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प्रथमं पर्व
एतत्सर्वं समाधाय मनः शृणुत सज्जनाः । सिद्धास्पदपरिप्राप्तेः सोपानमभिसौख्यदम् ॥१०१॥
शार्दूलविक्रीडितम्
पद्मादीन् मुनिसत्तमान् स्मृतिपथे तावन्नृणां कुर्वतां
दूरं भावभरानतेन मनसा मोदं परं बिभ्रताम् । पापं याति भिदां सहस्रगणनैः खण्डैश्चिरं सञ्चितं
निःशेषं चरितं तु चन्द्रधवलं किं शृण्वतामुच्यते ॥ १०२ ॥ एतत्तैः कृतमुत्तमं परिहृतं तैश्चेदमेनस्करं
कर्मात्यन्तविवेकचित्तचतुराः सन्तः प्रशस्ता जनाः ।
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सेवध्वं चरितं पुराणपुरुषैरासेवितं शक्तितः
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सन्मार्गे प्रकटीकृते हि रविणा कश्चारुदृष्टिः स्खलेत् ॥ १०३ ॥
इत्यार्षे रविषेणाचार्यप्रोक्ते पद्मचरिते सूत्रविधानं नाम प्रथमं पर्व ।
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ज्ञान प्राप्त होना और निर्वाणपदकी प्राप्ति करना ॥ १०० ॥ हे सत्पुरुषो ! रामचन्द्रका यह चरित्र मोक्षपदरूपी मन्दिरकी प्राप्तिके लिए सीढ़ीके समान है तथा सुखदायक है इसलिए इस सब चरित्र - . को तुम मन स्थिर कर सुनो ॥ १०१ ॥
जो मनुष्य श्रीराम आदि श्रेष्ठ मुनियोंका ध्यान करते हैं और उनके प्रति अतिशय भक्ति - भावसे नम्रीभूत हृदयसे प्रमोदकी धारणा करते हैं उनका चिरसंचित पाप कर्म हजार टूक होकर नाशको प्राप्त होता है फिर जो उनके चन्द्रमाके समान उज्ज्वल समस्त चरित्रको सुनते हैं उनका तो कहना ही क्या है ? || १०२ || आचार्य रविषेण कहते हैं कि इस तरह यह चरित्र उन्हीं इन्द्रभूति गणधर के द्वारा किया हुआ है और पाप उत्पन्न करनेवाला यह अशुभ कर्म उन्हीं के द्वारा नष्ट किया गया है, इसलिए हे विवेकशाली चतुर पुरुषो, प्राचीन पुरुषोंके द्वारा सेवित इस परम पवित्र चरित्रकी तुम सब शक्तिके अनुसार सेवा करो - इसका पठन-पाठन करो क्योंकि जब सूर्यके द्वारा समीचीन मार्ग प्रकट कर दिया जाता है तब ऐसा कौन भली दृष्टिका धारक होगा जो स्खलित होगा - चूककर नीचे गिरेगा || १०३ ||
इस प्रकार आर्ष नाम से प्रसिद्ध रविषेणाचार्यनिर्मित पद्म-चरितमें वर्णनीय विषयोंका संक्षेप में निरूपण करनेवाला प्रथम पर्व पूर्ण हुआ ।
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१. मोक्षं म । २. एतद्यः म । ३. सर्वतः म । ४. सन्मार्गप्रकटीकृते म. ।
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