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अपकर्षण
२. अपकर्षण सामान्य निर्देश
१. अव्याघात अपकर्षण विधान ।
२. अपकर्षण योग्य स्थान व प्रकृतियाँ |
२. अपकृष्ट द्रव्यमे भी पुन परिवर्तन होना सम्भव है । ४. उदयाबलिसे बाहर स्थित निषेकका ही अपकर्षण होता है भीतरवालो का नही ।
२. अपसरण निर्देश
१. चौतीस स्थितिबन्धापसरण निर्देश । (पृथक्-पृथक् चारों गतियोंके जीवोंकी अपेक्षा)
२. स्थिति सत्वापसरण निर्देश ।
३. ३४ बन्धापसरणोंकी अभव्योमे सम्भावना व असम्भावना सम्बन्धी दो मत।
* स्थिति बन्धापसरण कालका लक्षण -- दे. अपकर्षण ४ /४ ४. व्याघात या काण्डकघात निर्देश
१. स्थितिकाण्डकघात विधान
* चारित्रमोहोपशम विधानमे स्थितिकाण्डकपात ।
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- दे. ल सा /७७७८/११२ * चारित्रमोहक्षपणा विधानमे स्थितिकाण्डकघात । - दे. क्ष. सा / ४०५-४०७/४६१ २. काण्डकघात के बिना स्थितिघात सम्भव नही । ३. आयुका स्थितिकाण्डकपात नही होता ।
४. स्थितिकाण्डकघात व स्थितिबन्धापसरण मे अन्तर । ५. अनुभागकाण्डक विधान ।
६. अनुभाग काण्डकघात व अपवर्तनाचातमे अन्तर । ★ अनुभाग काण्डकघातमे अन्तरंगकी प्रधानता । दे. कारण II/ २
७. शुभ प्रकृतियोंका अनुभागपात नही होता । ८. प्रदेशचातसे स्थिति घटती है, अनुभाग नहीं। ९. स्थिति व अनुभावचातमे परस्पर सम्बन्ध । * आयुकर्मके स्थिति व अनुभागधात सम्बन्धी
।
-- दे. आयु /५
१. भेद व लक्षण
१ अपकर्षण सामान्यका लक्षण
१०/४५२.४.२१/५१/२ पदेसाणं हिदीपमोमणा बोबा ग्राम
कर्मप्रदेशकी स्थितियोंके घटने का नाम अपकर्ष है। गो.जी.प्र./४३८/३११ स्थित्यनुभाग योनिरपकर्ष काम स्थिति और अनुभागकी हानि अर्थात पहिले बान्धी थी उससे कम करना, अपकर्षण है ।
ल. सा / भाषा / ५५/८७ स्थिति घटाय ऊपरिके निषेकनिका द्रव्य नीचले निषेकनि विषै जहाँ दीजिये तहाँ अपकर्षण कहिये । ( पीछे उदय आने योग्य द्रव्यको ऊपरका और पहिले उदयमें आने योग्यको मीका जानना चाहिए। गो जी, /भाषा/२५८/५६६/१६) ।
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२. अपकर्षणके भेद
(अपकर्षण दो प्रकारका कहा गया है-अव्याघात अपकर्षण और व्याघात अपकर्षण । व्याघात अपकर्षणका ही दूसरा नाम काण्डकघात भी है, जैसा कि इस संज्ञासे ही विदित है) ।
३. अव्याघात अपकर्षणका लक्षण
लसा / भाषा/ ५६/८८/१ जहाँ स्थितिकाण्डकघात न पाइए सो अव्याघात कहिये ।
४. व्याघात अपकर्षणका लक्षण
तसा भाषा/१/१२/१ जहाँ स्थितिकाण्डपाठ होइ सोव्यापात कहिये । ५. अतिस्थापना व निक्षेपके लक्षण
साजी ५६/८०/१२ अपकृष्टद्रव्यस्य निक्षेपस्थान निक्षेप, निक्षिप्यतेऽस्मिन्निति निर्वचनात् । तेनातिक्रम्यमाणं स्थानमतिस्थापन, अति अतिक्रम्यतेऽस्मिन्निति अतिस्थापनम् अपकर्षण
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किये गये द्रव्यका निक्षेपणस्थान, अर्थात् जिन निषेकोंमे उन्हें मिलाते है वे निषेक निक्षेप कहलाते है, क्योंकि, जिसमें क्षेपण किया जाये सो निक्षेप है. ऐसा वचन है, उसके द्वारा अतिक्रमण या उल्लंघन किया जानेवाला स्थान, अर्थात् जिन निषेकों में नहीं मिलाते वे सच, अतिस्थापना हैं, क्योंकि, 'जिसमें अतिस्थापन या अतिक्रमण किया जाता है, सो अतिस्थापना है' ऐसा इसका अर्थ है । (ल सा / भाषा / २५/८०/२) सा/भाषा/८९/११६/१८)।
२. अपकर्षण सामान्य निर्देश
२ अपकर्षण सामान्य निर्देश
१. अव्याघात अपकर्षण विधान स.सा.व टीका ५६-५८/८८-१० केवल भावार्थ नोट-साथ आगे दिया गया यन्त्र देखिए। द्वितीयावली के प्रथम निषेकका अपकर्षण करि नीचे (प्रथमावली में ) निक्षेपण करिये सहाँ भी कुछ निषेको हो निक्षेपण करते हैं, और कुछ निषेक अतिस्थापना रूप रहते हैं। उनका विशेष प्रमाण बताते हैं ।] प्रथमावली के निषेकनि विषै समयघाट आवलीका त्रिभागसे एक समय अधिक प्रमाण निषेक तो निक्षेप रूप
हैं (अर्थात् यदि आवली १६ समय प्रमाण तो १६- १+१= ६ निषेक निक्षेप रूप है ।) इस विषै सोई द्रव्य दीजिये है । बहुरि अवशेष (नं. ९ तकडे १०) निषेक प्रतिस्थापना रूप है दे, यंत्र नं. २) ।
०
निवेक
* =
अतिस्थापना
* = अपकृष्टनिषेक
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(नं.१)
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11
एक समयप्रबद्ध के सर्व निषेक कर्म की कुल स्थिति = ५० वर्ष' =१५७६८०००००
उदय योग्य निषेक
आबाधा
(नं.
प्रथम स्थिति के १६ निषेक
२)
द्वितीय स्थिति के निषेक
इस द्रव्य को नीचे से ऊपर की तरफ क्रमपूर्वक उठा उठाकर नीचे निक्षेप भाग
मे निक्षेपण करिये अति स्थापना भाग मे नकरिये।
जघन्य अति-, स्थापना के १० निषेक
अद्यन्यनिक्षेपके ६ निषेक
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यातै ऊपर द्वितीयावली के द्वितीय निषेक्का अपकर्षण किया । तहाँ एक समय अधिक जावली मात्र (१६+१-१७) याके बोच निषेक हैं । तिनि विषै निक्षेप तो वही पहले वाला अर्थात ) निषेक घाट
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