________________
विशतितम पर्व
४२७ अश्वत्थः सिंहसेनश्च विनीता रेवती तथा । श्लाघ्या सर्वयशा नाथोऽनन्तश्च तव मङ्गलम् ॥५०॥ धर्मो रत्न पुरी भानुर्दधिपर्णश्च सुवता । पुष्यश्च तव पुष्णातु श्रियं श्रेणिक धर्मिणीम् ॥५॥ मरणी हास्तेिनस्थानमैराणी नन्दपादपः । विश्वसेननृपः शान्तिः शान्ति कुर्वन्तु ते सदा ॥५२।। सूर्यो गजपुरं कुन्थुस्तिलकः श्रीश्च कृत्तिका । भवन्तु तव राजेन्द्र पापद्रवणहेतवः ॥५३॥ मित्रा सुदर्शनश्चूतो नगरं पूर्वकीर्तितम् । रोहिण्यरजिनेन्द्रश्च नाशयन्तु रजस्तव ॥५४॥ रक्षिता मिथिला कुम्भो जिनेशो मल्लिरश्विनी । अशोकश्च तवाशोकं मनः कुर्वन्तु पार्थिव ॥५५।। पद्मावती कुशाग्रं च सुमित्रः श्रवणस्तथा । चम्पकः सुवतेशश्च वजन्तु तव मानसम् ॥५६॥ विर्जयो मिथिला वप्रा वकुलो नमितीर्थकृत् । अश्विनी च प्रयच्छन्तु तव धर्मसमागमम् ॥५७॥ समुद्रविजयश्चित्रा नेमिः शौरिपुर शिवा । ऊर्जयन्तश्च ते मेषशृङ्गश्चास्तु सुखप्रदः ॥५०॥ वाराणसी विशाखा च पाश्वो वर्मा धवोऽधिपः । अश्वसेनश्च ते राजन् दिशन्तु मनसो तिम् ।।५९।। सालः कुण्डपुरं पावा सिद्धार्थः प्रियकारिणी । हस्तोत्तरं महावीरं परमं तव मङ्गलम् ॥६॥ चम्पैव वासुपूज्यस्य मोक्षस्थानमुदाहृतम् । पूर्वमुक्तं त्रयाणां तु शेषाः संमेदनिवृताः ॥६॥ शान्तिः कुन्थुररश्चेति राजानश्चक्रवर्तिनः । संतस्तीर्थकरा जाताः शेषाः सामान्यपार्थिवाः ॥६२।। चन्द्राभश्चन्द्रसंकाशः पुष्पदन्तश्च कीर्तितः । प्रियङ्गमञ्जरीवर्णः सुपाश्वो जिनसत्तमः ॥६३।।
विमलनाथ जिनेन्द्र ये तुझे निमल करें ॥४९॥ विनीता नगरी, सिंहसेन पिता, सर्वयशा माता, रेवती नक्षत्र, पीपलका वृक्ष और अनन्तनाथ जिनेन्द्र, ये तेरे लिए मंगल स्वरूप हों ॥५०॥ रत्नपुरी नगरी, भानुराजा पिता, सुव्रता माता, पुष्य नक्षत्र, दधिपर्ण वृक्ष और धर्मनाथ जिनेन्द्र, हे श्रेणिक! ये तेरी धर्मयक्त लक्ष्मीको पष्ट करें ॥५॥ हस्तिनागपर नगर. विश्वसेन राजा पिता. ऐर
णी माता, भरणी नक्षत्र, नन्द वृक्ष और शान्तिनाथ जिनेन्द्र, ये तेरे लिए सदा शान्ति प्रदान करें ॥ ५२ ॥ हस्तिनागपुर नगर, सूर्य राजा पिता, श्रीदेवी माता, कृत्तिका नक्षत्र, तिलक वृक्ष और कुन्थुनाथ जिनेन्द्र, हे राजन् ! ये तेरे पाप दूर करने में कारण हो ॥५३॥ हस्तिनागपुर नगर, सुदर्शन पिता, मित्रा माता, रोहिणी नक्षत्र, आम्र वृक्ष और अर जिनेन्द्र, ये तेरे पापको नष्ट करें ॥५४॥ मिथिला नगरी, कुम्भ पिता, रक्षिता माता, अश्विनी नक्षत्र, अशोक वृक्ष और मल्लिनाथ जिनेन्द्र, हे राजन् ! ये तेरे मनको शोकरहित करें !५५।। कुशाग्र नगर ( राजगृह ), सुमित्र पिता, पद्मावती माता, श्रवण नक्षत्र, चम्पक वृक्ष और सुव्रतनाथ जिनेन्द्र, ये तेरे मनको प्राप्त हों अर्थात् तू हृदयसे इनका ध्यान कर ॥५६॥ मिथिला नगरी, विजय पिता, वप्रा माता, अश्विनी नक्षत्र, वकुल वृक्ष और नेमिनाथ तीर्थंकर, ये तेरे लिए धर्मका समागम प्रदान करें ॥५७॥ शौरिपुरनगर, समुद्रविजय पिता, शिवा माता, चित्रा नक्षत्र, मेषशृंग वृक्ष, ऊर्जयन्त ( गिरनार ) पर्वत और नेमि जिनेन्द्र, ये तेरे लिए सूखदायक हों ॥५८॥ वाराणसी (बनारस ) नगरी. अश्वसेन पिता. वर्मादेव विशाखा नक्षत्र, धव (धौ ) वृक्ष और पार्श्वनाथ जिनेन्द्र, ये तेरे मन में धैर्य उत्पन्न करें ।।५९।। कुण्डपुर नगर, सिद्धार्थ पिता, प्रियकारिणी माता, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, साल वृक्ष, पावा नगर और महावीर जिनेन्द्र, ये तेरे लिए परम मंगलस्वरूप हों ॥६०। इनमें-से वासुपूज्य भगवान्का मोक्ष-स्थान चम्पापुरी ही है। ऋषभदेव, नेमिनाथ तथा महावीर इनके मोक्षस्थान क्रमसे कैलास, ऊर्जयन्त गिरि तथा पावापुर ये तीन पहले कहे जा चुके हैं और शेष बीस तीर्थंकर सम्मेदाचलसे निर्वाण धामको प्राप्त हुए हैं ॥६१॥ शान्ति, कुन्थु और अर ये तीन राजा चक्रवर्ती होते हुए तीर्थंकर हुए। शेष तीर्थंकर सामान्य राजा हुए ॥६२॥ चन्द्रप्रभ और पुष्पदन्त ये चन्द्रमाके समान श्वेतवर्णके १. -दीधिपर्णश्च म.। २. हास्तिपस्थान- म.। ३. पापविनाशनकारणानि । ४. विजेयो म.।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org