर्वत्र पूर्व पूर्व द्रव्य+(पूर्व द्रव्य+मनोवर्गणा/अनन्त)
प्रथम काण्डकमें स्त्र विषय गत द्रव्यकी आव/असं. मात्र वर्तमान पर्याये । तत्पश्चात् द्वितीयादिमें सर्वत्र पूर्व पूर्व x अस.
६. परमावधि व सर्वावधिका विषय (म ब. १/गा सू ८/२२) (घ, १३/५,४,५६/गा.सू १५/३२३) (ध १/४,१,३/१६/४२-५०) (रा.वा. १/२२/४/८३/५) (गो जी /मू /४१४-४२१/८३७) ।
म
द्रव्य
क्षेत्र
काल
भाव
பூமம்
"
पूर्व पूर्वसे असरव्यात
पूर्व से अस ख्यात गुणा
१७ ।
३१२ / एक भाषा वर्गणा ३१३ एक मनोवर्गणा
। एक कार्मण वर्गणा |
| क्रमेण अस
१६
(१) परमावधि-(६.६/पृ) ज. देशावधिका उत्कृष्ट | देशावधिका | देशावधि का देशावधिका सं. (४५) उत्कृष्ट अस, उत्कृष्ट x अस उत्कृष्ट असं. ४५) । (४५),
(४५) उ | परमावधिका जघन्य अस लोक अस लोक अन्तिम विकल्प
+ (देशावधिकाउत्कृष्ट (४२)| प्रदेश प्रमाण तक xअग्नि कायद्वारापरि
समय च्छिन्न अनन्तपरमाणु) (सामान्य नियम) गुणित (४७) नोट-परमावधिके जघन्यसे उत्कृष्ट पर्यन्त विषयवृद्धि के विकल्प
देखो (ध ६/४,१,३/४४) (0) सर्वावधि--(ध:/)
नोट-- यहाँ जघन्य उत्कृष्टका विकल्प नहीं है| परमावविका उत्कृष्ट परमावधिका| परमावधिका | परमावधिका +बह अस. (४८) उत्कुष्ट अस, उत्कृष्टxअस. उत्कृष्ट असं
लोक (४)
(४८)
ध.६/४,१,२/२६-३० का सारार्थ- इसी प्रकार द्रव्य व भाव में करते जाये । क्षेत्र व काल अवस्थित रखें। द्रव्य व भावकी वृद्धिमें अगुल । अस प्रमाण विकल्प हो चुकने पर क्षेत्रमें एक प्रदेशको वृद्धि करें। काल अवस्थित रखे । उपरोक्त क्रमसे पुन -पुन द्रव्य व भाव में वृद्धि करे। इसप्रकार कालको अव स्थित रखते है और क्षेत्र में एक-एक प्रदेश की वृद्धि करते हुए अगुल/अस . प्रमाण प्रदेश वृद्धि हो जाने पर एक समय बढावे । इसी प्रकार पुन पुन. कालको वृद्धि करते कान में भी आवली/अस, विकल्प उत्पन्न करे ।
आगे जाकर क्षेत्र की वृद्धि प्रतिकात वृद्धिस्थान में यथायोग्य धनागुलके असख्यात भाग, सख्यात भाग, १भाग तथा वर्गादिरूप होने लगती है । यहाँ तक कि देशावधिका उत्कष्टकाल तो एक समय कम
पल्य और क्षेत्र समस्त लोक हो जाता है। अवधि ज्ञानावरण-दे. ज्ञानावरण । अवधि जिन-दे. जिन । अवधि दर्शन-दे. दर्शन ५ ॥ अवधि दर्शनावरण-दे. दर्शनावरण । अवधि मरण-दे. मरण १ अवधिस्थान-सप्त नरकका इन्द्रक-दे. नरक ५/३ ।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org