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अल्पबहुत्व
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३. प्रकोणक प्ररूपणाएं
कर्म का नाम
अल्पबहुत्व
कमा
क्रम
कर्म का नाम
अल्पबहुत्व
दर्शनावरण में प्रदेश ।
विशेषाधिक
५०
सर्वत. स्तोक विशेषाधिक
५३
४६ चक्षु
पुरुष वेद सज्वलन अन्यतर नीच
सज्वलन ५५ असाता
उच्च ५७ यश कीर्ति
साता वेदनीय
माया आयु गोत्र लोभ वेदनीय
गोत्र
ऊपर तुल्य विशेषाधिक
में
उत्कृष्ट व अनन्त गुणे विशेषाधिक
२. परस्थान प्ररूपणा-उत्कृष्ट प्रकृति प्रक्रम) (ध १५/३६-३७) अप्रत्याख्यान मान मे
प्रदेश क्रोध .. " माया . "
लोभ प्रत्याख्यान मान
क्रोध माया
लोभ अनन्तानुबन्धी मान
क्रोध माया
लोभ मिथ्यात्व केवल दर्शनावरण प्रचला निद्रा प्रचला प्रचला निद्रा निद्रा स्त्यानगृद्धि केवल ज्ञानावरण आहारक शरीर नामकर्म वैक्रियक औदारिक तैजस कार्मण देवगति नरक गति मनुष्यगति तियग्गति अशय कीर्ति जुगुप्सा
कषाय ३२/ भय
हास्य-शोक रति-अरति खो-नपुंसक वेद
सं० गुणे विशेषाधिक
ऊपर तुल्य विशेषाधिक
स० गुणा विशेषाधिक (दोनो तुल्य
अनन्त गुणे विशेषाधिक
जघन्य प्रकृति प्रक्रम
न०१ से २० तक औदारिक शरीर नामकर्म तैजस कार्मण तिर्यग्गति यश,कीर्ति अयशकीर्ति मनुष्य गति जुगुप्सा
नोकषाय भय हास्य-शोक रति-अरति अन्यत संज्वलन
मान क्रोध माया
लोभ दानान्तराय लाभान्तराय भोगान्तराय
उपभोगान्तराय ४१ वीर्यान्तराय ४२ मन पर्यय
ज्ञानावरण ४३ अवधि
द
स० गुणे
"
विशेषाधिक ..दोनो तुल्य)
३६ दानान्तराय
सं० गुणे विशेषाधिक
दर्शनास
लाभान्तराय भोगान्तराय परिभोगान्तराय नीर्यान्तराय संज्वलन क्रोध मन.पर्यय अवधि
मति अवधि
अचक्षु ४८, चक्षु
उच्च नीच गोत्र साता-असाता वेदनीय बैंक्रियक शरीर देव गति मनुष्य गति तिर्यग्गति नरक गति
देव व नरक आयु ५८ आहारक शरीर
नामकर्म
ज्ञानावरण
म० गुणे (दोनों तुल्य) विशेषाधिक अस० गुणे सं० गुणे अस० गुणे ऊपर तुल्य असं० गुणे
मति संज्वलन
अवधि ४८ अचच
গান दर्शनावरण
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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