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पद्मपुराणे पाचनच्छेदनोष्णत्वशीतत्वकरणादिमिः । युक्तमास्वाद्यविज्ञानमासीत्तस्या मनोहरम् ॥५६॥ वज्रमौक्तिकवैडूर्यसुवर्ण रजतायुधम् । वस्त्रसंखादि चावेदीत् सा रत्नं लक्षणादिभिः ॥५॥ तन्तुसंतानयोगं च वस्त्रस्य बहुवर्णकम् । रागाधानं च सा चारु विवेदातिशयान्वितम् ॥५॥ लोहदन्तजतुक्षारशिलोसूत्रादिसंभवम् । तथोपकरणं कतुं ज्ञातमत्यन्तमुद्धया ॥५९॥ मेयदेशतुलाकालभेदान्मानं चतुर्विधम् । तत्र प्रस्थादिमिर्मिन्नं मेयमानं प्रकीर्तितम् ॥६०॥ देशमानं वितस्त्यादि तुलामानं पलादिकम् । समयादि तु यन्मानं तत्कालस्य प्रकीर्तितम् ॥६१॥ तच्चारोहपरीणाहतिर्यग्गौरवभेदतः । क्रियातश्च समुत्पन्नं साध्यगान्मानमुत्तमम् ॥६२॥ भूतिकर्म निधिज्ञानं रूपज्ञानं वणिग्विधिः । अन्यथा जीवविज्ञानमासीत्तस्या विशेषवत् ॥६३॥ मानुषद्विपगोवाजिप्रभृतीनां चिकित्सितम् । सा निदानादिभिर्मेदयुक्तं ज्ञातवती परम् ॥६४॥ मायाकृतं त्रिधा पीडाशक्रजालं विमोहनम् । मन्त्रौषधादिभिर्जातं तच्च सर्व विवेद सा ॥६५॥ समयं च समीक्ष्यादि पाखण्डपरिकल्पितम् । चारित्रेण पदार्थश्च विवेद विविधैर्युतम् ॥६६॥ चेष्टोपकरणं वाणी कलाव्यत्यसनं तथा। क्रीडा चतुर्विधा प्रोक्ता तत्र चेष्टा शरीरजा ॥६७॥ "कन्दुकादि तु विज्ञेयं तत्रोपकरणं बहु । वाक्क्रीडनं पुनर्नाना सुभाषितसमुद्भवम् ॥६८॥ नानादुरोदरन्यासः कलाव्यत्यसनं स्मृतम् । क्रीडायां बहुभेदायामस्यां सात्यन्तकोविदा ॥६९॥
गया है ।।५५।। इन सबका ज्ञान होना आस्वाद्यविज्ञान है। यह आस्वाद्यविज्ञान पाचन, छेदन, उष्णत्वकरण तथा शीतत्वकरण आदिसे सहित है, केकयाको इस सबका सुन्दर ज्ञान था ॥५६॥
__ वह वज्र अर्थात् हीरा, मोती, वैडूयं ( नीलम ), सुवर्ण, रजतायुध तथा वस्त्र-शंखादि रत्नोंको उनके लक्षण आदिसे अच्छी तरह जानती थी ॥५७|| वस्त्रपर धागेसे कढ़ाईका काम करना तथा वस्त्रको अनेक रंगोंमें रंगना इन कार्योंको वह बड़ी सुन्दरता और उत्कृष्टताके साथ जानती थी ।।५८॥ वह लोहा, दन्त, लाख, क्षार, पत्थर तथा सूत आदिसे बननेवाले नाना उपकरणोंको बनाना बहुत अच्छी तरह जानती थी ॥५९॥ मेय, देश, तुला और कालके भेदसे मान चार प्रकारका है। इसमेंसे प्रस्थ आदिके भेदसे जिसके अनेक भेद हैं उसे मेय कहते हैं ।।६०॥ वितस्ति हाथ देशमान कहलाता है, पल, छटाक, सेर आदि तुलामान कहलाता है और समय, घड़ी, घण्टा आदि कालमान कहा गया है ॥६१॥ यह मान आरोह, परीणाह, तिर्यग्गौरव और क्रियासे उत्पन्न होता है। इस सबको वह अच्छी तरह जानती थी ॥६२॥ भतिकर्म अर्थात बेलबटा खींचनेका ज्ञान, निधिज्ञान अर्थात् गड़े हुए धनका ज्ञान, रूपज्ञान, वणिग्विधि अर्थात् व्यापार कला तथा जीवविज्ञान अर्थात् जन्तुविज्ञान इन सबको वह विशेष रूपसे जानती थी॥६३।। वह मनुष्य, हाथी, गौ तथा घोड़ा आदिकी चिकित्साको निदान आदिके साथ अच्छी तरह जानती थी॥६४॥ विमोहन अर्थात् मूर्छाके तीन भेद हैं-मायाकृत, पीडा अथवा इन्द्रजाल कृत और मन्त्र तथा ओषधि आदि द्वारा कृत । सो इस सबको वह अच्छी तरह जानती थो ॥६५॥ पाखण्डीजनोंके द्वारा कल्पित सांख्य आदि मतोंको वह उनमें वर्णित चारित्र तथा नाना प्रकारके पदार्थों के साथ अच्छी तरह जानती थी॥६६॥
चेष्टा, उपकरण, वाणी और कला व्यासंगके भेदसे क्रीड़ा चार प्रकारकी कही गयी है। उसमें शरीरसे उत्पन्न होनेवाली क्रीडाको चेष्टा कहा है ॥६७॥ गेंद आदि खेलना उपकरण है, नाना प्रकारके सुभाषित आदि कहना वाणी-क्रीड़ा है और जुआ आदि खेलना कलाव्यासंग नामक
१. वस्त्रं संखादिवावेदीत् ब. । २. शिलास्तत्रादि म, ज.। ३. कार । ४. निधिर्ज्ञानं म., ज.। ५. विधिम म., ब., ज., ख.। ६. करणा म.। ७. कन्दुकादिति म., ब., ज.।
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