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अल्पबहुत्व
१ अल्प बहुत्व सामान्य निर्देश व शंकाएँ
* उपरोक्त विषयक आदेश प्ररूपणा--दे (म ५/६४४४
४५०/२३५-२३६)। एक समयप्रबद्र प्रदेशाग्रमे सर्व व देशपाती अनुभागके विभागकी अपेया। एक समयप्रबद्ध प्रदेशाग्रोमें निपेक सामान्यके विभागकी अपेक्षा।एक समयप्रबद्ध में अष्ट कर्म प्रकृतियोके प्रदेशाग्र विभागको
अपेक्षा। १४ जोव समासो में विभिन्न प्रदेशबन्धो की अपे। १५ आठ अपकर्षों की अपेक्षा आयुबन्धक जीवो की प्ररूपणा १६ आठ अपकर्षों मे आयुबन्धके कालकी अपेक्षा। १० अष्टकर्म सक्रमण व निर्जराकी अपेक्षा अल्पबहत्व प्ररूपणा
भिन्न गुणधारी जीवोमै गुणश्रेणी रूप प्रदेश निर्जराकी ११ स्थानीय सामान्य प्ररूपणा । भिन्न गुगवारो जोकोमे गुगवेगो प्रदेश निज राके काल की ११ स्थानीय प्ररूपणा। पॉच प्रकारके सक्रमणो द्वारा हत कर्मप्रदेशोके परिमाण में अल्पबहूत्व। प्रथमोपशम सम्यक्त्व प्राप्ति विधान मे अपूर्वकरणके काण्डक घातकी अपेक्षा ।--दे (ध ६/१,६,८,५/२२८/१) । द्वितीयोपशम प्राप्ति विधान में उपरोक्त विकल्प।--दे.(ध 6/ १,६.८.१५/२८६.१०)। अश्वकर्ण प्रस्थापक चारित्रमोह क्षपकके अनुभागसत्त्वकी अपेथा।-दे (ध ६/१,६,८,१२।२६३/६) । अपूर्वस्पर्धककरणमे अनुभाग काण्डकघातकी अपेक्षा । -दे (ध ६/१,६,८,१६/३६६/११) । चारित्रमोह पक्के अपूर्वकरण में स्थिति काण्डकघातकी अपेक्षा ।---दे (ध १,६,८,१६/३४४/८)। त्रिकरण विधानको अवस्था विशेषों के उत्कीरण कालो तथा स्थिति बन्ध व मत्य आदि विकल्पोकी अपेक्षा प्ररूपणाए। प्रथमापशम सम्यक्त्व का अपेक्षा ।--दे. (ध ६/१६-८,७/ २३६/८)। प्रथमोपशम ब वेदक सम्यक्त्व तथा सयमासयमको युगपत् ग्रहण करने की अपेक्षा ।--दे (ध ६/१६-८/११/२४७/१)। पुरुषवेद सहित काधके उदयसे आरोहण व अवरोहण करनेवाले नारित्रमोहोपशामक अपूर्वकरण के भिन्न-भिन्न प्रकृतियो के आश्रय सर्व विकल्परूप उत्कीरण कालोको अपेक्षा -दे (ध ६/१,६-८,१४/३३५/११) । दषनमोह क्षपककी अपेक्षा ।-दे. (ध ६/१,६-८.१२/ २६०/६)। अनवृत्तिकरण गुणस्थानमें चारित्रमोहकी यथायोग्य प्रकृतियोके उपशमनको अपेक्षा । -(ध.६/१,६-८,१४/
३०३/६)। ५१. अष्टकर्म बन्ध उदय सत्त्वादि १० करणोकी अपेक्षा
भजगारादि पदोमे अल्पबहत्वकी ओघ व आदेश
प्ररूपणाएं १. उदीरणाकी अपेक्षा अष्टकर्म प्ररूपणा २ उदय . . .
उपशमना ४ सक्रमण .
