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अर्थ
रा.मा./१/२/५/११/२१ अगम्यते ज्ञायते इत्यर्थ। ओ जाना जाये या निश्चय किया जाये उसे अर्थ कहते हैं। (रा.वा./१/३३/१/१५/४), (घ१२/४.२.१४,२/४७८/०). (४.१३/५.६.२०/२८१ / १२) (म्या वि / बृ/१/१/१६५ / २३) (स.म. २८/३००/१५) (१ / १० / ९५८) । २. अर्थ - द्रव्य गुण पर्याय
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स.सि./१/१०/११६/२ इति पर्यायस्तऽयंत हत्यर्थी द्रव्यं... = जो पर्यायोंको प्राप्त होता है, या जो पर्यायोंके द्वारा प्राप्त किया जाता है. यह अर्थ सम्दको पति है। इसके अनुसार अर्थ द्रव्य ठहरता है । (रावा / १/१७/६५/३०) । स.सि /६/४४/४५५ अर्थं ध्येयो द्रव्य पर्यायो वा । = अर्थ ध्येयको कहते हैं। इससे द्रव्य और पर्याय लिये जाते है । रावा/२/१३/९/१२/४ अर्धगम्यते निष्पाद्यत इत्यर्थ कार्य
जो
जाना जाता है, प्राप्त किया जाता है, या निष्पादन किया जाता है। वह 'अर्थ' कार्य या पर्याय है । [प्र.१३/५.५.२०१२८१/१२ अर्थते गम्यते परिचित इति अर्थों नव पदार्था' । =जाना जाता है वह अर्थ है । यहाँ अर्थ पदसे नौ पदार्थ लिये गये है ।
प.मु /४/१ सामान्यविशेषात्मा तदर्थो विषय । सामान्य और विशेष स्त्ररूप अर्थात द्रव्य और पर्याय स्वरूप पदार्थ प्रमाण (ज्ञान) का विषय होता है।
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प्रसा /त.प्र /८७ गुणपर्यायानियति गुणपर्यायैर्यन्त इति वा अर्था इम्याणि द्रव्यान्याश्रयत्वेनेति द्रव्यन्त इति मा अर्था गुणा द्रव्याणि कमपरिणामेनार्यन्त इति वा अर्थ पर्याय जो गुणों और पर्यायोंको प्राप्त करते है, अथवा जो गुणों और पर्यायों के द्वारा प्राप्त किये जाते है ऐसे 'अर्थ' द्रव्य है। जो द्रव्यों को आश्रयके रूपमें प्राप्त करते है अथवा जो आश्रयभूत द्रव्यों के द्वारा प्राप्त किये जाते है ऐसे 'अर्थ' गुण है । जो द्रव्योंको क्रम परिणामसे प्राप्त करते है, अथवा जो द्रव्योके द्वारा क्रम परिणामसे प्राप्त किये जाते हैं, ऐसे 'अर्थ' पर्याय है ।
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न दो / ३ / ७६ कोऽयमर्थो नाम उच्यते । अर्थोऽनेकान्तः । - अर्थ किसे कहते है - अनेकान्तको अर्थ कहते हैं।
३. अर्थ = शेयरूप विश्व
प्रसा./त प्र / १२४ तत्र क खन्वर्थ, स्वपरविभागेनावस्थितं विश्व | -अर्थ है हम परके विभागपूर्वक अवस्थित विश्व ही अर्थ है। (३/४१) (१.ध. / १३१) दे नय / समस्त विश्व शब्द, अर्थ व ज्ञान इन तीन में विभक्त है ।
४. अर्थ = श्रुतज्ञान
ध.१४/५,६,१२/८/८ अत्यो गणहरदेवो, आगमसुत्तेण विणा सयलसुदणाणपज्जाएण परिणदत्तादो। तेण समं सुदणाणं अत्थसम अथवा अत्थो बीजपद, तत्तो उप्पणं सयलसुदणाणमत्यसम ।' • 'अर्थ' गणधरदेवका नाम है, क्योकि वे आगम सूत्रके बिना सफल श्रुतज्ञानरूप पर्यायसे परिणत रहते है । इनके समान जा श्रुतज्ञान होता है वह अर्थसम श्रुतज्ञान है ? अथवा अर्थ बोज पदको कहते है, इससे जो समस्त ज्ञान उत्पन्न होता है वह अर्थ सम लहान है। ५. अर्थ = प्रयोजन
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स.सि./१/६/२१ द्रव्यमर्थ प्रयोजनमस्येत्यसी प्रार्थिक द्रश्य ही अर्थ या प्रयोजन जिसका सो प्रत्याधिक नय है (रा.वा./१/१३/१६५/८) (च. १/१.१.२/८३/११) (६.६/४.१.४५/१००/१) (आ. १. १) रा. वा / ४/४२ / १५ अर्थाकरणसम्भव अभिप्रायादिशब्दः न्यायात्कल्पितो अर्थादिगम्य' । अर्थ, अकरण, सम्भव, अभिप्राय आदि शब्द न्यायसेक किये हुए अर्थाधिगम्य लाते हैं, जैसे रोटी खाते हुए 'सेन्धव लाओ' कहने से नमक ही लाना, घोड़ा नहीं ऐसा स्पष्ट अभिप्राय न्याय से सिद्ध है ।
