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पद्मपुराणे लङ्काराजगृहं चान्यक्रमेण प्रतिचक्रिणाम् । स्थानान्यमूनि वेद्योनि दीप्तानि मणिरश्मिभिः ॥२४३॥ अश्वग्रीव इति ख्यातस्तारको मेरकस्तथा । मधुकैटमसंज्ञश्च निशुम्मश्च तथा बलिः ॥२४४॥ प्रह्लादो दशवक्त्रश्च जरासन्धश्च कीर्तितः । क्रमेण वासुदेवानां विज्ञेया प्रतिचक्रिणः ॥२४५॥ सुवर्णकुम्भः सत्कीति: सुधर्मोऽथ महामुनिः । मृगाङ्कः श्रुतिकीतिश्च सुमित्रो भवनश्रुतः ॥२४६॥ सुव्रतश्च सुसिद्धार्थो रामाणां गुरवः स्मृताः । तपःसंभारसंजातकीर्ति वेष्टितविष्टपाः ॥२४७॥
स्रग्धराच्छन्दः
दग्ध्वा कर्मोरुकक्षं झुमितबहुविधव्याधिसंभ्रान्तसत्त्वं
मृत्युव्याघ्राति भीमं मवविपुलसमुत्तुङ्गवृक्षोरुखण्डम् । याता निर्वाणमष्टौ हलधरविभवं प्राप्य संविग्नमावाः
संप्राप ब्रह्मलोकं चरमहलधरः कर्मबन्धावशेषात् ॥२४८॥ आदौ कृत्वा जिनेन्द्रान् भरतजयकृता केशवानां बलाना
____मेतत्ते पूर्वजन्मप्रभृति निगदितं वृत्तमत्यन्तचित्रम् । केचिद् गच्छन्ति मोक्षं कृतपुरुतपसः स्तोकपङ्काश्च केचित्
केचिद् भ्राम्यन्ति भूयो बहुमवगहनां संसृतिं निर्विरामाः ॥२४९॥ ६ नन्दिषेण ७ रामचन्द्र ( पद्म ) और बल ] नारायणोंके प्रतिद्वन्द्वी नौ प्रतिनारायण होते हैं। उनके नगरोंके नाम इस प्रकार जानना चाहिए। अलकपुर १ विजयपुर २ नन्दनपुर ३ पृथ्वीपुर ४ हरिपुर ५ सूर्यपुर ६ सिंहपुर ७ लंका ८ और राजगृह ९। ये सभी नगर मणियोंकी किरणोंसे देदीप्यमान थे ॥२४२-२४३|| अब प्रतिनारायणोंके नाम सनो-अश्वग्रीव १ तारक २ मेरक ३ मधुकैटभ ४ निशुम्भ ५ बलि ६ प्रह्लाद ७ दशानन ८ और जरासन्ध ९ ये नौ प्रतिनारायणोंके नाम जानना चाहिए ।।२४४-२४५॥ सुवर्णकुम्भ १ सत्कीर्ति २ सुधर्म ३ मृगांक ४ श्रुतिकीर्ति ५ सुमित्र ६ भवनश्रुत ७ सुव्रत ८ और सुसिद्धार्थ ९ बलभद्रोंके गुरुओंके नाम हैं। इन सभीने तपके भारसे उत्पन्न कोर्तिके द्वारा समस्त संसारको व्याप्त कर रखा था ।।२४६-२४७|| नौ बलभद्रोंमें-से आठ बलभद्र तो बलभद्रका वैभव प्राप्त कर तथा संसारसे उदासीन हो उस कर्मरूपी महावनको भस्म कर निर्वाणको पधारे जिसमें कि क्षोभको प्राप्त हुए नाना प्रकारके रोगरूपी जन्तु भ्रमण कर रहे थे, जो मृत्युरूपी व्याघ्रसे अत्यन्त भयंकर था तथा जिसमें जन्मरूपी बड़े-बड़े ऊँचे वृक्षोके खण्ड लग रहे थे। अन्तिम बलभद्र कर्म-बन्धन शेष रहनेके कारण ब्रह्म स्वर्गको प्राप्त हुआ था ॥२४८॥ गौतम गणधर राजा श्रेणिकसे कहते हैं कि हे राजन् ! मैंने तीर्थंकरोंको आदि लेकर भरत क्षेत्रको जीतनेवाले चक्रवतियों, नारायणों तथा बलभद्रोंका अत्यन्त आश्चर्यसे भरा हुआ पूर्व-जन्म आदिका वृत्तान्त तुझसे कहा। इनमें से कितने ही तो विशाल तपश्चरण कर उसी भवसे मोक्ष जाते हैं, किन्हींके कुछ पाप कर्म अवशिष्ट रहते हैं तो वे कुछ समय तक संसारमें भ्रमण कर मोक्ष जाते हैं और कुछ कर्मोकी सत्ता अधिक प्रबल होनेसे दीर्घ काल तक अनेक जन्म-मरणोंसे सघन
१. वेदानि म.। २. सधर्मोऽथ म., ख.। ३. सुसिद्धार्था म.। ४. व्याघ्रादि ख., ब.। ५. कृतान् म. । ६. केचिद्भ्राम्यन्ति म.। ७. परतपसः ख., युजतपसः म.। ८. गच्छन्ति म. ।
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