________________
अल्पबहुत्व
१७०
३. प्रकीर्णक प्ररूपणाएँ
कौन कर्म का अनुभाग
अल्पबहुरव
कौन कर्म का अनुभाग
अल्पबहुंत्व
ऊपर तुल्य अनन्तगुण हीन
অনলা
ऊपर तुल्य
ऊपर तुल्य अनन्तगुणा
अनन्तगुण हीन ऊपर तुल्य
उपभोगान्तराय चक्षुर्दर्शनावरण अचक्षुदशनावरण श्रत ज्ञानावरण भोगान्तराय अवधि ज्ञानावरण अवधि दर्शनावरण लाभान्तरीय मन पर्यय ज्ञानावरण स्त्यानगृद्धि दानान्तराय नपुंसक वेद अरति शोक भय जुगुप्सा निद्रा निद्रा प्रचला प्रचला
अनन्तगुण होन ऊपर तुल्य
चक्षु दर्शनावरण मतिज्ञानावरण उपभोगान्तराय वीर्यान्तराय पुरुष वेद हास्य रति जुगुप्सा भय शोक अरति स्त्री वेद नपुंसक वेद केवलज्ञानावरण केवलदर्शनावरण प्रचला निद्रा प्रत्याख्यानावरण
अनन्तगुण होन
ऊपर तुल्य अनन्तगुणा
निद्रा
विशेषाधिक
मान क्रोध माया लोभ मान क्रोध माया लोभ
अप्रत्याख्यान
अनन्तगुणा विशेषाधिक
अनन्तगुणा
प्रचला प्रचला निद्रा निद्रा स्त्यानगृद्धि अनन्तानुबन्धी
मान क्रोध माया
अनन्तगुणा विशेषाधिक
लोभ
अनन्त गुणा
शरीर
प्रचला अयश कीर्ति नीच गोत्र
ऊपर तुल्य नरक गति
अनन्तगुण हीन तिथंच गति स्त्री वेद पुरुष वेद रति हास्य देवायु नरकायु मनुष्यायु तियचायु नोट – इसकी आदेश प्ररूपणाके लिए देखो (म ब./पु. ५/६४३६-४४२/
पृ. २३१-२३३)। (१०) अष्ट कर्म प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागकी ६४ |
स्थानीय परस्थान ओघ प्ररूपणा
(म ब./पु 1/$४४३/ २३३-२३४) संज्वलन लोभ का
सर्वत' स्तोक माया
अनन्तगुणा मान "
क्रोध मन पर्यय ज्ञानावरण दानान्तराय
ऊपर तुल्य अवधि ज्ञानावरण
अनन्तगुणा , दर्शनावरण
ऊपर तुल्य लाभान्तराय श्रुत ज्ञानावरण
अनन्तगुणा अचक्षु दर्शनावरण
ऊपर तुल्य भोगान्तराय
मिथ्यात्व औदारिक वैक्रियक तिर्यञ्चायु मनुष्यायु तेजस कार्मण तियञ्च नरक मनुष्य
शरीर
देव
नीच गोत्र अयश कीर्ति असाता वेदनीय यश कीति उच्च गोत्र साता वेदनीय नरकायु
ऊपर तुल्य अनन्त गुणा
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org