Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका है। अथर्ववेदके गोपथ ब्राह्मणमें विस्तारसे उन व्यक्तियोंकी तालिका दी है जो यज्ञमें भाग लेनेके उपलक्ष्यमें हविशेष मांसका भाग पाते हैं। उसके ३६ भाग किये जाते थे और उनका बटवारा इस प्रकार होता था
प्रस्तोताको जीभके साथ दोनों जबड़े, प्रतिहर्ताको गर्दन और ककुद (बैलके कन्धेका उठा हुआ भाग ) उद्गाताको छातीका भाग, अध्वयुको कन्धेके साथ दाहिना पार्श्व, उपगाताको वाया पार्श्व, प्रति प्रस्थाताको वाँया कन्धा, ब्रह्मा और रथ्याकी स्त्रीको दाहिना नितम्ब, पोताको ऊरू, होताको वाँया नितम्ब, इत्यादि । जो इस बँटवारेमें सम्मिलित नहीं होते थे उनको अनेक अपशब्द कहे गये हैं। आश्वलायनने अपने गृह्यसूत्रके प्रथम भागके ग्यारहवें अध्यायमें 'पशुकल्प' शीर्षकसे उन नियमोंको दिया है जो पशुको काटनेमें पालन किये जाते थे । यद्यपि ऋग्वेदमें गौको 'अघ्न्या'-न मारने योग्य कहा है तथापि उसके वधका ऐकान्तिक निषेध नहीं था। श्राश्वलायनके गृह्यसूत्रमें वर्णित यज्ञोंमें एक 'सूलगौ' यज्ञका वर्णन है। यह शरद या वसन्तमें किया जाता था। इसके लिए ऐसी गाय आवश्यक होती थी, जो पीले रंगकी न हो, जिसपर सफेद या काले धब्वे हों और जो सर्वोत्तम हो । उसको पानीसे नहलाया जाता था और वैदिक मंत्र पढ़कर रुद्रको भेंट कर दिया जाता था। उसके बलिदानके लिए ऐसा स्थान पसन्द किया जाता था, जो गांवसे बाहर पूरव या उत्तर दिशामें हो, जहांसे गांव दिखाई देता न हो, और न गांवसे वह जगह दिखाई देती हो। बलिदानका समय मध्य रात्रि था। ___पूँछ, खाल, स्नायु और खुर अग्निमें डाल दिए जाते थे और रक्त कुशोंपर फेंक दिया जाता था। सूत्रकारका कहना है कि उसके
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