Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
View full book text
________________
प्राचीन स्थितिका अन्वेषण पूर्ण हो जाता और शेष भाग मुख्य यागके लिये रख लिया जाता।
पशुयागका मुख्य देवता इन्द्र और अग्नि है । प्रयाजयागके बाद अब्वयु उनके उद्देश्यसे पहले वयाकी आहुति देता । वयाकी आहुतिके बाद पुरोडाशकी आहुति और अन्तमें पशुके अंगोंकी आहुति दी जाती। पूर्णमास यागमें तो मुख्य आहुति पुरोडाशकी दी जाती थी, किन्तु पशुयागकी आहुतिका द्रव्य पशुकी वया और मांस होता था। किन्तु यदि पशुमांसके साथ पुरोडाशकी आहुति न दी जाये तो पशुयाग सम्पूर्ण नहीं होता था। वयाकी आहुतिके बाद एक ओर अग्निमें पशुके अंग प्रत्यंग पकाये जाते, दूसरी ओर अध्वयु पुरोडाश याग करता।। __ पशुके सभी अङ्ग आहुतिके योग्य नहीं माने जाते। हृदय, जीभ वगैरह ग्यारह अंग मुख्य देवताकी आहुतिके योग्य माने जाते थे। पशुका रक्त राक्षसोंको मिलता। रक्तको यज्ञशालासे बाहर फेंक दिया जाता था। जो शमिता पशुका वध करता वही छुरीसे पशुके अङ्गोंको काटकर हांडीमें उन्हें पकाता था।
पुरोडाशकी आहुति हो चुकने के बाद शमिता खबर देता कि पशुका शरीर पक गया है। तब अध्वयु मुख्य देवता इन्द्र
और अग्निके उद्देश्यसे पशुके अङ्गोंकी आहुति देता। मुख्य यागके पीछे स्विष्टकृत याग होता । यह याग रुद्र देवताके उद्देश्यसे किया जाता था। इसके लिए पशुके कुछ अंग निश्चित थे। इसके पश्चात् हविशेषका भक्षण होता। ऋत्विज लोग अपना-अपना भाग खाजाते। जिस वस्तुकी आहुति दो जाती है उसके बाकी बचे भागको 'हविशेष' कहते हैं। जबतक हविशेष नहीं खाया जाता तबतक यज्ञ पूर्ण और सार्थक नहीं होता। पशुयागमें मांसकी आहुति दी जाती है अतः हविशेष मांसको खाना आवश्यकों
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org