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अल्पबहुत्व
३. प्रकोणक प्ररूपणाएँ
स्वामी
अल्पबहुत्व
कौन कर्म का अनुभाग
अल्पबहुत्व
अनन्तगुणा
अनन्तानुबन्धी
विशेष हीन
सर्वविशुद्ध तेइन्द्रिय असज्ञो प का ज. अनु स्थान, द्वीन्द्रिय
" " . एकेन्द्रिय बा,
"
सज्वलन
माया क्रोध मान लोभ माया क्रोध मान
अनन्तगुणा हीन विशेष हीन
कौन कर्मका अनुभाग
अल्पबहुत्व
प्रत्याख्यान
लोभ
अनन्तगुणा हीन विशेष होन
अप्रत्याख्यान
माया क्रोध मान लोभ माया क्रोध मान
अनन्तगुणा हीन विशेष हीन
अनन्तगुणा हीन
६ हत्समुत्पत्तिक अनुभाग सत्त्वके जघन्य स्थानोकी अपेक्षा अर्थ-हत समुत्पत्तिक स्थान = अपवर्तन द्वारा अनुभाग का घात करके
जितमा अनुभाग शेष रखा गया (क. पा ५/४,२२/१५७२/३३८-३३९) सर्वाविशुद्ध एकेन्द्रिय सू. अप द्वारा। । उपरोक्त बन्ध स्थानसे
अनुभाग घातसे उत्पन्न किया ज स्थान अनन्तगुणा . एकेन्द्रिय बा के द्वारा घात से उत्पन्न
द्वीन्द्रिय .. तेइन्द्रिय
" .. चतुरेन्द्रिय , , ., पंचे असंज्ञी ., संयमाभिमुख पंचे.सज्ञी द्वारा,,
७. अष्टकर्म प्रकृतियोके उत्कृष्ट अनुभागकी ६४ स्थानीय
स्वस्थान ओघ व आदेश प्ररूपणा (म. ब(५/६४१७-४२५/२२०-२२४)
१.शानावरण-ओष प्ररूपणा केवल ज्ञानावरणी का
सर्वत तीव आभिनिबोधिक ज्ञानावरण का
अनन्तगुणा हीन श्रुत अवधि मन पर्यय २. दर्शनावरणदर्शनावरण का
सर्वात तीव्र चच
अनन्त गुणा हीन अचा अवधि स्त्यानगृद्धि निद्रा निद्रा प्रचला प्रचला
नपुसक वेद अरति शोक भय जुगुप्सा स्त्री वेद पुरुष वेद रति हास्य
५. आयुदेवायु नरकायु मनुष्यायु तियंचायु
अनन्त गुणा हीन
सर्वत तीव अनन्त गुणा हीन
सनतः तीव अनन्त गुणा हीन
केवल
६. नामकर्म
(गति):देवगति मनुष्यगति नरकगति तियंच गति
(जाति):पंचेन्द्रिय एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय
(शरीर) - कार्माण तेजस आहारक वैक्रियक औदारिक
सर्गततीन अनन्तगुणा हीन
निद्रा
प्रचला
३. वेदनीयसाता
वेदनीय का असाता
४. मोहनीयमिध्यात्व अनन्तानुबन्धी लोभ का
सर्वतः तीत्र अनन्तगुणा होन
सर्वत. तीच अनन्तगुणा हीन
:
सर्गत तीव अनन्तगुणा हीन
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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