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दृष्टि
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यादी./३/३०३ अर्थ स्वासापर्यत इति यावद अर्थ एव तात्पर्यमेव वचसीत्यभियुक्तवचनात् अर्थ पद तात्पर्य में रूड़ है, अर्थात् प्रयो जनार्थक है, खाँकि 'अर्थ हो या तात्पर्य ही वचनों में है ऐसा अर्थ वचन है ।
६ 'अर्थ' पदके अनेकों अर्थ
रा.वा./१/२/११/२०/३१ अर्थ शब्दोऽर्थ मनेकार्थ - कचिह्न द्रव्यगुणकर्मसु वर्तते 'अर्थ इति द्रव्यगुणकर्मसु (बै सू./७/२/३ ) इति वचनात् । कचिद प्रयोजने वर्तते किमर्थमिहागमन कि प्रयोजनंमिति कचिद्धने वर्तते अर्थवान देवदत्त धनवानिति कचि भिधेये वर्तते शब्दार्थ सम्बन्ध इति । 'अर्थ' शब्दके अनेक अर्थ है -१ वैशेषिक शास्त्रमें द्रव्य गुण कर्म इन तीन पदार्थों अर्था है । २. 'आप यहाँ किस अर्थ आये हैं' यहाँ अर्थ शब्दका अर्थ प्रयोजन है। 3. 'देवदत अर्थमान है' यहाँ अर्थ शब्द धन अर्थ ग्रहण किया गया है -- अर्थवान अर्थात् धनवान । ४० 'शब्दार्थसम्बन्ध' इस पदमें अर्थ शब्द का अर्थ अभिधेय या वाच्य है । प्रा.वि. / /९/७/१४०/१५ अर्थोऽभिद्येव । - अर्थ अर्थात अभिषेय (भ आ / वि. / ११३/२६९/१२) ।
प.ध / पू / १४३ सत्ता सत्त्वं सद्वा सामान्यं द्रव्यमन्वयो वस्तु | अर्थो विधि रविशेषादेकार्थवाचका अमी शब्दा ॥१४३॥ सन्त्ता, सत्त्व अथवा सत्, सामान्य, द्रव्य. अन्वय, वस्तु, अर्थ और विधि ये नौ शब्द सामान्य रूप से एक द्रव्य रूप अर्थ के हो वाचक हैं।
* वर्तमान पर्यायको ही अर्थ कहने सम्बन्धी शंका - ये केवलज्ञान/३/२
★ शब्द अर्थ सम्बन्ध - दे आगम / ४ ।
★ अर्थकी अपेक्षा वस्तुमें भेदाभेद - दे. 'सप्तभंगी/५/८ अर्थनय — दे. नय I/४
अर्थ पद- दे. पद ।
अर्थ पर्याय – पर्याय / ३ ।
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अर्थ पुनरुक्त, पुनरुत अर्थ पुरुषार्थ दे. पुरुषार्थ अर्थ मलमल |
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शुद्ध सावधानी से
अर्थ वाद - अर्थवाद रूप वाक्य- दे. वाक्य । अर्थ शुद्धि - / /२८५ विजय सुतं अत्यि तदुभयविसुद्ध पदेन च जन्तो नाम विद्धो व एसो ॥२८५॥ = जो सूत्रको अक्षरशुद्ध अर्थ शुद्ध अथवा दोनों कर 'पढता पढाता है, उसीके शुद्ध ज्ञान होता है । भ.आ / वि / ११३/२६१/१२ अथ अर्थ शब्देन किमुच्यते । दश शब्दाभिधेये वर्तते तेन सुत्रार्थी तस्य का शुद्ध विपरीतरूपेण सुत्रार्थ निरूपणार्या रूपणाया अवैपरीत्यस्य अर्थशुद्धिरित्युच्यते
'अर्थ'
क्या समझे ? अर्थ शब्द व्यञ्जन शब्द के समीप होने से शब्दों का उच्चारण होनेपर मनमें जो अभिप्राय उत्पन्न होता है वह अर्थ शब्दका भाव है। अर्थाद गणधर आदि रचित सूत्रोंके अर्थ को यहाँ अर्थ समझना चाहिए। 'सुद्धि'का अर्थ इस प्रकार जानना विपरीत रूपसे सूत्रार्थकी निरूपणा अर्थ ही आधारभूत है। अतः ऐसी निरूपणा अर्थशुद्धि नहीं हैं। संशय, विपर्यय, अनध्यवसायादि दोषोंसे रहित सूत्रार्थ निरूपणको अर्थ शुद्धि कहते हैं।
अर्थ दृष्टि
नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती (१० ६६३-०११) कृत गोमसार सन्धिसार व पसार इन तीनों ग्रन्थोंमें प्रयुक्त
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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व्यञ्जन शब्दस्य इति गृह्यते । धाराशब्दसे हम
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