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अल्पबहुत्व
३. प्रकीर्णक प्ररूपणाएं
सूत्र
मार्गणार
अल्पबहुत्व
गुणकार
गाथा.
विषय
अल्पबहुव । विशेष
२२७
سر به سه
स्तोक
२२६
به
سه
२३३/
२३५
३४२
। १२. सम्यक्त्व मार्गणा-1
३. दर्शन ज्ञान चारित्र विषयक भाव सामान्यके अव२२६ सम्यग्दृष्टि सा,
पिंचेन्द्रिय प बत वेदक व सासादन
स्थानोंकी अपेक्षा स्व व परस्थान प्ररूपणा-- क्षायिक व उशम
सं. मात्र २२८
(क.पा. १/१, १५-२०/पृ.३३०-३६२) पन्य/असं. अस गुणे आ/अस, १५ दर्शनोपयोग सा.
स्तोक | अस.आ.मात्र २३० सम्यग्मिथ्यादृष्टि स्तोक
चक्षु इन्द्रियावग्रह
विशेषाधिक अस. गुणे - आ /असं.
श्रोत्र , मिथ्या दृष्टि ति या ओघवत
घाण १३. संशी मार्गपा
जिहा" संज्ञी २३२ पचेन्द्रिय पवत
मनोयोग सा, असज्ञी ति या ओघवत
वचन योग सा. १४.आहारक मार्गणा
काय योग सा औदारिक स्तोक
स्पर्शन इन्द्रियावग्रह आहारक २३४
अनन्त गुणे काय योगवन
अन्यतम अवाय अनाहारक
स्तोक कार्मण काय अनन्त गुणे योगवत
श्रुत ज्ञान
श्वासोच्छवास ७ जीवभावोंके अनुभाग व स्थिति विषयक प्ररूपणा- ।
सशरीरकेवलीकाकेवल ज्ञान १. संयम विशुद्धि या लब्धि स्थानोकी अपेक्षा--
उपरोक्तका दर्शन
ऊपर तुल्य ___ (ष.रव ७/२,१९/सू १६८-१७४/५६४-५६७) (ध ६/१,६-८१४/२८६)
शुक्ल लेश्या सा. सूत्र विषय अल्पबहुत्व विशेष या गुण कार
एकत्व वितर्क-अविचार ध्यान
विशेषाधिक १६८। सामायिकव छेदो की जधन्य । सर्वत स्तोका मिध्यात्व के
पृथक्त्व वितर्क विचार चारित्र लब्धि
अभिमुख
श्रेणीसे पतित सूक्ष्म परिहार विशुद्धि की जघन्य अनन्तगुणी | सामायिकके
साम्पराय चारित्र लब्धि
अभिमुख
श्रेणीपर अवरोहक सूक्ष्म परिहार विशुद्धि की उत्कृष्ट । अनतगुणी।
साम्पराय चारित्र लब्धि
क्षपक श्रेणी गत सूक्ष्म सामायिक छेदो. को उत्कृष्ट
अनिवृत्तिकरण का साम्पराय चारित्र लब्धि
अन्त समय
1१७ मान कषाय सा. सूक्ष्म साम्पराय की जघन्य
श्रेणी से उतरते
क्रोध " " चारित्र लब्धि
माया ,, , सूक्ष्म साम्पराय की उत्कृष्ट
स्वस्थानका अन्त
लोभ , चारित्र लब्धि
समय
क्षुद्र भव ग्रहण यथारख्यात की अजघन्य अनु- ।
जघन्य व उत्कृष्ट
कृष्टि करण स्कृष्ट चारित्र लब्धि
पनेका अभाव है।
सक्रामण २. १४ जीव समासोमे संक्लेश व विशुद्धि स्थानोकी अपेक्षा
अपवर्तन (ष खं ११/४,२,६/सू.५१-६४/२०४-२२४) (म.ब.२/२,३/३)
उपशान्त कषाय एकेन्द्रिय सू. अप स्तोक
क्षीण मोह असगुणे | पत्य/असं.
उपशमक पल्य/असं.
क्षपक बा,
चक्षुदशन
विशेषाधिक ऊपरवाले की द्वीन्द्रिय
चक्षु इन्द्रियावग्रह
दुगुना
अपेक्षा
विशेषाधिक त्रीन्द्रिय
घाण
जिहा चतुरिन्द्रिय
मनोयोग सा.
वचन योग सा. पंचेन्द्रिय असज्ञी
काय योग सा. ६.३ , संज्ञो अप.
स्पर्शन इन्द्रियावग्रह अन्यतम अवाय
नोट-यदि व्याघात या मरण न हो तब ही यह अपबहुत्व लागू होता है। मरण हो जानेपर तो किसी
भी स्थान का जघन्य काल एक समय तक बन जाता है । (क.पा.१/१,१६/३४८)
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श्रोत्र
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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