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अहिंसा
४. अनाकार उपयोगका लक्षण
पंसं पा १/१८० इन्दियमणोहिणा वा बर अनिरोणि के गहन अतोहुकाल उनओगी सी अणगारो ॥ १८०॥ इन्द्र, मन और अधिके द्वारा पदार्थोंकी विशेषताको ग्रहण न करके जो सामान्य अंशका ग्रहण होता है, उसे अनाकार उपयोग कहते है । यह भी अन्तर्मुहूर्त काल तक होता है ॥१८०॥ कपा १/१.१५/६३०७ / ४ तत्रिवरीयं अणायार । उस साकारसे विपरीत अनाकार है । अर्थात् जो आकारके साथ नहीं वर्तता वह अनाकार । ( ध १३ / ५.५१६ / २०७/६) ।
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पंध / उ ३६४ यत्सामान्यमनाकार साकारं तद्विशेषभाक् । =जो सामान्य धर्मसे युक्त होता है वह अनाकार हैं और जा विशेष धर्म से युक्त होता है वह साकार है ।
५ ज्ञान साकारोपयोगी है।
स.सि २/६/१६३/१० साकारं ज्ञानम् । ज्ञान साकार है । (रा.बा. २/ ६/१/१२३/३९), ( १०/५-२२६/२००/५), (म. २४/२०१)
घ. १/१,१.९९५/३५३/१० जानातीति ज्ञानं साकारापयोग । जो जानता है उसको ज्ञान कहते है, अर्थात् साकारोपयोगको ज्ञान कहते है ।
स.सा./ आ. परि/ शक्ति नं० ४ साकारोपयोगमयी ज्ञानशक्ति । साकार उपयोगमयी ज्ञान शक्ति ।
६. दर्शन अनाकारोपयोगी है
पंस / प्रा१/१३८ जं सामण्णं गहणं भावाण णेव कट्टु आयार | अविसेसिऊण अरथे द सणमिदिभण्णदे समए ॥ १३८ ॥ सामान्य विशेषात्मक पदार्थों के आकार विशेषका ग्रहण न करके जो केवल निर्विकल्प रूपसे अशका या स्वरूपमात्रका सामान्य ग्रहण होता है, उसे परमागम दर्शन कहा गया है / ४३) (गो.जी./घू. ४८२/८८८) प.सं / सं १/२४६) ( ध १ / १.१.४ / ६३/१४६) स.सि. २/१/१६०/१० अनाकार दर्शनमिति - अनाकार दर्शनोपयोग है (रा.वा २/६/०/२०/३९) (१३/२-२०११/२००१६) (म.प्र. २४/१०१)
२. शका समाधान
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१. ज्ञानको साकार कहनेका कारण
त सा. २ / ११ कृत्वा विशेषं गृह्णाति वस्तुजातं यतस्ततः । साकारमिष्यते ज्ञानं ज्ञानयाथात्म्य वेदिभिः ॥ ११॥ ज्ञानपदार्थोंको विशेष करके जानता है, इसलिए उसे साकार कहते है । यथार्थ रूप से ज्ञानका स्वरूप जाननेवालोंने ऐसा कहा है।
२. दर्शनको निराकार कहनेका कारण सा२/१२ द्विशेषमकृत्गृहमा प्रोक्तं दर्शनं विश्वदर्शिभिः ॥१२॥ पदार्थोंकी जो केवल सामान्यका अथवा सत्ता-स्वभावका ग्रहण करता है, दर्शन कहते है उसे निराकार कहने का भी यही प्रयोजन है कि वह ज्ञेय वस्तुओको आकृति विशेषको ग्रहण नहीं कर पाता । गोजी. / जी / प्र. ४८२ / ८८८/१२ भावाना सामान्यविशेषात्मकबाह्यपदाआकार - भेदग्रहणं अकृत्वा यत्सामान्यग्रहण - स्वरूपमात्रावभासनं तव दर्शनमिति परमागमे भण्यते । भाव जे सामान्य विशेपानक मापदार्थ तिनका आकार कहिये भेदग्रहण ताहि न करके जो सत्तामात्र स्वरूपका प्रतिभासना सोई दर्शन परमागम विषै कहा है I पं.भ./३१२-२६५ नाकार स्यादाकारो वस्तुतो निर्विकल्पता । शेषानन्तगुणानां सम् ज्ञानमन्तरा ॥ १२॥ ज्ञानादिना गुणाः सर्वे प्रोक्ता सल्लक्षणाङ्किता । सामान्याद्वा विशेषाद्वा सत्यं नाकारमात्रकाः ॥ ३६५॥ = जो आकार न हो सो अनाकार है, इसलिए
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निराकार त समर उसे
