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आगम
२ बक्ताकी प्रामाणिकतासे वचनकी प्रामाणिकता
३ आगमकी प्रामाणिकताके उदाहरण
४ अर्हत व अतिशय ज्ञान बालोंके द्वारा प्रणीत होनेके
कारण
५ वीतराग द्वारा प्रणीत होनेके कारण
६ गणधरादि आचार्यों द्वारा कथित होनेके कारण
७ प्रत्यक्षज्ञानियों द्वारा कथित होनेके कारण
८ आचार्य परम्परासे आगत होनेके कारण
९ समन्वयात्मक होने के कारण प्रमाण है। १० विचित्र द्रव्यों आदिका प्ररूपक होनेके कारण ११ पूर्वापर अविरोधी होनेके कारण
१२ युक्तिसे अबाधित होनेके कारण १३ प्रथमानुयोगकी प्रामाणिकता
६ आगमका प्रामाणिकता के हेतुओं सम्बन्धी शंका
समाधान :
१ अर्वाचीन पुरुषों द्वारा लिखित आगम प्रामाणिक कैसे हो सकते हैं।
२ पूर्वापर विरोध होते हुए भी प्रामाणिक कैसे
३ आगम व स्वभाव तर्कके विषय ही नहीं
४ उपस्योका ज्ञान प्रामाणिकता का माप नही
५ आगममे भूल सुधार व्याकरण व सूक्ष्म विषयोंमे करने को कहा है प्रयोजन तत्त्वोंमे नही भूत ६ पौरुषेय होनेके कारण अप्रमाणिक नही कहा जा सकता ७ आगम कथंचित् अपौरुषेय तथा नित्य है। ८ आगमको प्रमाण माननेका प्रयोजन
७ सूत्र निर्देश:
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१ सूत्रका अर्थ द्रव्य व भाव श्रुत
२ सूत्रका अर्थ तवली
३ सूत्रका अर्थ अल्पाक्षर व महानार्थक
४ वृत्ति सूत्रका लक्षण
५ जिसके द्वारा अनेक अर्थ सूचित न हों वह सूत्र नही असूत्र है
६ सूत्र वही है जो गणधर आदिके द्वारा कथित हो ७ तो जिनदेव कथित ही है परन्तु गणधर कथित भी सूत्रके समान है
सूत्र
८ प्रत्येक बुद्ध कथितमे भी कथंचित् सूत्रस्व पाया जाता है ★ सूत्रोपसंयत ★ सूत्रसम
- दे. समाचार - निक्षेप ४/८
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१. आगम सामान्य निर्देश
१. आगम सामान्यका लक्षण
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नि.सा./ यू. ८ तस्स मुहम्मदवर्ण पुण्यावरदोसविरहियं शुद्धं आगमिदि परिकहिय रोग दु कहिया हति तथा उनके मुलसेकसी हुई वाणी जो कि पूर्वापरदोष (विरोध) रहित और शुद्ध है, उसे आगम कहा है और उसे स्वार्थ कहते हैं। खोपमनुष्यमद्दष्टे विरोधक
र. क. मा
१. आगम सामान्य निर्देश
तत्वोपदेशकृत्सार्व शास्त्रं कापथघट्टनम् ॥१॥ -जो आप्त कहा हुआ है, वादी प्रतिवादी द्वारा खण्डन करनेमें न आवे, प्रत्यक्ष अनुमानादि प्रमाणोंसे विरोध रहित हो, वस्तु स्वरूपका उपदेश करने वाला हो, सब जीवोंका हित करनेवाला और मिथ्यामार्गका खण्डन करनेवाली हो, वह सत्यार्थ शास्त्र है।
