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झापु
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७. आयु विषयक प्ररूपणाएँ
आयू सामान्य
__ नाम
जघन्य
।
बद्भायष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट
घातायुष्क सामान्य
उत्कृष्ट
उत्कृष्ट
(१०) नव अनुदिश सम्बन्धी स्वर्ग सामान्य ३१ सागर
३२ सागर धातायष्क - उत्पत्तिका अभाष (त्रि.सा. ५३३) प्रत्येक पटन:आदित्य
के सर्व विमान । ३१सागर
३२ सागर
(११) पंच अनुत्तर सम्बंधी स्वर्ग सामान्य ३२ सागर
| ३३ सागर घातायुष्क - उत्पत्तिका अभाव (त्रि.सा. ५३३) प्रत्येक विमान :विजय ३२ सागर
३ भागर वैजयन्त जयन्त अपराजित सर्वार्थ सिद्धि
३३सागर
उत्पत्ति का अभाव
१
१०. वैमानिक देवोंमें इन्द्रों व उनके परिवार देवों सम्बन्धी
प्रमाण-(ति. प.१५१३-५२६) संकेत-ऊन किश्चिदून।
इन्द्र त्रिक-इन्द्र सम्बन्धी प्रतीन्द्र, सामानिक, व त्रायस्त्रिंश यह तीन सामन्त लो. चतु-लोकपालों सम्बन्धी प्रतीन्द्र, सामानिक, प्रायत्रिंश, पारिषद तथा अन्य सामन्त
प्रकी, त्रिक-इन्द्र सम्बन्धी प्रकीर्णक, आभियोग्य व किल्विधक यह तीन प्रकार देव नोट-उस्कृष्ट आयु दी गयी है। पहले-पहले स्वर्गकी उत्कृष्ट अगले-अगले स्वर्ग में जघन्य आयु है।
नाम स्वर्ग
इन्द्रादिक ।
प्रकी.
_ लोकपालादिक इन्द्र ।इंद्रत्रिक यम-सोम| कुवेर । वरुण
। पत्य | पाय
पारिषद -आत्मरक्ष
--अनीक लो./चतु. | अभ्यन्तर मध्यम | बाह्य
पत्य । पत्य | पल्य | पन्य
त्रिका
पक्ष्य
ऊन ४
सौधर्म ईशान सनस्कुमार माहेन्द्र ब्रह्म ब्रह्मोत्तर लान्तव कापिष्ठ
साधिक ३ ऊन ४ साधिक ४ ऊन साधिक
"::.:-
ऊन
स्वस्व स्वर्गकी उत्कृष्ट आयु
स्व स्व इन्द्रवव
स्वस्व प्वामिवत
कथन नष्ट हो गया है
9 :
साधिक ऊन ७ साधिक ७ ऊन साधिक८ ऊन साधिक ऊन १० साधिक १०
महाशुक्र शतार सहसार आनत प्राणत
आरण १६, अच्युत
:
:
ऊन १०
:
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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