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पद्मपुराणें
संभूतस्तपसो' मूर्तिः सुभद्रो वसुदर्शनः । श्रेयान् सुभूतिसंज्ञश्च वसुभूतिश्च कीर्तितः ॥ २१६ ॥ घोष सेन पराम्भोधिनामानौ च महामुनी । द्रुमसेनश्च कृष्णानां गुरवः पूर्वजन्मनि ॥ २१७ ॥ महाशुक्राभिधः कल्पः प्राणतो लान्तवस्तथा । सहस्रारोऽपरो ब्रह्मनामा माहेन्द्रसंज्ञितः ॥२१८॥ सौधर्मश्च समाख्यातः कल्पः सच्चेष्टितालयः । सनत्कुमारनामा च महाशुक्रामिषोऽपरः ॥ २१९ ॥ एतेभ्यः प्रच्युताः सन्तः प्राप्तपुण्यफलोदयाः । पुण्यावशेषतो जाता वासुदेवा नराधिपाः ॥ २२० ॥ पोदनं द्वापुरी हस्तिनगरं तत्पुनः स्मृतम् । तथा चक्रपुरं रम्यं कुशाग्रं मिथिलापुरी ॥ २२१॥ विनीता मथुरा चेति माधवोत्पत्तिभूमयः । समस्तधन संपूर्णाः सदोत्सवसमाकुलाः ॥२२२॥ आद्यः प्रजापतिर्ज्ञेयो ब्रह्मभूतिरतोऽपरः । रौद्रनादस्तथा सोमः प्रख्यातश्च शिवाकरः ॥२२३॥ सममूर्द्धाग्निनादश्च ख्यातो दशरंथस्तथा । वसुदेवश्च कृष्णानां पितरः परिकीर्तिताः ॥ २२४ ॥
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आद्या मृगावती ज्ञेया माधवी पृथिवी तथा । सीताम्बिका च लक्ष्मीश्च केशिनी कैकयी शुभा ॥२२५॥ देवकी चरमा ज्ञेया महासौभाग्यसंयुता । उदाररूपसंपन्नाः कृष्णानां मातरः स्मृताः ॥२२६॥ सुप्रभा प्रथमा देवी रूपिणी प्रभवा परा । मनोहरा सुनेत्रा च तथा विमलसुन्दरी ॥ २२७॥ तथानन्दवती ज्ञेया कीर्तिता च प्रभावती । रुक्मिणी चेति कृष्णानां महादेव्यः प्रकीर्तिताः ॥ २२८॥
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सहित तप प्रयत्नपूर्वक छोड़ना चाहिए क्योंकि वह पीछे चलकर महाभयंकर दुःख देनेमें निपुण होता है || २१५ || अब नारायणोंके पूर्वभवके गुरुओंके नाम सुनो- तपकी मूर्तिस्वरूप सम्भूत १, सुभद्र २, वसुदर्शन ३, श्रेयान्स ४, सुभूति ५, वसुभूति ६, घोषसेन ७, पराम्भोधि ८, और द्रुमसेन ९ ये नौ इनके पूर्वभवके गुरु थे अर्थात् इनके पास इन्होंने दीक्षा धारण की थी ||२१६-२१७ || अब जिस-जिस स्वर्गसे आकर नारायण हुए, उनके नाम सुनो- महाशुक्र १, प्राणत २, लान्तव ३, सहस्रार ४, ब्रह्म ५, माहेन्द्र ६, सौधर्म ७, सनत्कुमार ८, और महाशुक्र ९ । पुण्यके फलस्वरूप नाना अभ्युदयों को प्राप्त करनेवाले ये देव इन स्वर्गोसे च्युत होकर अवशिष्ट पुण्यके प्रभावसे नारायण हुए हैं ।।२१८-२२० ।। अब इन नारायणोंकी जन्म- नगरियोंके नाम सुनो- पोदनपुर १, द्वापुरी २, हस्तिनापुर ३, हस्तिनापुर ४, चक्रपुर ५, कुशाग्रपुर ६, मिथिलापुरी ७, अयोध्या ८ और मथुरा ९ ये नगरियाँ क्रमसे नौ नारायणोंकी जन्म नगरियाँ थीं। ये सभी समस्त धनसे परिपूर्णं थीं तथा सदा उत्सवों से आकुल रहतीं थीं ।। २२१ - २२२ ।। अब इन नारायणोंके पिता के नाम सुनो - प्रजापति १, ब्रह्मभूति २,
नाद ३, सोम ४, प्रख्यात ५, शिवाकर ६, सममूर्धाग्निनाद ७, दशरथ ८ और वसुदेव ९ ये नौ क्रमसे नारायणोंके पिता कहे गये हैं ।। २२३ - २२४ || अब इनकी माताओंके नाम सुनो-मृगावती १, माधवी २, पृथ्वी ३, सीता ४, अम्बिका ५, लक्ष्मी ६, केशिनी ७, केकयी ८ और देवकी ९ ये क्रम से नो नारायणोंकी मातायें थीं । ये सभी महासौभाग्य से सम्पन्न तथा उत्कृष्ट रूपसे युक्त थीं ॥ २२५२२६||* [अब इन नारायणोंके नाम सुनो - त्रिपृष्ठ १, द्विपृष्ठ २. स्वयम्भू ३, पुरुषोत्तम ४, पुरुषसिंह ५, पुण्डरीक ६, दत्त ७, लक्ष्मण ८ और कृष्ण ९ ये नौ नारायण हैं ] अब इनकी पट्टरानियोंका नाम सुनो - सुप्रभा १, रूपिणी २, प्रभवा ३, मनोहरा ४, सुनेत्रा ५, विमलसुन्दरी ६, आनन्दवती ७, प्रभावती ८ और रुक्मिणी ९ ये नौ नारायणोंकी क्रमशः नौ पट्टरानियाँ कहीं गयी है ।। २२७-२२८||
★ हस्तलिखित तथा मुद्रित प्रतियों में नारायणोंके नाम बतलानेवाले श्लोक उपलब्ध नहीं हैं । परन्तु उनका होना आवश्यक है। पं. दौलतरामजीने भी उनका अनुवाद किया है। अतः प्रकरण संगति के लिए [ ] कोष्ठकान्तर्गत पाठ अनुवादमें दिया है ।
१. तापसो मूर्ति न । २. श्रेयान्सभृतिसंज्ञश्च म । ३. समस्तमूर्द्धाग्निनादश्च म । समस्तद्धय ग्निनादश्च ब. ।
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