________________
विशतितमं पर्व प्रकाण्डपाण्डुरागारा नगरी पुण्डरोकिणी । पृथिवीवसुविस्तीर्णा द्वितीया पृथिवीपुरी ॥२२९॥ अन्यानन्दपुरी शेया तथानन्दपुरी स्मृता । पुरी व्यतीतशोकाख्या पुरं विजयसंज्ञितम् ॥२३०॥ सुसीमा च तथा क्षेमा हास्तिनं च प्रकीर्तितम् । एतानि बलदेवानां पुराणि गतजन्मनि ॥२३१॥ बलो मारुतवेगश्च नन्दिमित्रो महाबलः । पुरुषर्षभसंज्ञश्च तथा षष्ठः सुदर्शनः ॥२३२॥ वसुन्धरश्च विज्ञेयः श्रीचन्द्रः सखिसंज्ञकः । ज्ञेयान्यमूनि नामानि रामाणां पूर्वजन्मनि ॥२३३॥ अमृतारो मुनिः श्रेष्ठः महासुव्रतसुव्रती। वृषभोऽथ प्रजापालस्तथा दमवराभिधः ॥२३॥ सुधर्मोऽर्णवसंज्ञश्च तथा विद्मसंज्ञितः । अमी पूर्वभवे ज्ञेया गुरवः सीरधारिणाम् ॥२३५॥ निवासोऽनुत्तरा ज्ञेयास्त्रयाणां हलधारिणाम् । सहस्रारस्त्रयाणां च द्वयोर्ब्रह्मनिवासिता ॥२३६॥ महाशुक्राभिधानश्च कल्पः परमशोमनः । एभ्यश्च्युत्वा समुत्पन्ना रामाः साधुसुचेष्टिताः ॥२३७॥ भद्राम्भोजा सुभद्रा च सुवेषा च सुदर्शना । सुप्रभा विजया चान्या वैजयन्ती प्रकीर्तिता ॥२३८॥ महाभागा च विज्ञेया महाशीलाऽपराजिता । रोहिणी चेति विज्ञेया जनन्यः सीरधारिणाम् ॥२३९॥ श्रेय आदीन् जिनान्पञ्च त्रिपृष्ठाद्याबलानुजाः । क्रमेण पञ्च विद्यन्ते तत्परावरतः परौ ॥२४०॥ नमिसुव्रतयोर्मध्ये लक्ष्मणः परिकीर्तितः । वन्दको नेमिनाथस्य कृष्णोऽमदद्भुतक्रियः ॥२४॥ अलकं विजयं ज्ञेयं नन्दनं पृथिवीपुरम् । तथा हरिपुरं सूर्यसिंहशब्दपरे पुरे ॥२४२॥
अथानन्तर अब नौ बलभद्रोंका वर्णन करते हैं। सो सर्वप्रथम इनकी पूर्वजन्म-सम्बन्धी नगरियोंके नाम सुनो-उत्तमोत्तम धवल महलोंसे सहित पुण्डरीकिणी १ पृथ्वीके समान अत्यन्त विस्तृत पृथिवीपुरी २ आनन्दपुरी ३ नन्दपुरी ४ वीतशोका ५ विजयपुर ६ सुसीमा ७ क्षेमा ८
और हस्तिनापुर ९ ये नौ बलभद्रोंके पूर्व जन्मसम्बन्धी नगरोंके नाम हैं ॥२२९-२३१।। अब बलभद्रोंके पूर्वजन्मके नाम सुनो-बल १ मारुतवेग २ नन्दिमित्र ३ महाबल ४ पुरुषर्षभ ५ सुदर्शन ६ वसुन्धर ७ श्रीचन्द्र ८ और सखिसंज्ञ ९ ये नौ बलभद्रोंके पूर्वनाम जानना चाहिए ॥२३२२३३।। अब इनके पूर्वभव सम्बन्धी गुरुओंके नाम सुनो-अमृतार १ महासुव्रत २ सुव्रत ३ वृषभ ४ प्रजापाल ५ दमवर ६ सुधर्म ७ अर्णव ८ और विद्रुम ९ ये नौ बलभद्रोंके पूर्वभवके गुरु हैं अर्थात् इनके पास इन्होंने दीक्षा धारण की थी ।।२३४-२३५|| अब ये जिस स्वर्गसे आये उसका वर्णन करते हैं-तीन बलभद्रका अनुत्तर विमान, तीनका सहस्रार स्वर्ग, दोका ब्रह्म स्वर्ग और एकका अत्यन्त सशोभित महाशक्र स्वर्ग पूर्वभवका निवास था। ये सब यहाँसे च्यत होकर उत्तम चेष्टाओंके धारक बलभद्र हुए थे ।।२३६-२३७।। अब इनकी माताओंके नाम सुनो-भद्राम्भोजा १ सुभद्रा २ सुवेषा ३ सुदर्शना ४ सुप्रभा ५ विजया ६ वैजयन्ती ७ उदार अभिप्रायको धारण करनेवाली तथा महाशीलवती अपराजिता (कौशिल्या) ८ और रोहिणी ९ ये नौ बलभद्रोंकी क्रमशः माताओंके नाम हैं ॥२३८-२३९।। इनमें-से त्रिपृष्ठ आदि पांच नारायण और पाँच बलभद्र श्रेयान्सनाथको आदि लेकर धर्मनाथ स्वामीके समय पर्यन्त हुए। छठे और सातवें नारायण तथा बलभद्र अरनाथ स्वामीके बाद हुए। लक्ष्मण नामके आठवें नारायण और राम नामक आठवें बलभद्र मुनिसुव्रतनाथ और नमिनाथके बीचमें हुए तथा अद्भुत क्रियाओंको करनेवाले श्री कृष्ण नामक नौवें नारायण तथा बल नामक नौवें बलभद्र भगवान नेमिनाथकी वन्दना करनेवाले हए ॥२४०२४१॥ * [ अब बलभद्रोंके नाम सुनो-अचल १ विजय २ भद्र ३ सुप्रभ ४ सुदर्शन ५ नन्दिमित्र
*नारायणके नामकी तरह बलभद्रोंके नाम गिनानेवाले श्लोक भी उपलब्ध प्रतियोंमें नहीं मिले हैं पर पं. दौलतरामजीने इनका अनुवाद किया है तथा उपयोगी भी है। अतः [ ] कोष्ठकोंके अन्तर्गत अनुवाद किया है। १. पाण्डुरोगारा म.। २. पृथिवीवत् सुविस्तीर्णा-अतिविस्तता। ३. विवासो म.। ४. श्रेयोनाथादारभ्य धर्मनाथपर्यन्तं पञ्च बलभद्रा जाताः । ५. वन्दन्ते म. । ५६
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org