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सप्तमं पर्व अश्विनौ वसवश्चाष्टौ चतुर्भेदा दिवौकसः । नारदस्तुम्बुरू' विश्वावसुप्रभृतिगायकाः ॥३०॥ उर्वशी मेनका मजुस्वन्याद्यप्सरसो वराः । मन्त्री बृहस्पतिः सर्वमेवं तस्य सुरेन्द्रवत् ॥३१॥ ततोऽसौ नमिवज्जातः सर्वविद्याभृतां पतिः । ऐश्वयं सुरनाथस्य बिभ्राणः पुण्यसंभृतम् ॥३२॥ अत्रान्तरे महामानो माली लङ्कापुरीपतिः । पूर्वयैव धिया सर्वान् शास्ति खेचरपुङ्गवान् ॥३३॥ विजयाईनगस्थेषु समस्तेषु पुरेषु वा । लङ्कागतः करोत्यैश्यं स्वभ्रातृबलगर्वितः ॥३४॥ वेश्या यानं विमानं वा कन्या वासांसि भषणम् । यद्यच्छणीद्वये सारं वस्तु चारनिवेद्यते ।।३५।। तत्तत्सर्वं बलाद्धीरः क्षिप्रमानययत्यसौ । पश्यन्नात्मानमेवैकं बलविद्याविभूतिभिः ॥३६॥ इन्द्राश्रयात् खगैराज्ञां भग्नां श्रुत्वास्य चान्यदा । प्रस्थितो भ्रातृकिष्किन्धसुतैः साकं महाबलः ॥३७॥ विमानैर्विविधच्छायैः संध्यामेधैरिवोन्नतैः । महाप्रासादसंकाशः स्यन्दनैः काञ्चनाञ्चितैः ॥३८॥ गर्घनाघनाकारैः सप्तिभिश्चित्तगामिमिः । शार्दूलैमंगरैर्गोभिर्मृगराजैः क्रमेलकैः ॥३९॥ वालेयर्म हिपैहंसैकैरन्यैश्च वाहनः । खाङ्गणं छादयन्सर्व महामासुरविग्रहः ॥४०॥ अथ मालिनमित्यूचे सुमाली भ्रातृवत्सलः । प्रदेशेऽत्रैव तिष्ठामो भ्रातरद्य न गम्यते ॥४१॥ लङ्कां वा प्रतिगच्छामः शृणु कारणमत्र मे । अनिमित्तानि दृश्यन्ते पुनः पुनरिहायने ॥४२॥ एक संकोच्य चरणमत्यन्ताकुलमानसः । स्थितः शुष्कद्रुमस्याग्रे धुन्वन् पक्षान् पुनः पुनः ॥४३॥
अश्विनीकमार वैद्य, आठ वस, चार प्रकारके देव, नारद, तम्बरु, विश्वावस आदि गायक, उर्वशी, मेनका, मंजुस्वनी आदि अप्सराएँ, और बृहस्पति मन्त्री आदि समस्त वैभव उसने इन्द्रके समान ही निश्चित किया था॥२९-३१।। तदनन्तर यह, नमि विद्याधरके पुण्योदयसे प्राप्त इन्द्रका ऐश्वर्य धारण करता हुआ समस्त विद्याधरोंका अधिपति हुआ ॥३२॥
इसी समय लंकापुरीका स्वामी महामानी माली था सो समस्त विद्याधरोंपर पहले ही के समान शासन करता था ॥३३॥ अपने भाइयोंके बलसे गर्वको धारण करनेवाला माली, लंकामें रहकर ही विजयाध पर्वतके समस्त नगरों में अपना शासन करता था ।।३४।। वेश्या, वाहन, विमान, कन्या, वस्त्र तथा आभूषण आदि जो-जो श्रेष्ठ वस्तु, दोनों श्रेणियोंमें गुप्तचरोंसे इसे मालूम होती थी उस सबको धीर-वीर माली जबरदस्ती शीघ्र ही अपने यहाँ बुलवा लेता था। वह बल, विद्या, विभूति आदिसे अपने आपको ही सर्वश्रेष्ठ मानता था ॥३५-३६।। अब इन्द्रका आश्रय पाकर विद्याधर मालीकी आज्ञा भंग करने लगे सो यह समाचार सुन महाबलवान् माली भाई तथा किष्किन्धके पुत्रोंके साथ विजया गिरिको ओर चला ॥३७॥ कोई अनेक प्रकारकी कान्तिको धारण करनेवाले तथा सन्ध्याकालके मेघोंके समान ऊँचे विमानोंपर बैठकर जा रहे थे, कोई बड़ेबड़े महलोंके समान सुवर्णजटित रथोंमें बैठकर चल रहे थे, कोई मेघोंके समान श्यामवणं हाथियोंपर
, कोई मनके समान शीघ्र गमन करनेवाले घोडोंपर सवार थे. कोई शार्दलोंपर, कोई चीतोंपर, कोई बैलोंपर, कोई सिंहोंपर, कोई ऊँटोंपर, कोई गधोंपर, कोई भैंसोंपर, कोई हंसोंपर, कोई भेड़ियोंपर तथा कोई अन्य वाहनोंपर बैठकर प्रस्थान कर रहे थे। इस प्रकार महादेदीप्यमान शरीरके धारक अन्यान्य वाहनोंसे समस्त आकाशांगणको आच्छादित करता हुआ माली विजयाधके निकट पहुँचा ॥३८-४०॥ अथानन्तर भाईके स्नेहसे भरे सुमालीने मालीसे कहा कि हे भाई ! हम सब आज यहीं ठहरें, आगे न चलें अथवा लंकाको वापस लौट चलें। इसका कारण यह है कि आज मार्ग में बार-बार अपशकुन दिखाई देते हैं ।।४१-४२।। देखो उधर सूखे वृक्षके अग्रभागपर बैठा कौआ एक पैर संकचित कर बार-बार पंख फड़फड़ा रहा है। उसका मन अत्यन्त व्याकुल दिखाई देता है, सूखा काठ चोंचमें दबाकर सूर्यकी ओर देखता हुआ क्रूर शब्द कर रहा १. तुम्बरो म. । २. अश्वैः । ३. खरैः । ४. मार्गे ।
बैठे थे
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