वास्तव ज्ञानके बिना शेष अनन्तों गुणों में निकिता होती है। अत ज्ञानके बिना शेष सत्र गुणोका लक्षण अनाकार होता है ॥ ३२ ॥ ज्ञानके बिना शेष सब गुण केवल सत रूप लक्षणसे ही लक्षित होते है इसलिए सामान्य अथवा विशेष दोनो ही अपेक्षाओंसे वास्तव में वे अनाकाररूप ही होते है ॥ ३६५॥
३. निराकार उपयोग क्या वस्तु है
[] १२/५.२.१६/२०७/८ सियाभावाद अगारुपजोगी गरि सि सदिय मार्ग सायारो अभियमागारो को सि ज्जदे, ससय-विवज्जय- अणज्भवसायणमणायारत्तप्पसंगादो । एदं पि त्थि, केवलिहि दसणाभावप्पसगादो। ण एस दातो अंतरं गविस यस्स उनजोगस्स आगायारत्तन्भुगमादो अतरंग उबजोगो वि सायारो, कत्ताराक्षो दव्वादो पुह कम्माणुवल भादो | ण च दोष्णं चिउपजोगाणमेत बहिर गतरं गरथ सियागमेत विहादी ग च एदम्हि अत्थे अवलं बिज्जमाणे सायार अणाया र उवजोगाणमसमाणतं, अण्णोणभेदेहि पुहाणमसमाणत्तविरोहादो । प्रश्न- साकार उपयोग द्वारा कर लिये जाते है, दर्शनोपयोग लिए कोई विषय दोष नहीं रह जाता), अत विषयका अभाव होनेके कारण अनाकार उपयोग नहीं बनता, इसलिए निश्चय सहित ज्ञानका नाम साकार और निश्चयरहित ज्ञानका नाम अनाकार उपयोग है । यदि ऐसा कोई कहे तो कहना ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा माननेपर सशय विपर्यय और अनवध्यवसायकी अनाकारता प्राप्त होती है। यदि कोई कहे कि ऐसा हो ही जाओ, सी भी बात नहीं है, क्योंकि, ऐसा माननेपर केवली जिनके दर्शनका अभाव प्राप्त होता है 1 (क. पा १/१.१५/०६/२३०/४): ( क. पा. १ / १-२२/६३२७/३५८/३) उत्तर - यह कोई दोष नही है, क्योंकि, अन्तरङ्गको विषय करनेवाले उपयोगको अनाकार उपयोगरूपसे स्वीकार किया है। अन्तरग उपयोग विषयाकार होता है यह बात भी नहीं है, क्योंकि, इसमें कर्ता द्रव्यसे पृथग्भूत कर्म नहीं पाया जाता। यदि कहा जाय कि दोनों उपयोग एक है, सो भी बात नहीं है, क्योंकि एक (ज्ञान) बहिरंग अर्थको विषय करता है और दूसरा (दर्शन) अन्तरंग अर्थको विषय करता है, इसलिए, इन दोनोको एक माननेमें विरोध आता है । यदि कहा जाय कि इस अर्थ के स्वीकार करनेपर साकार और अनाकार उपयोगमें समानता न रहेगी, सो भी ब त नहीं है, क्योंकि परस्पर के भेद से ये अलग है इसलिए इनमें असमानता माननेमें विरोध आता है (क.पा. १/१-२०/६१२०/३४*/७)
★ देशकालावच्छिन्न सभी पदार्थ या भाव साकार हैं
१ भेद व लक्षण
आकाश
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आकाश
सर्व व्यापक अखण्ड अमूर्त द्रव्य स्वीकार किया गया है। जो अ अन्दर सर्व द्रव्योंको समानेकी शक्ति रखता है यद्यपि यह अखण्ड है पर इसका अनुमान करानेके लिए इसमें प्रदेशो रूप खण्डों की कल्पना कर ली जाती हैं। यह स्वयं तो अनन्त है परन्तु इसके मध्यवर्ती कुछ मात्र भागमें ही अन्य द्रव्य अवस्थित है। उसके इस भागका नाम लोक है और उससे बाहर दोष सर्व आकाशका नाम अलोक है । अवगाहना शक्तिको विचित्रताके कारण छोटे-से लोक में अथवा इसके एक प्रदेशपर अनन्तानन्त द्रव्य स्थित है ।
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मूर्तीक
जगह (Space) को आकाश कहते है। इसे एक
१ आकाश सामान्यका लक्षण २ आकाश द्रव्योंके भेद
३ लोकाकाश व आलोकाकाशके लक्षण ४ प्राणायाम सम्बन्धी आकाश मण्डल
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