घ. २/१.२.१/१.१२/१२ पूर्वापरविरुद्ध तो दोपह योतक: भावनामा पाहतिरागम आगमो ह्यासवचनमाप्तं दोष विदु । श्यक्तदोषोऽनृतं वाक्यं न ब्रूय या वसंभवाद ॥१०॥ रागाद्वा द्वेषाद्वा मोहादानामुच्यते नृतम् । यस्य तु दोषस्तस्यानृतकारणं नास्ति ॥१२॥पूर्वापरविरुद्धादि दोषोंके समूह से रहित और सम्पूर्ण पदार्थों योतक आस वचनको आगम कहते है |१| आपके वचनको आगम जानना चाहिए और जिसने जन्म जरा आदि १८ दोषोंका नाश कर दिया है उसे आप्त जानना चाहिए। इस प्रकार जो व्यक्तदोष होता है वह असत्य वचन नहीं बोलता. क्योंकि, उसके असत्य वचन बोलने का कोई कारण हो सम्भव नहीं है ॥१०॥ रामसे द्वेष से अथवा मोहसे असत्य वचन बोला जाता है, परन्तु जिसके ये रागादि दोष नहीं हैं उसके असत्य वचन बोलनेका कोई कारण नहीं पाया जाता है ॥११॥
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राज्या. १/१२/७/५४/८ आप्तेन हि क्षीणदोषेण प्रेरज्ञानेन प्रणीत आगमो भवति न सर्व । यदि सर्गः स्यात्, अविशेष स्यात् । - जिसके सर्व दोष क्षीण हो गये हैं ऐसे प्रत्यक्ष ज्ञानियोंके द्वारा प्रणीत आगम ही आगम है, सर्व नहीं। क्योंकि, यदि ऐसा हो तो आगम और अनागममें कोई भेद नहीं रह जायेगा ।
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घ. १/१,१.९/२०१७ आगमो सिद्ध तो पण मंदि रयो -द्यागम, "सिद्धांत और प्रवचन ये शब्द एकार्थवाची है । प.पु. ३/१६ आप्शनचनादिनिबन्धनमर्थ ज्ञानमागम - आके वचनादिसे होनेवाले पदार्थों के ज्ञानको आगम कहते हैं। निसा में/२९ मगतिरितं याथातथ्यं विना च विपरीता निसन्देह वेद मानमाननः।जो न्यूनता बिना, अधिकता बिना, विपरीतता बिना यथातथ्य वस्तुस्वरूपको निःसन्देह रूपसे जानता है उसे आगमनस्लोंका ज्ञान कहते है। पं.का./ता.वृ. ९०३/२५० वीतरागसर्वज्ञगीत षड्व्यादि सम्यद्धानज्ञानवताद्यनुष्ठानभेदरत्नत्रयस्वरूपं यत्र प्रतिपाद्यते तदागमशास भण्यते । - वीतराग सर्वज्ञ देवके द्वारा कहे गये षड्द्रव्य व सप्त तत्व आदिका सम्यक् श्रद्धान व ज्ञान तथा बतादिके अनुष्ठान रूप चारित्र, इस प्रकार भेदरत्नत्रयका स्वरूप जिसमें प्रतिपादित किया गया है उसको आगम या शास्त्र कहते है ।
स.म. २१/२६२/७ का सामरस्येनानन्त धर्म विशिष्टतया ज्ञायन्तेऽवखपन्ते जीवाजीवादयः पदार्था यया सा आज्ञा आगम शासनं । जिसके द्वारा समस्त अनन्त धर्मोसे विशिष्ट जीव अजीवादि पदार्थ जाने जाते है ऐसी आत आज्ञा आगम है, शासन है । ( स म.२८/३२२/३)
न्या. दी ३/०३/११२ आप्तवाक्यनिबन्धनमर्थज्ञानमागम. । आप्तके वाक्यके अनुरूप आगमके ज्ञानको आगम कहते हैं ।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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२. आगमाभासका लक्षण
प.सु. ६/२१-२४/६१ रागद्वेषमो हाकान्तपुरुषवचनाज्जातमागमाभासम् । यथा नद्यास्तीरे मोदक राशय. सन्ति धावध्वं माणवकाः । अंगुण्यप्र
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