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अष्टमं पर्व
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ततः स्वयं मयेनोक्तं युष्माकं वेद्मि नो मनः । मह्यं तु रुचितः ख्यातः सिद्धविद्यो दशाननः ॥ १४ ॥ भवितासौ महान् कोऽपि जगतोऽद्भुतकारणम् । अन्यथा जायते सिद्धिर्विद्यानामाशु नाल्पके ॥१५॥ ततोऽनुमेनिरे तस्य तद्वाक्यं प्रमुदान्विताः । मारीचप्रमुखाः सर्वे मन्त्रिणो मन्त्रकोविदाः ॥ १६ ॥ मन्त्रिणो भ्रातरश्चास्य मारीचाद्या महाबलाः । मारीचोऽस्य ततश्चक्रे मानसं त्वरयान्वितम् ॥१७॥ ग्रहेष्वभिमुखस्थेषु सौम्येषु दिवसे शुभे । क्रूरग्रहेष्वपश्यत्सु लग्ने कुशलतावहे ||१८ ॥ कृत्यं कालातिपातेन नेति ज्ञात्वा ततो मयः । पुष्पान्तकविमानेन प्रस्थितः कन्ययान्वितः ॥ १९॥ ततो मङ्गलगीतेन प्रमदानां नमस्तलम् । तूर्यनादस्य विच्छेदे' शब्दात्मकमिवाभवत् ॥२०॥ पुष्पान्तकाद् विनिष्क्रम्य मीमारण्ये स्थिता इति । युवभिः कथितं तस्य निर्वृत्य प्रथमागतः ॥ २१ ॥ तद्देशवेदिभिश्वारैः कथितं तद्वनं ततः । चलितोऽसावपश्यच्च मेघानामित्र संचयम् ॥२२॥ चारः कश्चिदुवाचेति पश्येदं देव सद्वनम् । स्निग्धध्वान्तचयाकारं निविडोत्तुङ्गपादपम् ॥ २३ ॥ अद्वेर्वलाहकाख्यस्य सन्ध्यावर्तस्य चान्तरे । मन्दारुणमिवारण्यं संमेदाष्टापद गयोः ॥ २४ ॥ वनस्य पश्य मध्येऽस्य शङ्खशुभ्र महागृहम् । नगरं शरदम्भोदमहावृन्दसमद्युति ॥ २५ ॥ समीपे च पुरस्यास्य पश्य प्रासादमुन्नतम् । सौधर्ममिव यः प्रष्टुमीहते शृङ्गकोटिभिः ॥ २६ ॥
और सब विद्याधर उसके विरुद्ध जानेमें भयभीत भी रहेंगे || १३|| तब राजा मयने स्वयं कहा कि मैं आप लोगों के मनकी बात तो नहीं जानता पर मुझे जिसे समस्त विद्याएँ सिद्ध हुई हैं ऐसा प्रसिद्ध दशानन अच्छा लगता है || १४ || निश्चित ही वह जगत् में कोई अद्भुत कार्यं करनेवाला होगा अन्यथा उसे छोटी ही उमरमें शीघ्र ही अनेक विद्याएँ सिद्ध कैसे हो जातीं ॥ १५॥ तदनन्तर मन्त्र करने में निपुण मारीच आदि समस्त प्रमुख मन्त्रियोंने बड़े हर्ष के साथ राजा मय की बातका समन किया ॥ १६ ॥
तदनन्तर महाबलवान् मारीच आदि मन्त्रियों और भाइयोंने राजा मयके मनको शीघ्रता से युक्त किया अर्थात् प्रेरणा की कि इस कार्यको शीघ्र ही सम्पन्न कर लेना चाहिए ॥१७॥ तब राजा मयने भी विचार किया कि समय बीत जानेसे कार्यं सिद्ध नहीं हो पाता है ऐसा विचारकर वह किसी शुभ दिन, जबकि सौम्यग्रह सामने स्थित थे, क्रूर ग्रह विमुख थे और लग्न मंगलकारी थी, कन्या के साथ पुष्पान्तक विमानमें बैठकर चला । प्रस्थान करते समय तुरहीका मधुर शब्द हो रहा था और स्त्रियाँ मंगलगीत गा रही थीं। बीच-बीच में जब तुरहीका शब्द बन्द होता था तो स्त्रियोंके मंगलगीतोंसे आकाश ऐसा गूँज उठता था मानो शब्दमय ही हो गया हो ॥१८२० ॥ दशानन भीमवनमें है, यह समाचार, पुष्पान्तक विमानसे उतरकर जो जवान आगे गये थे उन्होंने लौटकर राजा मयसे कहा । तब राजा मय उस देशके जानकार गुप्तचरों से पता चलाकर भीमवनकी ओर चला। वहाँ जाकर उसने काली घटाके समान वह वन देखा ॥ २१-२२ ॥ दशाननके खास स्थानका पता बताते हुए किसी गुप्तचरने कहा कि हे राजन् ! जिस प्रकार सम्मेदाचल और कैलास पर्वत के बीच में मन्दारुण नामका वन है उसी प्रकार वलाहक और सन्ध्यावतं नामक पर्वतोंके बीच में यह उत्तम वन देखिए । देखिए कि यह वन स्निग्ध अन्धकारकी राशिके समान कितना सुन्दर मालूम होता है और यहाँ कितने ऊँचे तथा सघन वृक्ष लग रहे हैं ||२३ - २४ || इस वनके मध्यमें शंखके समान सफेद बड़े-बड़े घरोंसे सुशोभित जो वह नगर दिखाई दे रहा है वह शरद् ऋतु बादलोंके समूह के समान कितना भला जान पड़ता है ||२५|| उसी नगरके समीप देखो एक बहुत ऊँचा महल दिखाई दे रहा है । ऐसा महल कि जो अपने शिखरों के अग्रभागसे मानो
१. मारीचश्च म । २. विच्छेदशब्दात्मक-म. । ३. प्रथमा गतिः म । ४. चान्तरम् म. ।
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