Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 1
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 192
________________ अवक्तव्य नय १७७ अवगाहना पुबिल्लारासी चेव होदि,तेण दोण्णं ण कदित्तं पि अस्थि । एवं मणेण अवहारिय दुवे अवत्तवमिदि बुत्तं । ऐसा विदियगणणजाई। -दो स्वपोका वर्ग करने पर चूँ कि वृद्धि देखी जाती है, अतः दो को नोकृति नहीं कहा जा सकता। और चूँकि उसके वर्गमेंसे मूलको कम करके वर्णित करनेपर वह वृद्धिको प्राप्त नहीं होती, किन्तु पूर्वोक्त राशि ही रहती है, अत. 'दो' कृति भी नहीं हो सकता। इस बातको मनसे निश्चित कर 'दो संख्या वक्तव्य है' ऐसा सूत्रमें निर्दिष्ट किया है। * वस्तुकी कथचित् वक्तव्यता अवक्तव्यता-दे.सप्तभगी/६ । अवक्तव्य नय-१७ नयों में से एक-दे नय I/५ अवक्तव्य बंध-दे. प्रकृति बन्ध१। अवक्तव्य भंग-दे. सप्तभगी। अवक्तव्यवाद १. मिथ्या एकान्तकी अपेक्षा :यु. अनु २८ उपेयतत्वाऽनभिलाप्यता बद्न उपायतत्त्वाऽनभिलाप्यता स्यात् । अशेषतत्त्वाऽनभिलाप्यताया, द्विषो भवद्य त्यभिलाप्यताया। - हे भगवन् । आपकी युक्तिको अभिलाप्यताके जो दोषी है, उन द्वेषियोंको इस मान्यतापर कि सम्पूर्ण तत्त्व अनभिलाप्य है, उपेयतत्त्वकी अवाच्यताके सामान्य उपायतत्त्व भी सर्वथा अवाच्य हो जाता है। स्व. स्तो/१०० ये ते स्वघातिनं दोषं शमीकर्तुमनीश्वराः । स्वदद्विष. स्वहनो बालास्तत्त्वावक्तव्यतां श्रिता ॥१००६-वे एकान्तवादी जन जो उस स्वघाती दोषको दूर करनेके लिए असमर्थ है, आपसे द्वेष रखते हैं. आरमधाती हैं,और बालक है। उन्होंने तत्त्वकी अवक्तव्यता को आश्रित किया है। २. सम्यगेकान्त की अपेक्षा :पं.ध. पू./७४७ तत्त्वमनिर्वचनीयं शुद्धद्रव्याधिकस्य भवति मसम् । गुणपर्ययवद्रव्यं पर्यायाथिकनयस्य पक्षोऽयम् ७४७१ - 'तस्व अनि चनीय है' यह शुद्ध द्रव्यार्थिकनयका पक्ष है; तथा 'गुणपर्यायवाला सत्व है'यह पर्यायार्थिक नयका पक्ष है। (और भी दे ,अवक्तव्य नय)। ३. वक्तव्य अवक्तव्यका समन्वय-दे. सप्तभंगी। अवकांत-प्रथम नरकका १२वा पटल-दे.नरक १/११ व रत्नप्रभा। अवगाढ रुचि-दे. सम्यग्दर्शन I/१।। अवगाढ सम्यग्दर्शन-दे. सम्यग्दर्शन I/१। अवगाह-Depth (गहराई)। स सि. १/१८/२८४ जीवपुदगलादीनाममगाहिनामवकाशदानमवगाह बाकाशस्योपकारो बेदितव्य। -अवगाह करनेवाले जीव और पुदगलोंको अवकाश देना आकाशका उपकार जानना चाहिए। (गो. जी./जी.प्र.६०५/१०६०/३) अवगाह क्षेत्र-दे. क्षेत्र । अवगाहन १. मर्व द्रव्योंमे अवगाहन गुण : का अ.प./२१४-२१५ सयाण दवाणं अबगाहणससि अस्थि परमत्थ । जहभसमपाणियाण जीव परसाण महुयाणं ॥२१४॥ जदि ण हवदि सा सत्ती सहावभूदा हि सम्बदव्वाणं । एक्केक्कासपएसे कह ता सव्वाणि वट्ट'ति ।२१५॥ - वास्तव में सभी द्रव्यों में अवकाश देनेकी शक्ति है। जेसे भस्ममें और जल में अवगाहन शक्ति है, वैसे ही जीवके असख्यात प्रदेशों में जानो ॥२१४॥ यदि सब द्रव्यों में स्वभावभूत अवगाहन शक्ति न होती तो एक आकाशके प्रदेशोंमें सब द्रव्य कैसे रहते ॥२१॥ पं.ध.पू./१६, १८१ यत्तत्तविसशस्वं जातैरनतिक्रमात क्रमादेव । अवगाहनगुणयोगाह शाशाना सतामेव ॥१८६० अंशानामवगाहे दृष्टान्त स्वाशसं स्थित ज्ञानम् । अतिरिक्तं न्यून वा शेयाकृति तन्मयान तु स्वाशै ॥१८॥ -जो उन परिणामोंमें विसरशता होती रहती है, वह केवल सत्के अंशोंके सदवस्थ रहते हुए भी, अपनी-अपनी जातिको उल्लंघन न करके, उस देशके अंशों में ही क्रम पूर्वक आकारसे आकारान्तर होमेसे होती है. जो कि अवगाहन गुणके निमित्तसे होती है ॥१८६॥ जैसे कि ज्ञान अपने अंशोसे होन अधिक न होते हुए भी, ज्ञेयाकार होनेके कारण हीन अधिक होता है ॥१८॥ २. सिद्धोंका अवगाहन गुण : प.प्र.टी./६९/१३ एकजीवावगाहप्रदेशे अनन्तजीवावगाहदानसांमध्यमवगाहनत्व भण्यते । -एक जीव के अवगाह क्षेत्र में अनन्ते जीव समा जाये, ऐसी अवकाश देनेकी सामर्थ्य अवगाहन गुण है। द्र.सं. टी १४/४३/१ एकदीपप्रकाशे नानादीपप्रकाशवदेकसिमक्षेत्रे सकरव्यतिकरदोषपरिहारेणानन्तसिद्धावकाशदानसामध्यमवगाहनगुणो भण्यते। -एक दीपके प्रकाश में जैसे अनेक दीपोंका प्रकाश समा जाता है उसी तरह एक सिद्धके क्षेत्र में संकर तथा व्यतिकर दोषसे रहित जो अनन्त सिद्धौंको अवकाश देनेकी सामर्थ्य है वह अवगाहन गुण है। * अवगाहन गुणकी सिद्धि व लोकाकाशमे इसका महत्त्व -२.आकाश ३ अवगाहना-जीवोंके शरीर की ऊंचाई लम्बाई आदिको अवगाहना कहते है । इस अधिकारमें जधन्य व उत्कृष्ट अवगाहनावाले जीवोंका विचार किया गया है। १. अवगाहना निर्देश १. अवगाहनाका लक्षण २ उत्कृष्ट अवगाहनावाले जीव अन्तिम द्वीप सागरमें ही पाये जाते है। ३. विग्रह गतिमे जीवोंकी अवगाहना। ४ जघन्य अवगाहना तृतीय समयवर्ती निगोदमें ही सम्भव है। * सूक्ष्म व स्थूल पदार्थोकी अवगाहना विषयक। --३. सूक्ष्म । २. अवगाहना सम्बन्धी प्ररूपणाएँ १. नरक गति सम्बन्धी प्ररूपणा २. तिथंच गति सम्बन्धी प्ररूपणा १-२. एकेन्द्रियादि तिर्यचोंकी जघन्य व उत्कृष्ट अषगाहमा ३. पृथिवी कायिकादिकी जघन्य म उस्कृष्ट अवगाहमा ४. सम्मुर्छन व गर्भज जलचर थलचर आदिकी अवगाहना * महामत्स्यकी अवगाहना की विशेषताएँ-वे संमूर्छन १. जलचर जीवोंकी उत्कृष्ट अवगाहना ६. चौदहजीवसमासोकीअपेक्षा अवगाहनायन्त्रवमत्स्यरचना ३ मनुष्य गति सम्बन्धी प्ररूपणा १-२, भरतादि क्षेत्रों, कर्म भोगभूमियों व सुषमादि कालोंकी अपेक्षा अवगाहना * तीर्थंकरोंकी अवगाहना-दे. तीर्थकर * शलाका पुरुषोंकी अवगाहना-दे. शलाका पुरुष जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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