. बन्ध ६ मोहनीयकर्म विशेषके सत्त्व की अपेक्षा।
७ अष्टकर्मबन्ध वेदनामें स्थिति, अनुभाग, प्रदेश व प्रकृति
अन्धोकी अपेक्षा ओघ व आदेश स्व-पर स्थान अपबहुत्व
प्ररूपणाएँ। * प्रयोग व समनदान आदि षट्कर्मोकी अपेक्षा अल्पबहुत्व प्ररूपणा
१४ मार्गणा आमें जीवो की तथा उनमे स्थित कर्मोंकी उपरोक्त षट् कर्मों की अपेक्षा प्ररूपणा । - दे. (ध.१३/५,
४.३१/१७५-१६५) । * निगाद जीवोकी उत्पत्ति आदि विषयक अल्पबहत्व
प्ररूपणा साधारण शरीरमें निगोद जीवोंका उत्पत्तिक्रम। निरन्तर व सान्तर कालोकी अपेक्षा ।-(प.ख.१/१४/५/. ५८७-६२८/-७४)। उपरोक्त कालों से उत्पन्न होनेवाले जीवों के प्रमाणकी अपेक्षा
-दे (ष, ख १४/५.६/सू ५८७-६२८/४७४) । १ अल्पबहत्व सामान्य निर्देश व शंकाए
१ अल्पबहुत्व सामान्यका लक्षण स सि /१०/६/४७३ क्षेत्रादिभेदभिन्नानां परस्परत. संख्या विशेषोऽस्पबहुत्वम् । -क्षेत्रादि भेदोकी अपेक्षा भेद को प्राप्त हुए जीवौकी परस्पर सख्याका विशेष प्राप्त करना अल्पबहुत्व है। (रा वा /१०/६/१४) ६४७/२७) रा वा /१/८/१०/४२/१६ मख्यातादिष्वन्यतमेन परिमाणेन निश्चितानामन्योन्य विशेषप्रतिपयर्थ मल्पमहत्ववचन क्रियते-हमे एभ्योऽत्पा इमे बहव इति । -मरण्यात आदि पदार्थो में अन्यतम क्सिी एक्के परिमाणका निश्चय हो जानेपर उनकी परस्पर विशेष प्रतिपत्तिके लिए अल्पबहूत्व करने में आता है। जैसे यह इनकी अपेक्षा अल्प है, यह अधिक है इत्यादि । (स सि./१/८/२६)। ध/१,८,१/२४२/७ किमप्पाबहुअं। संखाधम्मो एदम्हादो एवं तिगुणं चदुगुण मि दि बुद्धिगेझो। -प्रश्न-अल्पबहुत्व क्या है । उत्तरयह उससे तिगुणा है, अथवा चतुर्गुणा है इस प्रकार बुद्धिके द्वारा ग्रहण करने योग्य सख्यारे धर्मको अल्पबहुत्व कहते है।
२. अल्पबहुत्व प्ररूयणाके भेद ध १/१,८,१/२४१/१० (द्रव्य क्षेत्र काल भाव आदि निक्षेपोंकी अपेक्षा अल्पनहुन अनेक भेद रूप है। (विशेष दे निक्षेप)
३. संयतको अपेक्षा असंयतकी निर्जरा अधिक कैसे ध १२/४,२,७,१७८/६ सजमपरिणामेहितो अण ताणुबंधि विसंजोए तस्स असंजदसम्मादिट्ठस्स परिणामो अण तगुणहीणो, कध स्त्तो असंखेउजगुणपदेसणिज्जरा। ण एस दोसो स जमपरिणामे हितो अणताणुबधीणं विसजोजणाए कारणभूदाणं सम्मत्तपरिणामाणमण सगुणत्तबलभादो। जदि सम्मत्तपरिणामे हि अण ताणुबधीर्ण विसंजोजणा कोरदे तो सव्वसम्माइट्ठोसु तब्भावो पसज्जदि त्ति बुत्ते ण, विसि
ठेहि चेत्र सम्मत्त परिणामे हि तविसजोयणभुवगमादि ति। प्रश्न--सयमरूप परिणामोकी अपेक्षा अनन्तानुबन्धीकी विसयोजना करनेवाले अमतसम्यग्दृष्टिका परिणाम अनन्तगुणहीन होता है। ऐसी अवस्थामें उसमे असंख्य तगुणी प्रदेश निर्जरा कैसे हो सकती है । उत्तर--यह कोई दोष नही है--क्योकि स यमरूप परिणामोंकी अपेक्षा अनन्तानुबन्धी क्षायोकी विसंयोजनामें कारणभूत सम्यक्त्वरूप परिणाम अनन्तगुणे उपलब्ध होते है। प्रश्न-यदि सम्यक्त्वरूप परिणामोके द्वारा अनन्तानुबन्धी कषायों की विसयोजना की जाती है तो सभो सम्यग्दृष्टि जीवोमें उसकी विसयोजनाका प्रसंग आता है। उत्तर--सब सम्यग्दृष्टियोमें उसकी विसं योजनाका प्रसंग
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