Book Title: Padmapuran Part 1
Author(s): Dravishenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 476
________________ ४२६ पद्मपुराणे प्राणतोऽनन्तरातीतो वैजयन्तो महाधुतिः । पुष्पोत्तर इति ज्ञेयो जिनानाममरालयाः ॥३५।। जिनानां जन्मनक्षत्र मातरं पितरं पुरम् । चैत्यवृक्षं तथा मोक्षस्थानं ते कथयाम्यतः ॥३६॥ विनीता नगरी नाभिर्मरुदेव्युत्तरा तथा । आषाढा वटवृक्षश्च कैलाशः प्रथमो जिनः ॥३७॥ साकेता विजयानाथो जितशर्जिनोत्तमः । रोहिणी सप्तपर्णश्च मङ्गलं श्रेणिकास्तु ते ॥३८॥ सेना जितारिराजश्च श्रावस्तीसंभवो जिनः । ऐन्द्रमृक्षं ततः शालः परमं तेऽस्तु मङ्गलम् ॥३९॥ सिद्धार्था संवरोऽयोध्या सरलश्च पुनर्वसुः । अभिनन्दननाथश्च भवन्तु तव मङ्गलम् ॥४०॥ सुमङ्गला प्रियङ्गुश्च मधा मेघप्रभः पुरी । साकेता सुमति थो जगदुत्तममङ्गलम् ॥४१॥ सुसीमा वत्सनगरी च चित्रा धरणशब्दितः। पद्मप्रभः प्रियङ्गश्च भवन्तु तव मङ्गलम् ॥४२॥ सप्रतिष्टः पुरी काशी विशाखा पृथिवी तथा। शिरीषश्च सुपाश्र्वश्च राजन् परममङ्गलम् ॥४३॥ नागवृक्षोऽनुराधक्ष महासेनाश्च लक्ष्मणा । ख्याता चन्द्रपुरी चन्द्रप्रमश्च तव मङ्गलम् ॥४४॥ काकन्दी सुविधिमूलं रामा सुग्रीवपार्थिवः । सालस्तरुश्च ते सन्तु चित्तपावनकारणम् ।।४५।। प्लक्षो दृढरथो राजा भद्रिका शीतलो जिनः । सुनन्दा प्रथमाषाढा सन्तु ते मङ्गलं परम् ॥४६॥ विष्णुश्रीः श्रवणो विष्णुः सिंहनादं च तिन्दुकः । सततं नु जिनः श्रेयान् श्रेयः कुर्वन्तु ते नृप ।।४७।। पाटला वसुपूज्यश्च जया शतभिषं तथा । चम्पा च वासुपूज्यश्च लोकपूजां दिशन्तु ते ॥४॥ काम्पिल्यं कृतवर्मा च शर्मा प्रौष्ठपदोत्तरा । जम्बूर्विमलनाथश्च कुर्वन्तु खां मलोज्झितम् ।।४९।। जित, २१ प्राणत, २२ आनत, २३ वैजयन्त और २४ पुष्पोत्तर । ये चौबीस तीर्थंकरोंके आनेके स्वर्गों के नाम कहे ॥३१-३५।। अब आगे चौबीस तीर्थंकरोंकी जन्मनगरी.जन्मनक्षत्र. माता. पिता. वैराग्यका वृक्ष और मोक्षका स्थान कहता हूँ-विनीता(अयोध्या)नगरी, नाभिराजा पिता, मरुदेवी रानी, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, वट वृक्ष, कैलासपवंत और प्रथम जिनेन्द्र हे श्रेणिक ! तेरे लिए ये मंगलस्वरूप हों ॥३६-३७।। साकेता ( अयोध्या ) नगरी, जितशत्रु पिता, विजया माता, रोहिणी नक्षत्र, सप्तपर्ण वृक्ष और अजितनाथ जिनेन्द्र, हे श्रेणिक ! ये तेरे लिए मंगलस्वरूप हों ॥३८|| श्रावस्ती नगरी, जितारि पिता, सेना माता, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, शाल वृक्ष और सम्भवनाथ जिनेन्द्र, ये तेरे लिए मंगलस्वरूप हों ।।३९|| अयोध्या नगरी, संवर पिता, सिद्धार्था माता, पुनर्वसु नक्षत्र, सरल अर्थात् देवदारु वृक्ष और अभिनन्दन जिनेन्द्र, ये तेरे लिए मंगलस्वरूप हों ।।४०॥ साकेता (अयोध्या) नगरी, मेघप्रभ राजा पिता, सुमंगला माता, मघा नक्षत्र, प्रियंगु वृक्ष और सुमतिनाथ जिनेन्द्र, ये जगत्के लिए उत्तम मंगलस्वरूप हों ॥४१॥ वत्सनगरी ( कौशाम्बीपुरी ), धरणराजा पिता, सुसीमा माता, चित्रा नक्षत्र, प्रियंगु वृक्ष और पद्मप्रभ जिनेन्द्र, ये तेरे लिए मंगलस्वरूप हों ॥४२॥ काशी नगरी, सुप्रतिष्ठ पिता, पृथ्वी माता, विशाखा नक्षत्र, शिरीष वृक्ष और सुपाय जिनेन्द्र, हे राजन् ! ये तेरे लिए मंगलस्वरूप हों ॥४३॥ चन्द्रपुरी नगरी, महासेन पिता, लक्ष्मणा माता, अनुराधा नक्षत्र, नाग वृक्ष और चन्द्रप्रभ भगवान्, ये तेरे लिए मंगलस्वरूप हों ॥४४।। काकन्दी नगरी, सुग्रीव राजा पिता, रामा माता, मूल नक्षत्र, साल वृक्ष और पुष्पदन्त अथवा सुविधिनाथ जिनेन्द्र, ये तेरे चित्तको पवित्र करनेवाले हों ॥४५॥ भद्रिकापुरी, दृढ़रथ पिता, सुनन्दा माता, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, प्लक्ष वृक्ष और शीतलनाथ जिनेन्द्र, ये तेरे लिए परम मंगलस्वरूप हों ।।४६|| सिंहपुरी नगरी, विष्णुराज पिता, विष्णुश्री माता, श्रवण नक्षत्र, तेंदूका वृक्ष और श्रेयान्सनाथ जिनेन्द्र हे राजन् ! ये तेरे लिए कल्याण करें ॥४७॥ चम्पापुरी, वसुपूज्य राजा पिता, जया माता, शतभिषा नक्षत्र, पाटला वृक्ष, चम्पापुरी सिद्धक्षेत्र और वासुपूज्य जिनेन्द्र, ये तेरे लिए लोकप्रतिष्ठा प्राप्त करावें ॥४८॥ काम्पिल्य नगरी, कृतवर्मा पिता, शर्मा माता, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, जम्बू वृक्ष, १. सिंहनादश्च म,। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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