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नवमं पर्व
अथ सूर्यरजाः पुत्रं बालिसंज्ञमजीजनत् । इन्दु मालिन्यभिख्यायां गुणसंपूर्णयोषिति ॥ १ ॥ परोपकारिणं नित्यं तथा शीलयुतं बुधैम् । दक्षं धीरं श्रिया युक्तं शूरं ज्ञानसमन्वितम् ॥२॥ कलाकलापसंयुक्तं सैम्यग्दृष्टिं महाबलम् । राजनीतिविदं वीरं कृपार्द्रीकृतचेतसम् ॥ विद्यासमूहसंपनं कान्तिमन्तं सुतेजर्सम् ॥३॥
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विरलस्तादृशां लोके पुरुषाणां समुद्भवः । चन्दनानामिवोदारः प्रभावः प्रथितात्मनाम् ॥४॥ समस्तजिनबिम्बानां नमस्कारार्थमुद्यतः । त्रिकालतीर्णं संदेहो भक्त्या युक्तोऽयुदारया ॥५॥ चतुःसमुद्रपर्यन्तं जम्बूद्वीपं क्षणेन यः । त्रिः परिक्षिप्य किष्किन्धं नगरं पुनरागमत् ॥६॥ पराक्रमाः शत्रुपक्षस्य मर्दकः । पौरनेत्रकुमुद्वत्याः शशाङ्कः शङ्कयोज्झितः ॥७॥ किष्किन्ध नगरे रम्ये चित्रप्रासादतोरणे । विद्वज्जनसमाकीर्णे द्विपवाजिवराकुले ॥८॥ नानासंव्यवहाराभिरापणालीभिराकुले । रेमे कल्पे तथैशाने रत्नमालः सुरोत्तमः ॥ ९ ॥ अनुक्रमाच्च तस्याभूत् सुग्रीवामिख्ययानुजः । वीरो धीरो मनोज्ञेन युक्तो रूपेण संनयः ॥ १० ॥
अथानन्तर सूर्यरजने अपनी चन्द्रमालिनी नामक गुणवती रानीमें बाली नामका पुत्र उत्पन्न किया ॥१॥ वह पुत्र परोपकारी था, निरन्तर शीलव्रतसे युक्त रहता था, विद्वान् था, कुशल था, धीर था, लक्ष्मीसे युक्त था, शूर-वीर था, ज्ञानवान् था, कलाओंके समूह से युक्त था, सम्यग्दृष्टि था, महाबलवान् था, राजनीतिका जानकार था, वीर था, दयालु था, विद्याओंके समूहसे युक्त था, कान्तिमान् था और उत्तम तेजसे युक्त था ॥२- ३ || जिस प्रकार लोकमें उत्कृष्ट चन्दनकी उत्पत्ति विरल अर्थात् कहीं-कहीं ही होती है उसी प्रकार बाली जैसे उत्कृष्ट पुरुषोंका जन्म भी विरल अर्थात् कहीं-कहीं होता है ॥४॥ जिसका समस्त सन्देह दूर हो गया था ऐसा बाली उत्कृष्ट भक्तिसे युक्त होकर तीनों ही काल समस्त जिन प्रतिमाओं की वन्दना करनेके लिए उद्यत रहता था ॥ ५ ॥ जिसकी चारों दिशा में समुद्र घिरा हुआ है ऐसे जम्बूद्वीपकी वह क्षण भरमें तीन प्रदक्षिणाएँ देकर अपने किष्किन्ध नगर में वापस आ जाता था || ६ || इस प्रकारके अद्भुत पराक्रमका आधारभूत बाली शत्रुओंके पक्षका मर्दन करनेवाला था, पुरवासी लोगोंके नेत्ररूपी कुमुदिनियोंको विकसित करने के लिए चन्द्रमाके समान था और निरन्तर शंकासे दूर रहता था ||७|| जहाँ रंग-बिरंगे महलोंके तोरणद्वार थे, जो विद्वज्जनोंसे व्याप्त था, एकसे एक बढ़कर हाथियों और घोड़ोंसे युक्त था, और अनेक प्रकारके व्यापारोंसे युक्त बाजारोंसे सहित था ऐसे मनोहर किष्किन्ध नगर में वह बाली इस प्रकार क्रीड़ा करता था जिस प्रकार कि ऐशान स्वर्ग में रत्नोंकी माला धारण करनेवाला इन्द्र क्रीड़ा किया करता है ॥ ८-९ ॥
अनुक्रम से बाली सुग्रीव नामका छोटा भाई उत्पन्न हुआ । सुग्रीव भी अत्यन्त धीर वीर,
१. सूर्यरजा म. । सूर्यरजः ख । २. चन्द्रमालिन्य -म. । ३. दयाशील म. । यथाशील -म. । ४. बुधाः क. ५. शूरं ज्ञानसमन्वितम् म । ६. सम्यग्दृष्टि महाबलम् म. । ७. विद्यासमूहसंपन्नं कान्तिमन्तं सुतेजसम् क., ख. म. । ८. एष श्लोकः षट्पादात्मकः, रामायणमहाभारतादिषु षट्पादात्मका अपि अनुष्टुपश्लोका दृश्यन्ते । ९. पुरुषाणां च समुद्भवः म. । १०. त्रिकाले क. । ११. त्रिः परीत्य म., म पुस्तके एष श्लोकः 'त्रिकालतीर्ण संदेह --- इत्यारभ्य - पुनरागमत् पर्यन्तं षट्पादात्मको वर्तते । १२. शत्रुपक्षविमर्दकः ख ।
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